नेताओं के बिगडते बोल के लिए जिम्मेदार कौन- न्यायालय या पूंजीपति

लेखक- रफी अहमद सिद्दीकी

फ़ैक्टरियों से निकलते ज़हरीले धुंए को सियासत इस तरह नियम,क़ानून,प्रजातंत्र,राज्यतंत्र, और वोट तंत्र में तब्दील करके मज़दूरों के श्रम को ज़िंदा रखती हैं? ताकि सियासत की चिमनियों से मज़दूरों के श्रम को पूंजीवाद के प्रदूषण में बदला जा सके।

जहाँ हम मज़दूरों की बगावत को सियासत की दिवारों में क़ैद किया जाता है और उनके आंदोलनों को वोट बैंक में तबदील करके,मज़दूरों के आंदोलनों से पूंजीपतियों की हिफाज़त की जाती है जो होन्डा मानेसर से निकाले लगभग ढाई हज़ार ठेका मज़दूर साथी पिछले साल की 5 नवम्बर से वोट बैंकों से आन्दोलनों तंत्र में बदले गये हैं|

मजदूर साथियों के लगभग 95 दिनों से एक जगह एक साथ बैठ जाने से मजदूरों के वोट बैंक से बनाया गया नियम,कानून कम्पनियों की सरकारों को काफी बेचैन  किये हुए है हम मज़दूर लोगों के वोटों से,हमारे ही खिलाफ़ बनाया गया नियम,कानून प्रजातंत्र के तंत्र को कानून,ताखीख,ये साहब, वे साहब,वो नेता, ये नेता,वो पार्टी और पार्टी के ज़रिये बचाए रखने की नाकाम कोशिश करते हुए देखा जा सकता है|

जहाँ जवां मज़दूरों की तादाद शहरी फक्ट्रियों में बढ़ती जा रही है और पूँजी को अपनी गिरफ़्त में जकड़ती जा रही है और पिछले कई दशकों में दुनियाभर के लोगों में बेचैनी बढ़ी है जिसके मद्देनज़र पूंजीपतियों की हिफाज़त का वादा करने वाली सरकारें कट्टर नेताओं को जन्म दे रहीं हैं क्योंकि अब सीधे-साधे नेता से मुमकिन नही है कि वह मजदूरों के गुस्से को शान्त कर सकें और पूंजीपतियों को महफूज़ कर सकें|

सियासत की बेचनी ये ज़ाहिर करती हैं कि अब कोई दबंग,अख्खड़,अड़ियल,आग उगलने वाला और फ़ौरन फासला करने वाला नेता ही पूँजीवादी निज़ाम को बचा सकता हैं|

हम मजदूरों के श्रम से बनाये गये पैसों का ज़्यादा हिस्सा मजदूरों के हांथों से पूंजीपतियों के हाथों में सुरक्षित पहुँचना और उन पूंजीपतियों की हिफाज़त करना भी सरकारों के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है जो यह सीधे-साधे नेताओं से मुमकिन नहीं|जहाँ सरकारें हर प्रकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों के हवाले करने का कानून बनातीं हैं और पूंजीपति इन संसाधनों से मजदूरों के बल पर पैसा बनातें हैं पहले इन लोगों की भूख क़ुदरती निज़ाम को खराब करती और फिर इसको सही करने के नाम से पैसा बनाती|

पहले पानी से पैसा और अब तो हवा से भी पैसा बनाना आम बात हो गई हैं दिल्ली में हर साल सर्दी आने से पहले प्रदूषण का होना कोई बड़ी बात नहीं रही और कंपनियों ने एयर फिल्टर बनाकर पैसा बनाने का काम शुरू कर दिया|

दिल्ली में कुछ जगह तो 1 घण्टे के शुद्ध हवा के लिए 300 से 400 रुपये देकर ओक्सीजन ली जा सकती है|हर चीज़ों से पैसे बनाने के इस खेल में सियासत पूँजीवादी निज़ाम को हर क़ानूनी मदद मुहैया कराती और हम मज़दूरों को वोट तंत्र में बांधकर,पूँजी तंत्र को जिंदा रखती है|

(लेखक श्रमिकों , मुद्रा-मंडी पर कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता और सुधारक हैं )