नहीं रहे महान पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा

लहर डेस्क
“धार ऐंच डाला, बिजली बणावा खाला-खाला’
मतलब पहाड़ पर ऊंचाई में बांध बनाने के बजाय निचले हिस्सों में छोटी सिंचाई परियोजना लगाएं। सुंदरलाल बहुगुणा का यह नारा आज विकास की उन तमाम अवधारणाओं को खारिज करता है, जो नेहरू के समय से चले आ रहे हैं। 1981 में इंदिराजी ने उन्हें पद्मश्री लेने के लिए दिल्ली बुलाया। लेकिन बहुगुणा जी ने ठुकरा दिया। बड़े बांधों से लेकर नदी जोड़ो तक, तमाम नीतियों का उन्होंने सख़्त विरोध किया।
सुंदरलाल बहुगुणा जी आज हमें छोड़कर चले गए। भारत के खत्म होते पर्यावरण की चिंता करने वालों के लिए ये बहुत बड़ा झटका है। उनका होना एक बड़ा संबल था। वे उत्तराखंड में तबाही झेल रहे लोगों की ताकत थे, रोशनी थे। बाबा की जगह कोई नहीं ले सकता, पर उनके दिखाए रास्ते पर बढ़ सकें तो अच्छा होगा।
पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार को कोरोना संक्रमण की वजह से निधन हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तबीयत खराब होने की वजह से पिछले कुछ दिनों से एम्स ऋषिकेश में इलाज चल रहा था। ले। 9 जनवरी 1927 को सिलयारा, उत्तराखंड जन्में सुंदरलाल बहुगुणा एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और चिपको आंदोलन के प्रमुख नेता थे। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उन्होंने चिपको आंदोलन से लेकर किसान आंदोलन तक का सफर तय किया।
विनम्र श्रद्धांजलि।