धर्म निरपेक्षता का चोला पहने कांग्रेसी आखिर संघी ही क्यों होते हैं?

असमा खान
कांग्रेस कार्य समिति की मीटिंग में जब राहुल गाँधी ने जम्मू कश्मीर के कद्दावर नेता और राज्य के पूर्व मुख्य मंत्री गुलाम नबी आज़ाद के उपर भाजपा के साथ मिले होने के आरोप लगाए थे तो आज़ाद साहब तिलमिला गये थे लेकिन कुछ ही समय बाद वह अब जम्मू में भगवा साफा बाँधे मोदी की तारीफों के पुल बाँध रहे हैं। आप सभी को याद होगा जब गुलाम नबी आज़ाद के राज्य सभा से बिदाई हो रही थी तब प्रधान मंत्री ने कितने भावुक भाषण दिए थे और उतना ही भावुक गुलाम नबी आज़ाद के भी शब्द थे प्रधान मंत्री के लिए।
ऐसा लगता है कि भाजपा में राहुल गाँधी के जितने लोग हैं उतने काँग्रेस में संघ के लोग नहीं। यही कारण है कि कौन सा काँग्रेसी भाजपा के संपर्क में है यह राहुल गाँधी को बहुत पहले ही नहीं बल्कि सबसे पहले पता चल जाता है और फिर राहुल ऐसे नेताओं को लिफ्ट भी नहीं देते। जाओ भाजपा में। आपको 2016 के आसाम विधानसभा चुनाव के पूर्व भाजपा में शामिल हुए “हेमंत विश्वा सरमा” का बयान याद होगा ? वह बोले थे कि महीनों की कोशिश के बाद राहुल ने उनसे मिलने का समय दिया तो पर वह मुझसे बात कम किए अपने पालतू जानवर को बिस्कुट अधिक समय तक खिलाया”।
दरअसल राहुल गाँधी ऐसे नेताओं को उनकी औकात बताते हैं क्युंकि जिस पार्टी ने तुमको यहाँ तक पहुँचाया तुम उसके ना होकर भाजपा से गलबहियाँ कर रहे हो। वह अपने बचपन के दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया को रोक सकते थे पर नहीं रोका , बात कर सकते थे पर बात नहीं की। वही राहुल गाँधी आम लोगों से, छात्रों से महिलाओं से,मित्रों से बात कर लेते हैं। समस्या राहुल में नहीं उनमे है जिसे राहुल तड़ लेते हैं। दरअसल जी-23 काँग्रेस की वह आखिरी खेप है जिससे राहुल गाँधी छुटकारा पाना चाहते हैं , यह जनाधार विहीन 23 नेता अपने मुहल्ले का एक पार्षद भी अपनी ताकत पर चुनवा में जीता नहीं सकते वह काँग्रेस के शिर्ष पर रहना चाहते हैं। आनंद शर्मा , कपिल सिब्बल , राजबब्बर जैसों की कोई खास ज़मीनी शाख नहीं है और जिस कांग्रेसी नेताओं की ज़मीनी हैसियत है वह इनकी वजह से अभी तक ज़मीन पर ही है। उनको उभरने का मौका ही नहीं दिया /मिला पार्टी में।
वैसे राहुल गाँधी ने जिस वजह से भी पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया हो लेकिन ऐसा लगता है कि इन G -23 नेताओं का भी काफी रोल रहा होगा। कुछ सूत्र बताते हैं कि राहुल गाँधी ने अध्यक्ष पद पर से इनके वजह से ही इस्तीफा दिया था। एक बात साफ़ है ये लोग जितनी जल्दी हो सके भाजपा में शामिल होकर सिंधिया बन जाएँ उतना काँग्रेस के लिए बेहतर होगा। लेकिन एक बात साफ़ है की इन नेताओं को बीजेपी में मार्गदर्शक मंडल में ही जगह मिलने की संभावना है। कांग्रेस को अपनी विचार धारा को फिर से मज़बूत करना होगा नहीं तो देश की सबसे पुरानी पार्टी को इतिहास बनने में बहुत ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा. क्योंकि कांग्रेस अपने सिद्धांतों से समझौता करके आगे नहीं बढ़ सकती। कहने के लिए धर्मनिरपेक्ष पार्टी है लेकिन हमेशा से छद्म धर्मनिरपेक्षता को ही अपनाया है और खास तौर से मुसलमानों को डर दिखा कर या छल कर वोट हासिल किया लेकिन उनके उत्थान के लिए कुछ कागज़ी कार्रवाई को छोड़कर कुछ ठोस कदम नहीं उठाये।
वैसे इन नेताओं को बीजेपी सहित किसी और पार्टी में जाने से राहुल को अपनी विचारधारा में तपे तपाए लोगों के लिए जगह बनेगी। भारत की राजनीति राहुल गाँधी जिस तरह से लोगों से मिलते हैं वो अपने आप में एक उदाहरण है। सबसे बड़ी बात की वो बहुत ही सहजता से किसी से मिलते हैं जो उनके चेहरे से भी साफ़ झलकती है लेकिन बीजेपी से लड़ने के लिए अपनी सहजता के साथ साथ अपनी विचार धारा में भी सहजता लानी पड़ेगी नहीं तो कांग्रेस के समर्थन का आधार धिरे धिरे खिसकता जायेगा जो कि काफी हद तक खिसक चुका है। अब सिर्फ सेक्युलर होने से काम नहीं चलेगा बल्कि उसे अपनी निति और उसके क्रियावयन में भी दिखना होगा। सिर्फ भाजपा विरोध या मोदी विरोध से आधार बढ़ने वाला नहीं है। हालाँकि राहुल गाँधी इस समय भाजपा का विरोध करते हुए नज़र आ रहे हैं लेकिन पा र्टी में विरोध की वैसी मुखरता नहीं है.