दिल्ली में सफाई कर्मचारियों की जान सबसे सस्ती

लहर डेस्क

दिल्ली में सफाई कर्मचारियों की जान सबसे सस्ती है। दिल्ली के तीनों म्युनिसिपल कॉर्पोरेशनों में मरने वालों में से आधे सफाई कर्मचारी हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार 28 मई तक कोरोना से कुल मरे 94 कर्मचारियों में 49 सफाई कर्मचारी हैं। इनमें सिर्फ एक या दो को ही दिल्ली सरकार द्वारा घोषित कोरोना योद्धा की 1 करोड़ रूपये की सहायता राशि मिली है बाकि इसके लिए दर-दर भटक रहे हैं।

दिल्ली के लोगों के घरों से कूडा उठाने वाले और उनकी गलियां-सड़कों को साफ करने वाले सफाई कर्मचारियों के बारे में एक ग़लतफ़हमी है की इनको कोरोना नहीं होता। इनका इम्युन सिस्टम बहुत मजबूत है। इनको कुछ नहीं होता लेकिन सच्चाई इसके उलट हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट इस भ्रम को तोड़ने के लिए काफी है। दिल्ली में न सिर्फ सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है बल्कि मरने वाले आधे से ज़्यादा सफाई कर्मचारी ही हैं। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण दिल्ली म्युनिसिपल कोर्पोपरशन में 29 में से 16 सफाई कर्मचारी हैं। वही उत्तरी दिल्ली म्युनिसिपल कोर्पोपरशन में 49 में से 25 सफाई कर्चारियों की मौत हुई है और पूर्वी दिल्ली म्युनिसिपल कोर्पोपरशन में 16 में से 8 सफाई कर्मचारियों की कोरोना से मौत हुई है।

ध्यान देने वाली बात ये है कि ये वो आंकड़े हैं जो कोरोना से मौत के लिए रिपोर्ट किये गए हैं। बहुत सारी ऐसे मौतें हैं जिसे कोरोना के साथ साथ कोई और बीमारी जैसे मधुमेह , साँस की बीमारी या फिर कैंसर जैसे जानलेवा बीमारी थी, उसमे से अक्सर कोरोना से मौत रिपोर्ट नहीं किया गया है। सब आकंड़ों का खेल है। जब लोग अपने घरों में दुबके दुबके हुए थे। किसी भी सूरत में अपनी जान बचाने में लगे हुए थे, उस समय ये सफाई कर्मचारी उनके घरों और गलियों से कूड़ा उठा रहे थे। उस वक़्त भी दिल्ली को साफ रख रहे थे।

अमीर और मध्यवर्ग को यह भी पता नहीं होता कि उनकी गली में आने वाला या उनके सोसायटी को साफ करने वाला कौन सफाई कर्मचारी कब मर गया या गायब हो गया। वे अक्सर उनके चेहरों से नहीं, उसके झाडू और कचरे ठेले से जाने और पहचाने जाते हैं। एक के मरने के बाद कोई दूसरी झाडू वाला और कचरे का ठेला वाला आ ही जाता है। ध्यान रहे कि सफाई कर्मचारी अपने हक़ के लिए पहले पहले कई बार अपनी आवाज़ उठा चुके हैं। सफाई कर्मचारियों का इल्जाम है कि उन्हे सैनिटाइजर और मास्क जो इस क्रोना महामारी में काम करने के लिए बेहद जरुरी उपकरण थे क्रोरोना से बचने के लिए वो भी उन्हें नहीं मिला।

रिपोर्ट से यह तथ्य भी सामने आया कि इन 49 कर्मचारियों में सिर्फ इसमें सिर्फ एक या दो को केजरीवाल द्वारा घोषित 1 करोड़ की सहायता राशि मिली। दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल द्वारा एक सफाई कर्मचारी के परिवार को 1 करोड़ देते हुए फोटो लगा कर ऐसा दिखया गया कि शायद सबको 1 करोड़ मिल गया होगा। भारत में सफाई कमर्चारी अपने काम के स्वरूप और सामाजिक श्रेणी दोनों में समाज के निचले हिस्से के लोग माने जाते हैं और आज भी हैं। जातिवाद उन्हें उनकी सामाजिक हैसियत के आधार पर और पूंजीवाद उन्हें उनके श्रम के स्वरूप के आधार अंतिम दर्जे का मानता है। तथ्य यही प्रमाणित कर रहे हैं।