थार के शोक में लिपटी बाल विवाह की परंपरा: कब रुकेगा यह अन्याय?

मोहम्मद अनिसुर रहमान खान, नई दिल्ली
पश्चिमी राजस्थान का थार क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक परंपराओं, लोककथाओं और जीवटता के लिए जाना जाता है। लेकिन इसी क्षेत्र में कुछ ऐसी कुरीतियाँ भी हैं, जो समय के साथ खत्म होने की बजाय सामाजिक स्वीकृति के चलते आज भी जारी हैं। इनमें से एक बेहद चिंताजनक प्रथा है—किसी बुजुर्ग की मृत्यु के बाद उसकी तेहरवीं के भोज के साथ नाबालिग बच्ची की शादी कर देना।
खर्च बचाने की परंपरा या बच्ची के भविष्य से खिलवाड़?
इस प्रथा के पीछे जो तर्क दिया जाता है, वह बेहद क्रूर और अमानवीय लगता है। जब किसी घर में बुजुर्ग की मृत्यु होती है, तो उसके बाद होने वाले मृत्युभोज में सैकड़ों लोग शामिल होते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए यह भोज बड़ा बोझ बन जाता है। ऐसे में कुछ समुदायों में यह मान्यता बना दी गई है कि यदि परिवार की किसी नाबालिग लड़की की शादी भी साथ में कर दी जाए, तो मृत्युभोज और शादी का भोज एक साथ निपटा सकते हैं, जिससे अतिरिक्त खर्च से बचा जा सके।
संविधान और क़ानून के खिलाफ यह अमानवीय कुप्रथा
भारत में बाल विवाह रोकने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू है, जिसके तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के की शादी अवैध मानी जाती है। बावजूद इसके, थार के कई गाँवों में यह परंपरा जारी है। प्रशासन और पुलिस के पास इन मामलों की ख़बरें भी पहुँचती हैं, लेकिन सामाजिक दबाव और परंपरा के नाम पर अक्सर कार्रवाई नहीं हो पाती।
एक लड़की के सपनों की मौत
बाल विवाह सिर्फ एक सामाजिक रिवाज नहीं, बल्कि बच्चियों के जीवन और भविष्य को अंधकार में धकेलने वाला अपराध है। नाबालिग बच्चियाँ शादी के बाद कम उम्र में माँ बनती हैं, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। वे शिक्षा से वंचित रह जाती हैं और घरेलू हिंसा, शोषण और असमानता के दायरे में कैद हो जाती हैं।
क्या इसका कोई हल है?
सामाजिक जागरूकता: गाँवों और समुदायों में जागरूकता फैलाना बेहद जरूरी है कि यह प्रथा न सिर्फ बाल विवाह को बढ़ावा देती है, बल्कि एक बच्ची के पूरे भविष्य को खत्म कर देती है।
प्रशासन की सख़्ती: स्थानीय प्रशासन को बाल विवाह रोकने के लिए सख़्त कदम उठाने होंगे और ऐसे मामलों में कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी।
शिक्षा और सशक्तिकरण: लड़कियों को शिक्षा और उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने से इस समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है। इस संबंध में राजस्थान के जिला बीकानेर की एक गैर सरकारी संस्था उरमूल सीमांत के बज्जू केंपस में फार्म इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से चल रहे मरू एकता छात्रावास का उद्देश्य भी यही है कि अधिक से अधिक बच्चियों को इस प्रथा से बाहर निकाला जाए, उनमें शिक्षा की ज्योत जलाई जाए और उनके अभिभावकों को यह समझाया जाए कि बच्चियों के लिए शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। काफी हद तक मरू एकता छात्रावास अपने इस मिशन में कामयाब भी हुआ है लेकिन अकेले इस काम को करना संभव नहीं है उसमें सब के सब तरह के सहयोग की आवश्यकता है इस छात्रावास में अभी केवल 40 लड़कियों को रखने की गुंजाइश है यदि इसकी वित्तीय सहायता की जाए तो 100 लड़कियां भी रखी जा सकती हैं जिन्हें बाल विवाह से बचाकर जीवन खुशहाल बनाने का मौका दिया जा सकता है।
थार की यह कुप्रथा हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी परंपराएँ किसी के जीवन से बड़ी हो सकती हैं? क्या एक बच्ची की जिंदगी सिर्फ पैसे बचाने की कीमत पर कुर्बान कर देनी चाहिए? यह समय है कि समाज इस अमानवीय कुरीति के खिलाफ आवाज़ उठाए और यह सुनिश्चित करे कि मृत्युभोज सिर्फ शोक प्रकट करने का अवसर रहे, किसी मासूम की ज़िंदगी लूटने का नहीं।
(यह आलेख थार क्षेत्र में चल रही कुप्रथाओं पर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से लिखा गया है। यदि आप किसी ऐसे मामले की जानकारी रखते हैं, तो तुरंत स्थानीय प्रशासन या चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर 1098 पर संपर्क करें।)