टीका बनाने वाली कम्पनियों के लिए आपदा में औसर

लहर डेस्क

द गार्डियन की रिपोर्ट के हवाले से खबर है कि 11 मई को कैम्ब्रिज़ में हुई आस्त्राज़ेनेका कंपनी की बैठक में सीईओ पास्कल सोरियोट का वेतन-भत्ता बढ़ाने का फ़ैसला हुआ है। इस साल इनको 17.8 मिलियन पाउंड (1 पाउंड=लगभग 104 रुपया) मिलेगा। इनकी मूल वेतन 1.3 मिलियन पाउंड है, जिसका 650 प्रतिशत शेयर बोनस के रूप में टारगेट पूरा होने पर मिलेगा। इनको वेतन का 250 प्रतिशत अतिरिक्त बोनस के रूप में भी मिलेगा।

बहरहाल, लगभग 40 प्रतिशत निवेशकों ने इस वृद्धि का विरोध किया है और बैठक के बाहर प्रदर्शनकारी बौद्धिक संपदा अधिकार हटाने की मांग भी कर रहे थे ताकि दुनिया में अधिक लोगों सस्ता टीका मिल सके। बीबीसी की रिपोर्ट की माने तो कुछ लोग इस बाबत गिरफ्तार भी किये गए हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है ये वैक्सीन ऑक्सफ़ोर्ड विस्वविद्यालय में विकसित की गयी है जो कि एक सरकारी विश्विद्यलय है।

इस वैक्सीन को विकसित करने में भी 97 प्रतिशत सरकारी मदद मिली है इस लिए इसका फायदा आम जनता को होना चाहिए वहीँ अस्ट्रज़ेन्का ने इसका निजीकरण कर अरबों मुनाफा कमाने के चक्कर में हैं। कंपनी के दुनियाभर में 20 निर्माण सहयोगी हैं, जिसमें भारत का सीरम इंस्टीट्यूट भी है, जो दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता कंपनी है। अब तक आस्त्राज़ेनेका ने सहयोगी कंपनियों के साथ 165 देशों को 300 मिलियन ख़ुराक मुहैया कराया है।

आस्त्राज़ेनेका का टीका ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से विकसित हुआ है और इसे लागत के दाम पर बेचने का दावा कंपनी कर रही है। उसका यह भी कहना है कि उसका 98 प्रतिशत उत्पादन कोवैक्स को जा रहा है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन का कार्यक्रम है और इसमें भारत भी शामिल है। यह कार्यक्रम टीकों के समावेशी वितरण के लिए चलाया जा रहा है। लेकिन यह कंपनी विश्व स्वास्थ्य संगठन की उस पहल का हिस्सा नहीं है, जिसके तहत वैक्सीन और कोविड उपचार से जुड़ी तकनीकों का साझा किया जाना है। कम्पनी ने माना है कि असाधारण परिस्थितियों में असाधारण उपाय होने चाहिए लेकिन बौद्धिक संपदा को किसी और के साथ साझा करने से साफ़ इनकार किया है।

कई संगठनों ने कहा है कि विश्वविद्यालय के दशकों के ज्ञान और अनुसंधान से टीका बना है और लोगों पर इसका परीक्षण हुआ है, तो इसे लोगों का वैक्सीन होना चाहिए। सोचिए, जब ऐसी कंपनी और इसका सीईओ कमाकर मस्त हो रहा है, तो बाक़ी कितना कमा रही होंगी। फ़ाइज़र और मोडेरना ने कहा है कि दोनों मिलाकर इस साल 45 अरब डॉलर (32 अरब पाउंड) कमा सकती हैं।

ऐसा लग रहा है कि सारी कम्पनियां मोदी जी के आपदा में औसर वाले विचार से काफी प्रभावित हैं और किसी भी हाल में मुनाफा कमाना चाहती हैं। याद रहे की सीरम इंस्टिट्यूट के सीईओ भी आजकल लन्दन में हैं और वहां अपना वैक्सीन का व्यापर बढ़ाने की तलाश में है। यहां भारत में उनकी बनाई वैक्सीन कोविशिल्ड की आपूर्ति नहीं होने की वजह से भारत सरकार ने दो टीकों के बीच 12-16 सप्ताह के अन्तर की सिफारिश को मान लिया है। यानि आपने अगर कोविशिल्ड वैक्सीन की पहली खुराक ली है तो आपको दूसरी के लिए इंतज़ार करना पड़ेगा। कोवैक्सीन के लिए भारत सरकार की तरफ से कोई दिशानिर्देश नहीं आया है। मतलब कोवैक्सीन का टीका बिना किसी अन्तर के जैसे लग रहा था वैसे लगता रहेगा।