टाइम पत्रिका ने गरमाया राजनितिक बहस

टाइम मैग्जीन का ताजा अंक को लेकर राजनितिक गलियारे में काफी हंगामा है. जो लोग भी इस रिपोर्ट को लेकर राजनितिक बहस कर रहे हैं उसमे से ज्यादा तर लोगों ने पत्रिका की इस रिपोर्ट को नहीं पढ़ी है. याद रहे की इसी पत्रिका ने नरेंद्र मोदी को रातो रत स्टार बना दिया था जब दो दो बार टाइम पत्रिका ने नरेंद्र मोदी को अपना कवर बनाया था तब लोगों ने नरेंद्र मोदी और टाइम पत्रिका दोनों की तारीफों के पुल बाँध रहे थे जो आज उस रिपोर्ट को राजनीती से प्रेरित बता रहे हैं.
निश्चित तौर पे पत्रिका ने डिवाइडर इन चीफ वाली खबर को कवर स्टोरी बनाया है और पूरे सात पेज खर्च किए हैं. मोदी द रिफॉर्मर को विचार वाले हिस्से में डाला है जिसपर सिर्फ एक पन्ना खर्च किया गया है. जाहिर है मोदी ने अपने 5 साल पुरे कर लिए हैं और चुनावी साल है तो काम काज का हिसाब तो मीडिया करेगी ही.
कवर स्टोरी 1947 से शुरू होती है. इसमें बताया गया है कि किस तरह पंडित नेहरू ने एक सेक्युलर और सबको साथ लेकर चलने वाले भारत की नींव रखी. भारत दुनिया के ऐसे देशों में उभरा जो लोकतंत्र की आस बने. उसके बाद उनके परिवार के लोगों को सत्ता मिली. ये लोग नेहरू के मूल्यों से तो जुड़े रहे लेकिन कुछ नया रच नहीं पाए. एक तरह से ये लोग आलसी हो गए. इससे एक शून्य पैदा हुआ. जिसे भरने के लिए दक्षिणपंथी दल 70 साल से मेहनत कर रहे थे. अंतत: 2014 में उन्होंने दुर्ग द्वार तोड़ दिया.
मोदी बहुत सी आशाओं के प्रतीक के रूप में चुनकर आए थे. लेकिन वे सांप्रदायिक विभाजन के एजेंडे में फंस गए. उनकी सरकार की प्रवृत्तियां तानाशाही जैसी हो गईं. उन्होंने पहले से ही धर्म और जाति में बंटे देश की दरारों को खाई में बदलकर अपना राजनैतिक भाग्य चमकाया. साथ ही धर्म के नाम पे जो हिंसा हुई उसे रोकने में मोदी नाकाम रहे हैं या यूँ कहें की उनकी मौन स्विकीर्ति है की लोग धर्म के नाम पे हिंसा करें।
इसमें दंगों के दौरान भाजपा और कांग्रेस की भूमिका की तुलना भी की गई है. कांग्रेस को दंगों में क्लीन चिट नहीं दी गई है. लेकिन कहा गया है कि कांग्रेस दंगाई से खुद को दूर कर लेती है और कम से कम उन्हें और बढ़ावा नहीं देती. वहीं भाजपा के बारे में कहा गया कि इसके नेता को खुद को उन्मादी भीड़ का नायकत्व करने में बिलकुल दिक्कत नहीं आती. मॉब लिंचिंग और गोहत्या की भी चर्चा है.
मोदी द रिफॉर्मर वाले आलेख के शुरू में मोदी की आलोचना की गई है. उसके बाद उनके जन धान खाते, जीएसटी, स्वच्छ भारत, सड़क निर्माण और दूसरे विकास कार्यों की तारीफ की गई है. इसमें इन योजनाओं की जमीनी पड़ताल करने के बजाय उन्हीं आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है जो सरकार की तरफ से जारी किए गए हैं.
टाइम पत्रिका कोई भारत की पत्रिका तो है नहीं जिसपे आप अंकुश लगा लेंगे या वो सरकार के हिसाब से रिपोर्टिंग करेगा. पत्रिका ने हमेशा से ज्यादातर तटस्थ पत्रकारिता की है और पुरे विश्व में लोग इसे बड़ा ही प्रतिष्ठित पत्रिका मानते भी हैं और है भी. ऐसे में अगर आलोचना अच्छी नहीं लगती तो आलोचना वाला काम करना नहीं चाहिए।
विशेष संवाददाता, लहर हिंदी