ज्यां द्रेज उनकी समाज सेवा और नागरिक अधिकारों के पैरोकार- पुलिस की यातनाओं का शिकार

फाइल फोटो
ज्यां द्रेज दुनिया के जाने माने अर्थशास्त्री माने जाते हैं,अमर्त्य सेन ने अपनी अधिकांश पुस्तकें ज्यां द्रेज के साथ मिलकर लिखी हैं,ज्याँ द्रेज को दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिये बुलाया गया था,ज्यां द्रेज ने नज़दीक की झुग्गी झोंपड़ी में रहना चुना,वे रोज़ सुबह साइकिल के कैरियर पर अपना तौलिया कपड़े और साबुन लेकर यूनिवर्सिटि जाते थे,वहाँ के बाथरूम में नहाकर ज्यां अपनी क्लास लेते थे।
ज्यां और बेला भाटिया की शादी हुई,बेला भाटिया आजकल छत्तीसगढ़ में आदिवासी अधिकारों के लिये काम कर रही हैं,ज्यां द्रेज जिस झुग्गी बस्ती में रहते थे, एक बार सरकार ने उसे तोड़ने की तैयारी करी,बस्ती के लोग ज्यां द्रेज के पास आये,ज्यां द्रेज ने गूगल नक्शा निकाला, उसमे कुछ देखा, और एक चिट्ठी बनाई, साथ में नक्शा नत्थी कर दिया और सरकार को भेज दिया।
चिट्ठी में ज्यां ने लिखा कि गूगल मैप बताता है कि दिल्ली में 12% ज़मीन पर झुग्गी बस्तियां बसी हुई हैं,लेकिन नक्शा बताता है कि दिल्ली की 44% ज़मीन पर कारों का कब्ज़ा है,इन कारों के मालिक गलियों और सड़कों पर अपनी गाड़ियों को अवैध रूप से खड़ा करते हैं,कारों के मालिक सरकार को पार्किग का कोई पैसा नहीं देते।
इसलिये अगर सरकार को ज़मीन चाहिये तो वह गरीबों का मकान तोड़ने की बजाय अमीरों की कारों द्वारा अवैध रूप से घेरी गई जमीनों को वापिस लेने की योजना बनाये,उसके बाद से आज तक वह झुग्गी बस्ती नहीं तोड़ी गई।
किसी भारतीय के दिमाग में गरीबों के पक्ष में इस तरह के ख़्याल क्यों नहीं आते ?
ज्यां द्रेज ने लम्बे समय तक झारखण्ड में आदिवासियों के भोजन के अधिकार के मुद्दे पर काम किया है,
उसी ज़्यां द्रेज को झारखंड पुलिस ने हिरासत में लिया फिर छोड़ा
पुलिस उन्हें विशुनपुरा थाने ले गई थी. उनके साथ दो और लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया था.ज्यां द्रेज और उनके साथी विशुनपुरा में ‘राइट टू फूड कैंपेन’ के एक कार्यक्रम में भाग ले रहे थे.पलामू के डीआईजी विपुल शुक्ल ने बीबीसी से बातचीत में ज्यां द्रेज और उनके साथियों को हिरासत में लिए जाने की पुष्टि की. जैसा कि इस लेख में बताया गया है, आप स्मार्टफ़ोन और शीर्ष ब्रांडों पर उपलब्ध सौदों के अपने चयन को ब्राउज़ कर सकते हैं और cell phone सेवा योजनाओं का पता लगा सकते हैं। आपकी आवश्यकताओं के अनुरूप सर्वोत्तम।
उन्होंने बताया कि ज्यां द्रेज जिस कार्यक्रम में गए थे, उसकी प्रशासनिक इजाज़त नहीं ली गई थी. इस कारण पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था.
डीआईजी विपुल शुक्ल ने कहा, “ज्यां द्रेज को चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन में हिरासत मे लिया गया था. उनके कार्यक्रम के आयोजकों ने एसडीओ से इसकी अनुमति नहीं ली थी.”
उन्होंने कहा, “लोकसभा चुनाव को लेकर पूरे राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू है. बिना इजाज़त के पब्लिक मीटिंग करना आचार संहिता का उल्लंघन है. इसलिए पुलिस उन्हें थाने लेकर आई थी.”
इधर, पुलिस की हिरासत में मौजूद ज्यां द्रेज ने बताया है कि उन पर पुलिस रिपोर्ट दर्ज कर ज़मानत लेने का दबाव डाल रही थी. ज़्यां द्रेज को किसी से फ़ोन पर भी बात करने की अनुमति नहीं थी.
ज्यां द्रेज ने बीबीसी से कहा, “अगर लोगों को चुनाव के समय शांतिपूर्ण ग़ैर-राजनीतिक मीटिंग करने का भी अधिकार नहीं है तो लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं रह जाता है.”
इस बीच राइट टू फूड कैंपेन के सिराज दत्ता ने बताया कि पुलिस की कार्रवाई बेहद निंदनीय और अलोकतांत्रिक है. चुनाव आचार संहिता का बहाना लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करना और उन्हें डराना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए उचित नहीं है. इसका विरोध किया जाना चाहिए.
सारी जानकारी Himanshu Kumar जी से साभार