जातिगत भेदभाव और अन्याय की एक मुखर आवाज़ हैं प्रोफेसर हैनी बाबू

रिजवान रहमान
प्रो. हैनी बाबू जातिगत भेदभाव की लड़ाई लड़ने और अन्याय पर मुखर रहने वाले एक ऐसे प्रोफेसर हैं जो मुंबई के तलोजा जेल में बंद हैं और चिकित्सा सुविधा न मिलने की वजह से उनकी जान को खतरा है। सूजन की वजह से प्रोफेसर बाबू की बाई आंख की रौशनी लगभग जा चुकी है। इसका असर, चेहरे और कान के अलावा कई जगह पर है। अगर यह फैल कर ब्रेन तक पहुंच गया तो उनकी ज़िंदगी खतरे में पड़ सकती है। जेल में पानी की इतनी किल्लत है कि वे अपनी आंख भी नहीं धो सकते, उन्हें भींगे हुए तौलिये से ही पोंछना पड़ता है। ऐसे में प्रोफेसर की पत्नी ने पत्र लिख कर संविधान में दिए गए अधिकार के तहत उनके इलाज की मांग की है। वो गिड़गिड़ा रही हैं की उनके पति की जान बचा ली जाए।
लैंग्वेज आडियोलॉजी, पॉलिटिक्स एंड पॉलिसी, लिंग्विस्टिक आइडेंटिटी, लिंग्विस्टिक डिबेट्स, मार्जिनलाइज्ड लैंग्वेजेज और सोशल जस्टिस में स्पेशियलाइजेशन रखने वाले प्रो. हैनी बाबू को सरकार और उसकी एजेन्सियाँ माओवादी बता रही है। सरकार कह रही है कि, “उसे हैनी बाबू के बोलने-लिखने से खतरा है। इसलिए प्रो. हैनी जैसों की जगह क्लासरूम में नहीं, जेल में है। ”
इस पर मुझे लोर्का की एक कविता, “एक बुल फाईटर की मौत पर शोक गीत” की याद आ रही। जब स्पेन के तानाशाह जनरल फ्रेंको को इसका कैसेट सुनाया गया तो जनरल ने चीखते हुए कहा, “यह आवाज़ बंद होनी चाहिए” … वर्तमान में नरेंद्र मोदी, स्पेन के तानाशाह जनरल फ्रेंको हैं। वे अपने खिलाफ उठती एक-एक आवाज़ को बंद कर देना चाहते हैं।
भीमा कोरे गांव मामले में अक्तूबर में एनआईए ने दस हजार पेज की सप्लेमेंटरी चार्जशीट दायर की थी। इसमें हैनी बाबू के साथ फादर स्टेन स्वामी, गौतम नवलखा, प्रो. आनंद तेलतुंबडे, ज्योति जगतप, सागर गोरखे, रमेश गइचोरे पर भारतीय दंड संहिता की धारा और यूएपीए के तहत भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने और माओवादियों से साठ – गांठ होने का आरोप लगाया गया था।
प्रो. हैनी ने अपनी गिरफ्तारी से पहले नवंबर 2019 में, इसी मामले में एक्टीविस्ट, मानवाधिकार कार्यकर्ता और प्रोफेसर की गिरफ्तारी पर कारवां पत्रिका को एक इंटरव्यू देते हुए राजसत्ता पर सवाल दागते हुए पूछा था, “जब आप किसी को राष्ट्रदोही कहते हैं तो उसकी परिभाषा क्या होती है? क्या आप कुछ मुद्दों पर सवाल करने की वजह से राष्ट्रद्रोही बन जाते हैं? राष्ट्र की परिभाषा कौन तय करता है?”
हैनी बाबू जब यह सवाल कर रहे थे, उसके ठीक दो महीने पहले पुलिस ने उनके नोएडा स्थित घर की तलाशी ली थी। उन्होंने इंटरव्यू में इसकी चर्चा करते हुए कहा भी था,”एकैडमिक्स की गिरफ्तारी इसलिए की जा रही है ताकि लोगों को डराया और चुप कराया जा सके। इससे स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया जा रहा है कि आप किस तरह का काम कर रहे हैं, और इस बारे में आपको सावधान हो जाना चाहिए। पुलिस ने मेरे घर से जाति और सोशल स्ट्रक्चर पर केंद्रित किताबों को जब्त किया। इससे साफ जाहिर होता है कि वे लोग ऐसी किताबों की तलाश कर रहे थे जिनसे मुझे एक खास प्रोफाइल में दिखाया जा सके। तलाशी में जिन किताबों को जब्त किया गया था, उनमें से दो किताबें उस डिफेंस कमिटी से जुड़ी थी जो जीएन साईबाबा को लेकर बनाई गई थी।”
करीब 9 महीने पहले, जुलाई 2020 में प्रोफेसर की गिरफ़्तारी के बाद 250 छात्रों ने उनके नाम पत्र लिखते हुए विरोध के स्वर में कहा था, “ऐसे शिक्षकों को क्लासरूम से दूर करने का मतलब है कि आप क्लासरूम से बहस को दूर ले जा रहे हैं।” असल में मोदी सरकार कोरोना के बहाने अपने राजनितिक विरोधियों को ख़त्म करना चाहती है ताकि सरकार के काम काज पर सवाल खड़ा करने वाला कोई न बचे। सरकार की नागरिकता संसोधन अधिनियम के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले बहुत से राजनितिक बंदी आज भी जेलों में बंद हैं और अपनी रिहाई की बाट जोह रहे हैं।
अब जेल में क़ैद वही प्रोफेसर हैनी बाबू बीमारी हैं। उन्हें अभी के अभी इलाज की ज़रूरत है। मोदी सरकार उन्हें संविधान में दिए गए अधिकार के तहत, इलाज मुहैया कराए तथा हैनी बाबू समेत तमाम राजनीतिक बंदी को रिहा करे। साथ ही अंध-राष्ट्रवाद, सांप्रदायिक उन्माद, जातिगत हिंसा और पूंजीवादी के गढ़जोड़ से देश नागरिकों का दमन करने से बाज आए।