क्या मोदी युग ख़त्म हुआ ?

प्रेमकुमार मणि

उत्तरप्रदेश के मामलों पर लगभग सप्ताह भर से चल रहे कयासों का दौर अब खत्म हो गया है। अनेक तरह की चर्चा थी। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी से संघ नाराज है, से लेकर योगी की छुट्टी हो सकती है तक की खबरें कानों- कान चल रही थी। लेकिन अब सब कुछ स्पष्ट हो चुका है। योगी केवल वहां बने ही नहीं रहेंगे ,बल्कि अगला 2022 का विधानसभा चुनाव उनके ही नेतृत्व में ,उनके ही नाम पर लड़ा जायेगा। यही नहीं प्रधानमंत्री के फोटो चुनावी पोस्टरों पर नहीं रहेंगे। न केवल उत्तरप्रदेश के चुनाव में ,बल्कि भविष्य के किसी भी प्रादेशिक चुनाव में।

यह फैसला संघ और भाजपा के शीर्ष नेताओं ने अपनी कई दौर की बैठकों में किया है। इन बैठकों में संघ प्रमुख मोहन भागवत, संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , भाजपा आलाकमान जे.पी. नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह और उत्तरप्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल शामिल रहे। दत्तात्रेय होसबले अब उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में ही डेरा डालेंगे और राजनीतिक क्रियाकलापों पर नजर रखेंगे।

इस पूरे घटनाक्रम को आखिर कैसे देखा जाय ? क्या इससे यह संकेत नहीं मिलता कि भाजपा में मोदी -शाह युग का अंत हो चुका है। आप 2009 से 2013 जून तक के समय का स्मरण कर सकते हैं। संभवतः वह 10 जून 2013 की तारीख थी जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था और इससे लालकृष्ण आडवाणी बिदक गए थे। 10 जून 2013 आडवाणी के पराभव की घोषणा का दिन था। आडवाणी फिर कभी नहीं उठे। उनकी मिटटी हमेशा के लिए पलीद हो गई थी।

इतिहास अपने को दुहराता है। एंगेल्स ने कहा है कभी त्रासदी बन कर ,तो कभी परिहास बन कर। क्या भाजपा में यही होने जा रहा है ? एक बार फिर यह जून का महीना है। पहला पखवारा भी। क्या इस बार आडवाणी की तरह नरेंद्र मोदी के पराभव का आरम्भ हो चुका है? और क्या संघ -भाजपा की इस बैठक से यह भी संकेत मिल रहा है कि भाजपा के अगले ( 2024 लोकसभा चुनाव ) के प्रधानमंत्री उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ होंगे ? मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है।

कई और बातें इससे उभर कर सामने आती हैं। अब तक आरएसएस यही कहता रहा था कि उसे राजनीति से कुछ नहीं लेना -देना। वह तो बस एक स्वयंसेवी संस्था है। अब इस बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत और सरसंघकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले की भूमिका जिस तरह से उभर कर आई है उससे स्पष्ट हो गया कि मूल संघ है और भाजपा उसकी माया या छाया भर है। राजनीतिक निर्णय भी भाजपा को नहीं, संघ को करना है। ऐसा लगता है 2025 में आरएसएस जब अपना शताब्दी समारोह मना रहा होगा तब तक उसकी योजना भारत को एक हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देने की है। यह काम यदि एक ‘योगी ‘ द्वारा हो तब संघ को और मजा आएगा। योगी का जो स्वभाव है ,उससे संघ को उम्मीद है कि उसके उद्देश्य में कोई अड़चन नहीं आएगी।

लेकिन हमारे मोदी का क्या होगा ? सुनने में आ रहा कि संघ इन्हे नकारा मान चुका है। बिहार और बंगाल में उनकी चुनावी रैलियों और पोस्टरों का कोई प्रभाव नहीं दिखा। उनकी दाढ़ी और धज भी कोई काम नहीं आया। कोविड महामारी में पूरे देश में जो अफरा -तफरी मची और मौत का जो तांडव हुआ उससे जनता में वह काफी बदनाम हो चुके हैं, आदि -आदि।

लेकिन सच्चाई तो यह है कि सबसे अधिक लापरवाही उस उत्तरप्रदेश में देखने में आई, जिसके मुख्यमंत्री योगी हैं। इसलिए इसे स्वीकार करना होगा कि संघ के लिए जनता की तबाही कोई अर्थ नहीं रखता। मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी के मामले में भी यही हुआ था। 2002 के गोधरा दंगों की भीषणता ने मोदी का चेहरा स्याह नहीं किया, बल्कि वह और सुर्ख हो कर उभरे। तत्कालीन प्रधानमंत्री के राज धर्म वाले कटाक्ष को संघ और पार्टी ने कोई अहमियत नहीं दी थी। अब उसी कड़ी में योगी हैं। उनकी लगातार की विफलताओं का कोई अर्थ नहीं है। भारत की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है। लगभग पूरा सामाजिक ढांचा अस्त -व्यस्त हो चुका है लेकिन इससे क्या ! भाजपा और संघ का मूल उद्देश्य भारत की जनता की सेवा नहीं , हिंदुत्व का उत्थान है। इसे मोदी ने पूरा किया और अब योगी पूरा करेंगे।

तो यह माना जा सकता है कि भाजपा में मोदी -शाह का जमाना चला गया। नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनावों में बड़े परिश्रम से अपनी एक छवि बनाई थी। उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के रास्ते पर चल कर उन्होंने भाजपा को पिछड़े वर्गों से जोड़ा था। देश भर में घूम -घूम कर अपनी जाति सार्वजानिक की। उसके पहले प्रांतीय राजनीति में भले ही जाति का कार्ड खेला गया हो लेकिन शायद ही किसी राष्ट्र -स्तरीय चुनाव में इस तरह जाति कार्ड खेला गया था। मोदी और भाजपा ने यह किया। इसका उसे लाभ भी मिला। लेकिन वह दौर ख़त्म हो चुका। भाजपा को जो करना था वह मोदी को आगे रख वह कर चुका। अब उसे भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है। देखते हैं अब इस योजना का क्या होता है ! लेकिन इतना तो तै है कि बाजपाई से योगी तक की बीजेपी की यात्रा देश को उग्र हिंदुत्व की ओर ले जा रहा है।

(लेखक बिहार विधान परिषद् के पूर्व सदस्य रहे हैं )