क्या पुलिसया राज को ही गुड गवेर्नेंस कहते हैं?

लेखक -संतोष कुमार मण्डल

घरों में शौचालय बनाने की नरेंद्र मोदी जी की मुहिम चाहे जितनी अच्छी लगे, यह गरीबों के लिए असल में एक आफत हो गई है। शर्तें रखी गई हैं कि अगर घर में शौचालय नहीं है तो चुनाव नहीं लड़ सकते, नौकरी नहीं पा सकते, स्कूल में दाखिला नहीं ले सकते।
बिहार में गरीबी रेखा के नीचे वालों को जीविका स्टाफ के माध्यम से गॉव की महिलाओं को यहाँ तक बोले कि तब तक राशन देना बंद करवा देगे, जब तक शौचालय कि प्रमाणपत्र अपके घर मे नही है। लाखों गरीब मारे मारे फिर रहे हैं  कि पहले शौचालय के लिए सरकारी सहायता मिले, फिर सस्ता राशन। जितने दिन नहीं मिलेगा, उतने दिन क्या होगा? गरीब को महंगा राशन खरीदना होगा न? जिस का घर ही दूसरों की जमीन पर डंडे डाल कर फूस बिछा कर बना हो, वह कहां से शौचालय बनवाएगा, इस से राशन अफसरों को फर्क नहीं पड़ता। बिहार सरकार ने शौचालय बनवाने के 12,000 रुपए देंगे ।जब शौचालय बनेगी तब…. पर क्या शौचालय असल में इतने में बन जाएगा क्या ? और अगर न बने तो उस से पंचायत का चुनाव लड़ने का हक छीन लिया गया है।

वह दुहाई देने जाए भी तो कहां जाए, क्योंकि अदालत महंगी है और अफसर को तो आम आदमी का टेंटुआ पकड़ने का मौका भर चाहिए। शौचालय हर कोई चाहता है, पर यह बनाना उतना आसान नहीं है, जितना प्रधानमंत्री के भाषणों, पोस्टरों, नारों से लगता है। जो घर छोटे हैं, जिन में खुली जगह नहीं है, वे कहां बनाएंगे, जिस से बदबू न आए? शौचालय साफ कैसे होगा, लोगो का मानना है अगर 2 गड्ढे वाला शौचालय भी बनाया गया, तो भी वह महीनेभर में भर जाएगा, तो उस को साफ कैसे करेंगे? अगर लोगों का मल जमीन में जाएगा, तो जमीन का पानी मैला हो जाएगा और बीमारियां पैदा होंगी। लोग राशन और बच्चों की दाखला के डर से शौचालय बनाया ।कुछ लोगो ने अपनी इज्जत को देखे, बिहार सरकार का  किया हुआ वादा में गरीव परिवार कर्ज में ढकेल दिया। लोगों ने  महाजन अथवा जीविका से कर्ज़ लिया । मिशन के समय काफी प्रोलोभन दिया गया । एक माह में पैसा आ आजायेगा । लेकिन 2 साल होने जा रहे है। अभी तक गरीव के खाते में पैसे नही आए। जो वाढ और वेंडर मिल कर बनाया। उनके पैसे आगये , लेकिन जीविका समूह से जो शौचालय बनाई गई उसका पैसा आज तक उधार है सरकार के यहाँ । गरीव के पास पैसे तो लगा दी।

अब देखने को मिल रहा है। 12000 रुपये में बंदर बाट की भावना। आखिर गरीव को जीने का मौका कहाँ दे रही है। जो गरीव आस में बैठे थे लेकिन अभी तक पैसे नहीं मिले  उनका ब्याज  कितना होगा?सरकार ने तो यज्ञ करा कर सुखशांति लाने का फैसला सुना दिया. शौचालय यज्ञ कराओ तभी तुम्हारे जीतेजी आत्मा को जिंदा रहने देंगे, वरना मरा समझो।

देश में अगर कुछ हो रहा है तो पुलिस का काम हो रहा है। कश्मीर हो, उत्तरपूर्व हो, असम हो, हैदराबाद में रेप हो, उन्नाव में लड़कियों को जलाना हो, पुलिस ही पुलिस दिखती है।लगता है 2014 और 2019 में हम ने देश को बनाने के लिए नहीं देश में पुलिस राज बनाने के लिए सरकारें चुनी थीं। बिहार से काफी लोग पलायन कर रहे है। देश की 60-70 फीसदी आबादी ऐसे ही रह रही है।यह वह आबादी है जो अछूत नहीं मानी जाती।ये लोग पिछड़ी जातियों के हैं पर आज 71 साल की आजादी और 150 साल की तकनीक के बावजूद जंगलों में रहनेको मजबूर हैं । अब जंगल शहरी हो गए हैं, सच बात तो यह है कि दिल्ली जैसे शहर में मजदूरों के पास रहने की जगह तक नहीं है और उन्हें संकरी गलियों में एकदूसरे से सटे बने मकानों में जो गोदामों की तरह इस्तेमाल होते हैं, काम भी करना होता है और वहीं रहना होता है। उन की जिंदगी उन चूजों की तरह होती है जिन्हें आटोरिकशा, ट्रकों पर लाद कर पौल्ट्री फार्म से मंडियों तक ले जाया जाता है और फिर काट कर खा लिया जाता है।

नागरिकता कानून में बदलाव आम आदमी को देगा कुछ नहीं, पर बेबात का संकट पैदा कर देगा। लंगड़े देश की बैसाखी भी तोड़ दी जाएगी। इस में सब से ज्यादा बुरा उन किसानों, कारखानों के मजदूरों, हुनरमंद लोगों, औरतों, जवानों का होगा जिन का कल काला होता नजर आ रहा है क्यों की इनके पास दिखने के लिए कुछ नहीं और दिखने योग्य कागज बनवाने के लिए न तो धन और न ही समय , क्यों की कतार में खड़े होगये कागज़ बनाने में तो फक्ट्री का पहिया कैसे घूमेगा और इनकी चुल्हा जलेगा कैसे जिससे पेट जैसी भट्टी की आग बुझेगी।