कोरोना से हत्याएं मानवता के खिलाफ अपराध है

शशि शेखर
ये महामारी अप्रत्याशित है, मौत अप्रत्याशित है, मुकदमा भी अप्रत्याशित हो और सजा भी अप्रत्याशित हो। चूंकि, यह जानबूझ कर, इरादतन, इरादतन हत्या है, सामूहिक हत्या है, नरसंहार है, इसलिए इसके समस्त दोषियों के खिलाफ एक याचिका, एक केस, समान आरोप के तहत इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट, द हेग में मुकदमा दायर किया जाए। उस पर त्वरित सुनवाई हो और जल्द से जल्द सजा मुकर्रर हो।
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय इसलिए कि भारत की अदालतें अब “न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत” से दूर हो चुकी है। कार्यपालिका और विधायिका से लोहा लेने की क्षमता ये खो चुका है। कहीं कोई मिड लेवल अदालतें थोडा तेवर दिखाती भी है, किसी राज्य सरकार के खिलाफ, अधिकारी या संस्था के खिलाफ कडा रूख अपनाती भी है, तो उच्चतम न्यायालय सेफ्टी वॉल्व बन कर सामने आ जाता है। फिर इतने बड़े पैमाने पर हत्या के आरोपियों (सत्ताधारियों) के खिलाफ निष्पक्ष सुनवाई की उम्मीद बेमानी है।
चूंकि, अभी देश भर में इरादतरन हत्याएं हो रही है, इसलिए यह जनसंहार है। जनसंहार के केस में निष्पक्ष सुनवाई सत्ताधारियों के सत्ता में रहते हुए बिल्कुल भी संभव नहीं है। दुनिया भर के ऐसे मामलों को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) में लाया जाता है। हाल ही में दो उइगर एक्टिविस्ट्स ने चीनी सत्ता को उइगर प्रांत में जीनोसाइड का आरोपी बनाते हुए इस कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराया है। सुडान, दर्फुर, अफ्रीकन देशों के कई मुकदमें यहां दर्ज हुए भी है, जिसमें जनसंहार को ले कर सजाएं सुनाई गई है।
कोरोना एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या है। इसमे कई देशों के शासकों की भूमिका सन्दिग्ध हैं, तो भारत के आरोपी अपने बचाव में ऐसे मुद्दों को उठा कर इस मुकदमे को एक इंटरनेशनल फॉर्मेट में भी ढाल सकते है। फिर आईसीसी तय करे कि सुनवाई कैसे करनी है आदि…आदि।
अब सवाल है कि क्यों भारतीय सत्ताधारियों के खिलाफ ये केस दर्ज होनी चाहिए?
इसके कई आधार हैं। मसलन, लापरवाही, जिसकी वजह से हजारों जानें गई और अभी भी जा रही है। ये तथ्य हाई कोर्ट, चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थानों के कई बयानों से पिछले दिनों साफ हो चुकी है। इरादतन हत्या की बात इसलिए कि भारत की केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकारें, संसाधन की कमी का रोना नहीं रो सकती। एक्सपर्टीज का न होना कोई बहाना नहीं हो सकता। क्योंकि, प्रारंभिक चेतावनी दी जा रही थी, सबको सबकुछ पता था, फिर भी विधान सभा से ले कर पंचायत तक की चुनावें करवाई गई। मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर कि समय रहते दुरुस्त नहीं किया गया। कोई कंटीज्ंसी प्लान नहीं बनाया जा सका। इसलिए, ये सामूहिक हत्या अंतर्राष्ट्रीय है। ये जनसंहार जानबूझ कर की गई है। अब ऐसा क्यों किया गया, ये एक बहुत ही निष्पक्ष सुनवाई से ही संभव है, जो कि भारतीय न्यायालयों से अपेक्षा नहीं की जा सकती। इसलिए मामला आईसीसी में ही दर्ज कराया जाना चाहिए।
एक सवाल ये भी है कि किन-किन के खिलाफ सामूहिक हत्या या जनसंहार का मुकदमा दर्ज हो?
तो मेरी समझ के हिसाब से कोरोना अप्रत्याशित घटना है, अप्रत्याशित महामारी है, कम से कम मेरी पीढी के लिए। इसलिए, अप्रत्याशित तौर पर ही इसके गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए काम किया जाना चाहिए। केन्द्र से ले कर राज्य सरकारों के मुखिया, संबन्धित मंत्रियों, अधिकारियों और यहां तक कि हर जिला के प्रमुख अधिकारियों समेत मीडिया के मालिकानों-संपादकों के खिलाफ सामूहिक हत्या का मुकदमा दर्ज कराया जाना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय हत्या से ले कर लापरवाही तक के आरोप लगाये जाए। हजार-दो हजार-पांच हजार अभियुक्त हो सकते है बल्कि इससे ज्यादा भी हो सकते है। होने दीजिए। ये मौत अप्रत्याशित है, मुकदमा भी अप्रत्याशित हो। सुनवाई भी अप्रत्याशित हो और सजा भी अप्रत्याशित हो।
अब एक और सवाल हो सकता है कि ये काम करेगा कौन?
तो जवाब बहुत ही सरल है। कोई भी। कोई भी वो शख्स, जो कानूनी तौर पर इस काम के लिये उपयुक्त हो। पीआईएल बेबी से ले कर हैबिचुअल पीआईएल फाइल करने वाला, कोई भी। राजनितिक समूह भी इसके लिए आगे आ सकता हैं। 2011 के बाद से कुंभकर्णी नींद में सोई सिविल सोसायटी ये काम कर सकती है। कोई फ्रेश लॉ ग्रेजुएट ये काम कर सकता है। लाखों की संख्या में काम करने वाले एनजीओ ये काम कर सकते है। कोई भी सक्षम आदमी ये काम कर सकता है।
अंतिम सवाल. क्या ऐसा करना जरूरी है?
बिल्कुल। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर कुछ और होगा। अब धीरज का बान्ध टूटने वाला है। कम से कम ये मुकदमा दर्ज हुआ तो लोगों की घावों पर मरहम लगेगा। सत्ता के लिये ये सेफ्टी वॉल्व का काम करेगा। संस्थाओं को बिखरने से बचा लेगा। वर्ना, घाव नासूर बना, तो फिर 112 इंच का सीना भी जनता के उस गुबार को झेल नहीं पाएगा। इसलिए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय, द हेग में दोषियों के खिलाफ मुकदमा चले।