कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनी का मालिक देश छोड़ कर भागा

सौमित्र रॉय

अगर आप कहते हैं कि नरेंद्र मोदी की सरकार हत्यारी है, तो मैं इसका समर्थन करता हूं। अगर आप कहते हैं कि नरेंद्र मोदी की सरकार धंधेबाज़ है, तो भी मैं आपकी बात से सहमत हूं। पूरा भारत कोविड की दूसरी लहर पर सवार मौत के मातम में डूबा है, और मोदी सरकार लोगों को मौत के मुंह में धकेलने की साज़िश रच रही है। रॉयटर्स ने अभी-अभी सरकारी अधिकारियों के हवाले से खबर दी है कि भारत सरकार विदेशों से एक भी वैक्सीन का आयात नहीं करेगी। राज्य चाहें तो आयात कर सकते हैं।

मोदी सरकार सिर्फ़ घरेलू वैक्सीन, यानी कोविशिल्ड और कोवैक्सीन को ही बढ़ावा देगी। यानी डील हो चुकी है। रॉयटर्स यह भी बता रहा है कि सरकार ने दोनों वैक्सीन कंपनियों को इसी महीने एडवांस में आर्डर भी दे दिया है। लेकिन आज ही सरकार ने दोनों कंपनियों से वैक्सीन की कीमतें घटाने की गुहार भी लगाई है। आप खुद सोचें कि एडवांस आर्डर देने के बाद इस तरह की गुहार का कोई मतलब नहीं होता।

लंदन में टाइम अख़बार को दिए साक्षात्कार में आदर पूनावाला ने माना है कि वो इस वक़्त लंदन में हैं। दरअसल आदर पूनावाला ने इसी साल 25 मार्च 2021 को लंदन में 50 हज़ार पौंड प्रति सप्ताह के किराए पर एक मकान लिया था। तभी से शक़ था कि ये भारत छोड़कर भाग सकते हैं और आज ये खबर आ रही है कि वो लंदन में ही हैं और अपना बिज़नेस फ़ैलाने गए हैं। बताते चलें की अपनी पत्नी और बच्चों को पहले ही लंदन भेज दिया था।

उसने वहां टाइम अख़बार को दिए इंटरव्यू में कहा है कि भारत में फ़ोन पर मिल रहीं धमकियों की वजह से देश लौटने की अनिच्छा जताई है। बताया जाता है कि विदेश मंत्रालय ब्रिटिश सरकार के संपर्क में है। अभी कुछ भी कहना ज़ल्दबाज़ी होगी। मामला तब पेचीदा होगा, अगर पूनावाला ब्रिटेन में शरण मांगता है। ऐसे में सरकार के पास सीरम इंस्टिट्यूट के अधिग्रहण का अधिकार है, साथ ही कंपनी का लाइसेंस रद्द करने का भी अधिकार है हक़ है। अगर ऐसा हुआ तो पूनावाला कुछ भी नहीं कर पायेगा।

यह कदम मोदी सरकार से सीरम की कोविशिल्ड की डील के बाद उठाया गया। अब सीरम ने वैक्सीन के दाम चौगुने तक बढ़ा दिए। भारत के 15 राज्यों के पास तीसरे चरण के लिए वैक्सीन नहीं है। वह भी तब, जबकि कोविड से दुनियाभर में मरने वाला हर चौथा व्यक्ति भारतीय है। बीच में पूनावाला ने मोदी सरकार से सीआरपीएफ की वाय श्रेणी की सुरक्षा भी ले ली।

टाइम अख़बार की खबर के अनुसार पूनावाला अब ब्रिटेन में जाकर वैक्सीन बनाना चाहता है। उसने इसके पीछे भारत के रसूखदार लोगों से फ़ोन पर मिल रहीं धमकियों को वज़ह बताया है। ऐसा लग रहा है मोदी सरकार का वैक्सीन घोटाला आज़ाद भारत का सबसे बड़ा और निर्मम घोटाला साबित होनेवाला है।

पूरी सरकार ने जिस वैक्सीन का प्रचार किया, वह भी आज जान बचाने में नाकाम है। पूनावाला ने जितना कमाना, लूटना था लूट लिया। अब वह भारत छोड़ना चाहता है, क्योंकि अगर सवाल उठे तो इस बात की पोल खुल जाएगी कि कोविशिल्ड को अनुमति मिलने से पहले ही 1 करोड़ डोज़ कैसे बन चुके थे? मोदी सरकार पूनावाला को भगाने में मदद की है क्योंकि वैक्सीन घोटाले के तार सीधे प्रधानमंत्री से जुड़े हैं। याद रहे कि नीरव मोदी, ललित मोदी, विजय माल्या जैसे कई नाम हैं जिनको सरकार पर विदेशों में भगाने के आरोप पहले लग चुके हैं।

एक और बात। साफ़ नज़र आ रहा है कि मोदी सरकार ने वैक्सीन के लिए बजट में आवंटित 35 हज़ार करोड़ दबा लिए हैं। अब मोदी सरकार दोनों घरेलू कंपनियों से उत्पादन का आधा हिस्सा खरीदेगी और बाकी आधा ऊंची कीमत पर बिकेगा। कुल मिलाकर यह राफाल से भी बड़ा घोटाला बनने जा रहा है और वह भी देश में लाखों मौत की कीमत पर। विदेशों से जो कोविड ऐड मिली है वह अधिकांश रेड क्रॉस के जरिये नहीं आयी है। मोदी सरकार उस पर भी 12% GST वसूल रही है। मेडिकल ऑक्सीजन पर 12%, वैक्सीन पर 5%, एम्बुलेंस सेवाओं पर 28%, 1000 रुपये से कम वाली पीपीई किट पर 5% और बाकी पर 12% और कोविड टेस्ट किट, मास्क, वेंटीलेटर और सैनिटाइजर पर क्रमशः 12%, 5%, 12% और 18% GST है।

सीरम इंस्टिट्यूट के सीईओ आदर पूनावाला के ब्रिटेन जाने और वहां वैक्सीन बनाने की योजना के पीछे बिल गेट्स का दिमाग बताया जा रहा है। ये मोदी सरकार की मूर्खता है कि वह वैक्सीन की साज़िश को नहीं समझ पाई या फिर अपने फायदे के लिए जानबूझकर इसे बढ़ावा दे रही है।

सीरम इंस्टिट्यूट का कहना है कि उसने भारत सरकार के साथ 150 रुपये प्रति डोज़ की दर पर सिर्फ 10 करोड़ वैक्सीन देने का समझौता किया था। समझौता चूंकि खत्म हो चुका है, इसलिए उसने अगले उत्पादन के दाम दोगुने-चौगुने कर दिए। लेकिन सीरम को विश्व स्वास्थ्य संगठन, यानी WHO से कई गुना ज्यादा का आर्डर मिला था और वह भी एडवांस में।

कोविशिल्ड के पीछे एस्ट्राजेनेका सिर्फ एक आड़ की तरह है। असल में गूगल और गेट्स फाउंडेशन इस वैक्सीन के पीछे की प्रमुख डेवलपर कंपनियां हैं। दोनों का मकसद भारत के फार्मा उद्योग पर कब्ज़ा जमाना है और कोविशिल्ड इसकी पहली कड़ी है। नीचे का पहला ग्राफ देखें तो पता चलेगा कि जनवरी से मई 2020 के बीच नदी में बहुत पानी बहा है।

दूसरा ग्राफ मई के बाद की सौदा को बताता है कि कैसे GAVI-CEPI सामने आए और एस्ट्राजेनेका ने जून में किस तरह सीरम को 1 बिलियन डोज़ का आर्डर दिया। इसी जून 2020 में भारत ने ग्लोबल साउथ इनिशिएटिव के माध्यम से 10 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर सीरम को मिला। बीच में मोदी सरकार से डील कब और कैसे हुई, यह बड़ा सवाल है। सीरम में कोवैक्स का भी पैसा लगा है।

अब इस पूरे परिदृश्य को देखकर यह साफ हो जाता है कि सीरम ने इतना तो कमा ही लिया है कि पूनावाला ब्रिटेन में पैसा लगा सके। BREXIT के बाद ब्रिटिश सरकार को पूनावाला जैसे निवेशकों की तलाश है। वहां प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की छवि कोविड कुप्रबंधन के कारण बहुत खराब है। ऐसे में उनके लिए पूनावाला में दिलचस्पी जायज़ है। दूसरी बात- सीरम के पास वैक्सीन उत्पादन का फ्री लाइसेंस है। वह कहीं भी वैक्सीन बना सकता है। आपको याद होगा कि महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने पिछले दिनों भारत बायोटेक को 94 करोड़ से ज़्यादा देकर होफकिन्स इंस्टिट्यूट को कोवैक्सीन की तकनीक देने को कहा था। मोदी ने जो चूक की, वह उद्धव ने नहीं की।

आपको यह भी याद होगा कि सीरम के पुणे में 100 एकड़ वाले कैंपस में पिछले साल आग लगी थी। आग लगी थी, या लगवाई गयी थी- ये सवाल आप आज मज़बूती से पूछ सकते हैं। कुल मिलाकर भारत वैक्सीन के अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र में गहरे फंस चुका है। लगता है, देश की बाकी 110 करोड़ अवाम को बिना वैक्सीन के ही मरना होगा।यानी लाशों के इस उत्सव में भी सरकार खूब कमा रही है।फ्री मार्केट में अब बस लाशों की कीमत तय करना बाकी है। ऐसा लगता है मानो ये मूर्दों का शहर है और मूर्दे कभी बोला नही करते। पूरे देश पर कफ़न की चादर छाछायी हुई है और बेशर्म अभी भी मोदी सरकार का बचाव कर रहे हैं। ये बहुत ही अफ़सोस नाक है।

मुझे यकीन है कि फिर भी देश आवाज़ नहीं उठाएगा।