कबाड़ में फूल खिला रही मप्र की महिलाएं

कबार से फूल - source state of the planet
मध्य प्रदेश के सबसे साफ-सुथरे शहरों में एक ग्वालियर भी है, जहां रेलवे स्टेशन के पास फूल बाग़ एक सुंदर उद्यान पहले से है। इसका निर्माण तत्कालीन मराठा शासक माधव राव शिंदे ने करवाया था। वेल्स के राजकुमार ने 1922 में भारत यात्रा के दौरान इसका उद्घाटन किया था। इस फूल बाग़ परिसर में ही ज़ू, संग्रहालय, गुरुद्वारा, मंदिर और मस्ज़िद भी हैं। यह तो रही ऐतिहासिक खूबसूरती की बात, अब पूरे शहर को सुंदर बनाने की दिशा में ग्वालियर नगर निगम की पहल से कबाड़ में फूल खिलाए जा रहे हैं। कलाकार, फटे टायर और प्लास्टिक की बोतलों में फूल खिला रहे हैं।
कबाड़ से फूलदान बनाने की इस मुहिम में शहर के अलावा बाहरी कलाकार भी जुटे हैं। इससे कलाकारों को भी अपना हुनर दिखाने का मौका मिल रहा है। नगर निगम का मानना है कि इससे शहर की ग्रीनरी बढ़ने के साथ ही आम लोगों में भी जागरूकता आ रही है, साथ ही शहर में आधा कचरा अपने आप कम हो रहा है। शहर के गांधी प्राणी उद्यान, बाल भवन सहित आदि पार्कों में पेड़ों के तनों में एंटिक लुक वाले टेबल तैयार किए जा रहे हैं। नगर निगम के कचरे में सबसे ज्यादा प्लास्टिक की बोतलें होती हैं। इन बोतलों में फूल-पौधे रोपे जा रहे हैं।
इसी साल जनवरी में स्वच्छता सर्वेक्षण के दौरान नगर निगम ने शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में आर्ट कैंप लगाए थे, जिनमें उन लोगों को शामिल किया गया, जिनकी इनोवेशन भी अभिरुचि रहती है। इसके पीछे दोहरा उद्देश्य था। एक तो कबाड़ कम होने से शहर साफ सुथरा होगा, दूसरे उसे फूलदान में तब्दील कर शहर की सुंदरता में चार चांद लग जाएंगे। ग्वालियर नगर निगम के आयुक्त विनोद शर्मा कहते हैं कि शहर में निगम ने इसके लिए दो जगह सेंटर बनाए हैं। इनमें एक सिटी सेंटर का उसका खुद का डिपो है, दूसरा फूलबाग बारादरी।
इन कैंपों की खासियत है कि इसमें नगर निगम के मदाखलत विभाग की कार्यवाही में बरामद पुराने सामान को यहां कलाकार नया रूप दे रहे हैं। डिपो में पुराने टायरों पर कलर कर उनके तीन-चार टुकड़े कर दिए जाते हैं। इसके बाद इसमें मिट्टी भरकर उन पौधों को शहर के चौराहों और उन स्थानों पर लगाया जाता है, जहां से लोगों का ज्यादा आवागमन रहता है। इससे शहर में ग्रीनरी बढ़ेगी, साथ ही लोगों की सोच में भी बदलाव आ रहा है। इस समय डिपो में पांच सौ से अधिक पुराने टायरों की पेंटिंग की जा रही है।
मध्य प्रदेश में एक इसी तरह का और अनोखा प्रयोग नीमच की महिलाएं कर रही हैं। लोग घरों में उपयोग करने के बाद पॉलीथिन कचरे में डाल देते हैं। वहां से जमा पन्नी-पॉलीथिन बीनने वाले इसे आकाश स्व-सहायता समूह की महिलाओं को बेच देते हैं। वही महिलाएं अपनी कला से उन पॉलीथिन की थैलियों में रंग-बिरंगे फूलों के गुलदस्ते तैयार कर एक-एक गुलदस्ता तीस-तीस रुपए में बेच रही हैं। कुछ माह पहले की बात है, नीमच कैंट और सिटी की बेरोजगार महिलाओं को काम की तलाश थी। ऐसी बारह महिलाओं ने स्वरोजगार के लिए ‘आकाश स्व-सहायता समूह’ बनाया। शशि अध्यक्ष और मीरादेवी सचिव बन गईं। इसके बाद उन्होंने कुछ नया कर दिखाने का निर्णय लिया। उन्होंने वेस्टेज पॉलीथिन से फूल-गुलदस्ते बनाने की योजना बनाई।
उनको पॉलीथिन से फूल बनाने की पहले से जानकारी थी। इसके बाद उन्होंने स्वास्थ्य अधिकारी विश्वास शर्मा से संपर्क कर योजना को आगे बढ़ाया। समूह में करीब सौ महिलाएं इस काम में लग गई हैं। एक गुलदस्ता बीस मिनट में तैयार हो जाता है। दस महिलाएं मिलकर दिनभर में करीब सौ से ज्यादा गुलदस्ते बना लेती हैं। उनको नगर पालिका से एक गुलदस्ते के पचास रुपए मिल जाते हैं। इन महिलाओं ने सैंपल के तौर पर करीब सौ गुलदस्ते दिल्ली की और पचास इंदौर की संस्थाओं को भेजे हैं। उन्हे और भी शहरों से ऐसे गुलदस्ते भेजने के ऑर्डर मिल रहे हैं। इससे महिलाओं की महीने के अच्छी कमाई तो हो ही रही है, वेस्ट पॉलीथिन का भी सही उपयोग हो रहा है।