कट्टरपंथियों के ख़िलाफ़ एक साथ आवाज़ उठाने की ज़रूरत

“आग का क्या है पल दो पल में लगती है,
बुझते- बुझते एक ज़माना लगता है”- कैफ़

नीचे जो तस्वीर दिख रही है आप सभी को उसके पहले दृश्य में उत्तर प्रदेश, मथुरा के भरत यादव की विधवा और मासूम बेटी है। भरत यादव को कुछ कट्टरपंथी मुसलमान सिर्फ़ इसलिए मौत के घाट उतार देते हैं क्योंकि उन्होंने उन जालिमों से अपनी बेची हुए लस्सी का पैसा माँगा था।

तस्वीर की दूसरी दृश्य में झारखंड के तबरेज़ अंसारी की पत्नी है और तबरेज़ भी धार्मिक कट्टरपंथियों की नफ़रत का शिकार हो गया जिसे चोरी की शक पे पीट पीटकर मार दिया गया।

सोचने वाली बात ये है कि हम कैसे समाज की कल्पना कर रहें हैं जिस समाज में एक भीड़ नामक ख़ूनी मासूमों को कभी गाय के नाम पे तो कभी भगवान श्री राम के नाम पे, तो कभी लस्सी के पैसे के वजह से क़त्ल कर दे रहे हैं और हम सब, हमारी सरकारें कुछ नहीं कर पा रही है।

हम सब को अपने धार्मिक नज़रिए को बदलने की ज़रूरत है और अब एक साथ मिलकर ऐसे हर मासूमों के लिये आवाज़ उठाने की ज़रूरत है। भले ही आप किसी अलग धर्म, अलग जाति,अलग विचारधारा या अलग दल के हों लेकिन इन सारी विभिन्नताओं के बावजूद हमारी शनाख्त भारतीय हैं और भारतीय होने के नाते हमारा फ़र्ज़ है कि जो हमारे देश में ये अचानक से नफ़रत की आग लगी है उसे बुझाया जाए और मोहब्बत को ज़िंदा रखा जाए।क्योंकि हम आपस में ही लड़ते रहेंगे और एक दूसरे से नफ़रत करते रहेंगे तो फिर कुछ नहीं बचेगा और ये नफ़रत की आग सब को जलाकर राख कर देगी!

इसलिए चाहे भरत यादव हो या फिर तबरेज़ अंसारी हो जिसे कुछ धार्मिक कट्टरपंथियों ने अपनी नफ़रत का शिकार बना लिया है हमें उन कट्टरपंथियों के ख़िलाफ़ एक साथ मिलकर आवाज़ उठाने की ज़रूरत है ताकि भरत यादव और तबरेज़ के क़ातिलों को सख़्त से सख़्त सजा मिले और फिर से कोई मासूम इन कट्टरपंथियों और ख़ूँख़ार हो चुकी भीड़ का शिकार न बने।

शाहनवाज़ आलम