ऑस्ट्रेलिया में फिलिस्तीन पर इसरायली हमले के खिलाफ प्रदर्शन

सुल्तान अहमद
ऑस्ट्रेलिया में प्रदर्शनकारी गाजा में इजरायली सैन्य हमलों के खिलाफ दुनिया भर में रैलियों में शामिल हुए। हज़ारों लोगों ने ऑस्ट्रेलिया के बड़े शहरों सिडनी , मेलबोर्न और पर्थ में फिलस्तीन पर इजराइल के कायराना हमले का विरोध किया। अभी हाल के दिनों में ऑस्ट्रेलियाई और फिलिस्तीनी मानवाधिकार समूह ने ऑस्ट्रेलियाई सरकार से अपील की थी कि इजराइल के साथ संभावित मुक्त व्यापार समझौता के प्रयास को तुरंत बंद कर देना चाहिए और समूह ने ग़ज़ा और पूर्वी जेरूसलम पे हमले की भी निंदा की थी।
इजरायल ने शनिवार तड़के गाजा पट्टी पर ताबड़तोड़ हवाई हमले किए। गाजा सिटी में एक घर पर हवाई हमले में कम से कम सात फिलिस्तीनियों की मौत हो गई. इससे अहले टैंक से किये गए इसरायली भीषण हमले में एक ही परिवार के 7 सदस्यों में से 6 की मौके पर ही मौत हो गयी और एक छोटा बच्चा चमत्कारिक रूप से बच गया। चौकाने वाली बात ये है कि इसराइली हमलावर छोटे बच्चों, बूढ़ों, औरतों , स्कूल , अस्पताल , रेफूजी कैंप को निशाना बनाने से बाज नहीं आ रहे जो की सरासर युद्ध के नियमों के खिलाफ है।

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष अब युद्ध तक पहुंच चुकी है। इजरायल और फिलिस्तीन, दोनों एक दूसरे को निशाने पर ले रहे हैं और सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और हज़ारों घायल हैं। दुनियाभर के देशों ने दोनों देशों के तनाव कम करने की मौखिक अपील की है लेकिन हालात और तनावपूर्ण बढ़ते जा रहे हैं। अमेरिका समेत ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने इजरायल और फिलिस्तीन से शांति बहाली की खोखली अपील की है लेकिन वहीँ अमेरिका ने फिलिस्तीन पर इजराइली हमले की का समर्थन भी किया है. बाइडेन प्रशासन ने इजराइल के हमले पर कहा है कि इजराइल को आत्मरक्षा का अधिकार है और वो अपनी रक्षा के लिए हमला कर सकता है। ये दोहरी निति नहीं तो और क्या है ?
अमेरिका ने गाजा पट्टी और इज़राइल में बढ़ते संघर्ष को संबोधित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक सार्वजनिक ऑनलाइन मीटिंग को वीटो कर दिया। चीन, ट्यूनीशिया और नॉर्वे ने शुक्रवार को खुली बैठक का अनुरोध किया था, लेकिन अमेरिका ने कहा, “कल एक खुली बैठक इन प्रयासों का समर्थन नहीं करेगी।” अमेरिका ने बुधवार को बढ़ती हिंसा के संबंध में सुरक्षा परिषद के एक बयान को अवरुद्ध कर दिया क्योंकि इजरायल ने फिलिस्तीनी समूहों के लगातार रॉकेट हमलों के बीच घनी आबादी वाले गाजा में हवाई हमले जारी रखे हैं। हालाँकि इजराइल और फिलिस्तीन दोनों से फौरी तौर पर संघष विराम का खोखला अनुरोध किया गया है। अमेरिका का एक बार फिर दोहरा चेहरा सामने आया है। याद रहे की किस तरह हिलरी क्लिंटन ने ओबामा प्रशाशन के दौरान इराक और सीरिया में आईइसआईइस बनाने का पर्दाफाश हुआ था। अमेरिका का हमेशा से दोहरा मापदंड रहा है।

सेव द चिल्ड्रेन नामक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने पुष्टि की है कि ग़ज़ा घाटी में इजराइली हवाई हमले में कम से कम 31 स्कूल और हॉस्पिटल पूरी तरह से तबाह हुए हैं। इसरायली सेना आम लोगों को घरों में घुस के मार रही है वहीँ पूरी दुनिया दुनिया ख़ामोशी से ये सब होते हुए देख रही रही है। अभी 15 मई को इसरायली सेना ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान अल-ज़जीरा के ऑफिस पे भी हमला किया है। अल-ज़जीरा के ऑफिस पर हलमा किया जाना काफी शर्मनाक है और ये पुष्टि करता है कि आज़ाद आवाज़ को इजराइल किस तरह से दमन करना चाहता है। इसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है।
सबसे भयावह खबर ये है कि पूरी दुनिया के बड़े मीडिया संस्थानों ने अपनी रिपोर्टिंग में इजराइल को शिकार और फिलिस्तीन को शिकारी की तरह लोगों को परोसा है। चाहे वह बीबीसी हो, सीएनएन हो, वाशिंगटन पोस्ट हो या फिर न्यू योर्क टाइम्स हो सबसे इजराइल का बहुत ही भोला भाला शरीफ देश दिखाने की कोशिश की है। भारतीय मीडिआ संसथान भी इसमें बढ़ चढ़ के हिस्सा ले रहे हैं। खास तौर से हिंदी मीडिया भी इजराइल को शिकार की तरह परोस रही है। हिंदी मीडिया का इस्लामॉफ़ोबिआ उसकी रिपोर्टिंग में बिलकुल साफ़ झलक रही है। जबकि भारत शुरू से फिलिस्तन का हिमायती रहा है और उसके लिए आवाज़ भी उठाई है। फिलिस्तीनी आंदोलन के बड़े नेता रहे यासिर अराफात इंदिरा गाँधी को अपना बहन मानते थे लेकिन सत्ता परिवर्तन से सब कुछ बदल दिया है। गोदी मीडिया का रुख भी इसी सत्ता परिवर्तन की बानगी है।

मोदी सरकार इजराइल से मधुर सम्बन्ध बनाना चाहते हैं तो भक्तों को भी लगता है की उनको भी इजराइल से सम्बद्ध बना के रखना चाहिए। यहां तक की ये नफरती चिंटू जो खुद बेरोजगार हैं और अपने घर में लाले पड़े हैं लेकिन इसरायली सेना में भर्ती होकर फिलिस्तीन मतलब मुसलमानों को सबक सिखाना चाहते हैं। एक बात बहुत ही महत्वपूर्ण है कि इसरायली गो मांस खाते हैं, मूर्ति पुर्जा के बिलकुल खिलाफ होते हैं और मुसमानों की तरह खतना भी करवाते हैं। मतलब सारी मान्यताएं हिन्दू धर्म के खिलाफ होने के बावजूद हो इजराइल को इस लिए समर्थन करते हैं /कर रहे हैं क्योंकि इजराइल फिलिस्तीन में मुसलमानों को सबक सीखा रहा है। मतलब जिस तरह मोदी मुसलमानों को भारत में टाइट करके रखते हैं वहीँ इजराइल फिलिस्तीन और अरब देशों में मुसलमानों को टाइट करके रखता है। इस्लामॉफ़ोबिआ और मानसिक दिवालियेपन की ये अंतिम पराकाष्ठा है।
इसी बीच खबर आ रही है कि सीरिया ने इजरायल को निशाना बनाकर 3 राकेट दागे हैं। इजरायली सेना ने इसकी पुष्टि की है। यानी, अब मामला सिर्फ इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का नहीं रह गया है। सीरिया भी मोर्चा खोल रहा है। सीरिया के कंधे पर रूस का हाथ है। रूस को अब्राहम समझौते से हमेशा ऐतराज़ रहा है। हमास को मिसाइल बनाने में ईरान ने मदद की। तुर्की भी इजराइल से हिसाब बराबर करना चाहता है। अब दबाव अरब मुल्कों पर समझौता तोड़ने का बढ़ रहा है। दुनिया फिर एक जंग की ओर बढ़ती दिख रही है।