एल एन एम् यु,और पूर्णिया विश्व् विद्यालय के शिक्षकों को वेतन के लाले,कड़ाह रहे शिक्षक

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय,दरभंगा और पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया तथा उन दोनों विश्वविद्यालय क्षेत्रान्तर्गत आने वाले सभी अंगीभूत महाविद्यालयों के शिक्षकों के साथ राज्य सरकार सातवें यूजीसी वेतनान्तर के भुगतान में भेदभाव और सौतेला व्यवहार कर रही है। ज्ञातव्य है कि अप्रील,2019 से फरवरी 2020 तक की यूजीसी वेतनान्तर की राशि उक्त दोनों विश्वविद्यालयों को छोड़कर सभी विश्वविद्यालयों को एक माह पूर्व ही भेज दी गईं है,सभी जगह भुगतान की प्रक्रिया जारी है।परन्तु सरकार और शिक्षा विभाग के मंत्री और नौकरशाहों की आपराधिक लापरवाही के चलते अकारण ल.ना.मिथिला विश्वविद्यालय और पूर्णिया विश्वविद्यालय के शिक्षक उससे वंचित रखे गये हैं । आज यहाँ जारी प्रेस बयान में अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संगठन (AIFUCTO) के राष्ट्रीय महासचिव प्रो(डॉ) अरुण कुमार ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर इस पर अविलंब संज्ञान लेते हुए उक्त दोनों विश्वविद्यालयों को राशि उपलब्ध कराने की माँग की है।

डाॅ अरुण कुमार ने मुख्यमंत्री को प्रेषित पत्र में गुहार लगाते हुए राज्य के अवकाश प्राप्त राज्य के विश्वविद्यालयों के हजारों शिक्षकों के पेंशन पुनरीक्षण के भुगतान का अंतर भी आजतक लंबित है जो घोर चिंता का कारण है। अपने पेंशन पर निर्भर अपना जीवनयापन कर रहे सूबे के ये हजारों शिक्षक कोरोना की अपातकाल में भी अपने वाजिब हक के लिए अप्रील, 2017 से आजतक पेंशानान्तर राशि की बाट जोह रहे हैं।उसी तरह माननीय सर्वोच्च न्यायालय और सिन्हा आयोग के स्पष्ट आदेश के बावजूद चतुर्थचरण के सैकड़ों शिक्षकों का वेतन और बकाये की राशि का भुगतान 2009 से आजतक लंबित है और बिहार सरकार और शिक्षा विभाग उसपर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं, मानो इसकी उन्हें कोई चिंता ही नही। डॉ कुमार ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में सवाल उठाया है कि बिहार सरकार शिक्षा जगत में हो रहे उथल-पुथल से लगता है ,पूरी तरह ऑखें मूॅद रखी है। इसीलिए ” न्याय के साथ विकास “का सिद्धांत शिक्षा जगत और शिक्षकों के लिए शायद नही लागू होता है(?)।तभी तो मानवीय संवेदनाओं और लोकतांत्रिक परंपराओं को ताक पर रखकर अनुदानित माध्यमिक विद्यालयों,इन्टर महाविद्यालयों के लिए मंत्रीमंडल से मंजूर 630 करोड की राशि आज तक शिक्षकों को नही मिल पा रही है। उसी तरह संबद्ध डिग्री महाविद्यालयों के शिक्षक-कर्मियों के लिए 624 करोड़ का प्रस्ताव महीना भर से मंत्रीमंडल के समक्ष लंबित है।संबद्ध डिग्री महाविद्यालयों को 2012 से और इन्टर महाविद्यालयों के शिक्षक-कर्मियों को 2014 से भुगतान का इंतजार है।

सरकारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा तो लाखो हडताली शिक्षकों के साथ सरकार की शत्रुतापूर्ण रवैया में स्पष्ट दिखता है कि तीस से ज्यादा शिक्षक कालकलवित हो चुके हैं फिर भी मानवीयता की सीमा लाॅघकर बिहार सरकार वार्ता करने की कोई पहल तक नही कर रही और ऊपर से वैश्विक महामारी के दौर भी उनके कार्यावधि का वेतन रोककर लोकतंत्र के सारे मानकों को तार-तार कर रही है।