एक नया मज़दूर जिसे कहते सामाजिक कार्यकर्ता?

लेखक – रफ़ी अहमद सिद्दीकी
पैरों में टूटी हवाई चप्पल, अपने अँगूठे से समहाने की कोशिि करता एक मासूम, कंपननयों की सीढ़ियों पर उतरते-चिते, उदास चेहरा और कुछ तलाि करती सी नज़रें… हाथों में एक बड़ा प्लास्टटक का बोरा, जिसमें किताबें नहीं ख़ाली है वह, उस खाली बोर को भरने के नज़रें इधर-उधर नज़रें बड़े सिद्दत के साथ तलाश रही हैं ,सीढ़ियों के किनारे रखा एक बॉक्स..,जिसमें ऑफिस का कूड़ा और यह इसके काम का नहीं – सिवाय इन बच्चों के. जिन्हें उस बॉक्से से ढूंढकर खाली बोरे में भरना है और उसे नीचे खड़ी कूड़े की गाड़ी में डालना है. वह कूड़े वाली कंपनी का ग़ुलाम है. इन बच्चों के नाम पर चल रहे हैं हजारों संगठन, हजारों योजनायें – सरकार और सरकार को चलाने वालों के विकास के लिए योजनायें रहेंगी तब तक सरकार भी रहेगी और सरकार रहेगी तो योजनायें कभी खत्म नहीं होंगीं. हर पुरानी योजना की लाश पर एक नई योजना का जन्म होता रहता है.
सरकारें करोड़ों लोगों की जिम्मेदारी उड़ाने को तैयार रहती है और करोड़ों में बहुत सारे बच्चे कूड़ा बीनते नज़र आते ही रहते हैं . योजनायें हैं तो उनकी खामियां लाज़मी हैं. अगर खामियां हैं तो खामियां को दूर करने की योजनायें भी हैं . योजनाओं की बारिश बारिश का सिलसिला पिछले कई सदियों से बदस्तूर जारी है और इंसाननयत की- सम्मान की- ज़मीन है की सूखती ही जारही है इन दो पहलुओं में गुज़रती बेतादाद मजदूरों की जिंदगियां आज हज़ार शक्लों में घुल मिल रही है . कभी बाल मजदूरी तो कभी , तो कभी महिला मज़दूर ,तो कभी सॉफ्ट मजदूरी तो कभी हार्ड मजदूरी ऐसे ही न जानें कितनी ही मज्दूरियां बनती रहती हैं इन मजदूरों की अलग अलग पहचान बनती रहे इसके लिए एक और मजदूरी है सामाजिक मजदूरी जिसने समाज में गहरी पैठ बना ली है. आजकल कल सामजिक कार्यकर्ता के नाम से जाना जाता है . इन मजदूरों की नयी-नयी कम्पनियाँ खुल रही हैं. इन कम्पनियों का वादा है विकास -गरीबों को अमीर बनाने का सपना बेचते हैं. इसको बनाये रखने के लिए CSR िैजैसा नया विभाग तैयार किया गया है और इस विभाग को कानून के दायरे मेंशामिल किया जा चूका है है. CSR के जरिये मज़दूरों को स्किल सिखाई जा रही है – ये कंपनियों के मजदूरों को स्किल मज़दूर बनाने का काम करती है ताकि इण्डिया में स्किल मजदूरों का पुरे विश्व में बजा बजने लगे .
डरी हुईं कम्पनियां CSR जैसे विभागों को पैदा करने को मजबूर हैं. हम मज़दूरों की बेतादाद आबादी देखकर घबराई हुई कम्पनियां इंसान को मशीन नहीं बना पा रही हैं. अब इन्सान को इन्सान बनाने का काम शुरू किया जा रहा है. मिदूरों को सभ्य मज़दूर बनाना ज़रूरी है. बहुत असभ्य हो गए हैं सर झुका कर सब कुछ मानते चलने वाले मजदूरों को ही इंसान कहा जाता है. कॉपोरेट शोसल रेस्पोंसिबिलिटी (CSR) क्या है? मिदूरों को बैल बनाने के लिए काम करवाना. पर कोई मशीन इसे नहीं चला सकती है, इसके लिए सामाजिक कार्यकर्ता यानी एक और मज़दूर चाहिए .. जिन्दा इंसान चाहिए . और इन्सान है तो सोच भी सकता है. ऐसे में ब्रेख्त की कवितायेँ याद आरही हैं
जनरल ! तुम्हारा टैंक
एक शक्तिशाली वाहन है
वह जंगलों को रौंद देता है
और सैंकड़ों लोगों को चपेट में लेता है
लेकिन उसमें एक दोष है उसे एक ड्राइवर चाहिए
जनरल ! तुम्हारा बमवर्षक जहाज शक्तिशाली है
तूफ़ान से तेज उड़ता है
एक हाथी से ज्यादा वजन उठाता है
लेकिन उसमें एक दोष है उसे एक कारीगर चाहिए
जनरल ! आदमी बहुत उपयोगी होता है वह उड़ सकता है और हत्या भी कर सकता है
लेकिन उसमें एक दोष है वह सोच सकता है ?