आरएसएस की योजना प्रज्ञा ठाकुर को मध्यप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की भूमिका में लाने की

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अभी यह कहने की स्थिति में कोई भी राजनैतिक जानकार नहीं है कि भोपाल संसदीय सीट पर कांग्रेस के दिग्विजय सिंह जीतेंगे या भाजपा की प्रज्ञा ठाकुर ? भले ही पिछले 30 साल से यह सीट भाजपा जीतती रही है।

सभी तथ्यों का विश्लेषण कर पाते हैं कि कुछ दिग्विजय के पक्ष में हैं, कुछ प्रज्ञा के पक्ष में। दिग्विजय का नाम कई दिन पहले ही घोषित हो गया था, इसलिए उन्हें प्रचार का भरपूर समय मिल गया। नवम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में भोपाल संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस का प्रदर्शन 2014 के मुकाबले बेहतर रहा। इसका फायदा दिग्विजय को मिल रहा है। 3 मंत्री उनके लिए काम कर रहे हैं। स्वयं मुख्यमंत्री कमलनाथ उनके लिए प्रयासरत हैं। नर्मदा की पैदल परिक्रमा से भी हिन्दुओं के मन उनके प्रति धारणा बदली है। प्रज्ञा के खड़ा होने से मुस्लिम वोट और दलित व पिछड़ा वर्ग का वोट दिग्विजय को बहुतायत में मिलने की संभावना है।
प्रज्ञा के लिए सबसे अनुकूल परिस्थिति है- उनको जिताने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) पूरी ताकत लगाएगा, क्योंकि संघ दिग्विजय को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है। संघ नेता ही आलोक शर्मा, आलोक संजर, कृष्णा गौर बड़े स्थानीय नेताओं को प्रज्ञा के पक्ष में काम करने के लिए  तैयार करेगा। प्रज्ञा को इन नेताओं से भितरघात का अंदेशा रह सकता है।
नरेन्द्र सिंह तोमर भोपाल से टिकट चाह रहे थे। संघ तैयार नहीं हुआ। इधर, भाजपा आलाकमान ने साधना सिंह को विदिशा से टिकट न देकर शिवराज सिंह चौहान को नाराज कर दिया है। शिवराज को मध्यप्रदेश विधानसभा में विपक्ष का नेता न बनाकर पहले ही संदेश दिया जा चुका है कि अब और नेताओं को मौका देंगे।

प्रज्ञा जीतीें तो यह तय है कि वह मध्यप्रदेश में योगी आदित्यनाथ जैसा स्थान लेंगी। संघ नेतृत्व की ‘प्लानिंग है कि भविष्य में प्रज्ञा को मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में प्रस्तुत किया जाए। क्योंकि उमा भारती की आक्रामक हिन्दूवादी नेता के रूप में छवि अब धुंधली पड़ गयी है। शिवराज की 15 साल की लोकप्रियता अब पिट चुकी है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हिन्दू आतंकवाद फैलाने का जो आरोप प्रज्ञा ठाकुर पर लगा, उससे संघ भी बदनाम हुआ है, इसलिए प्रज्ञा को आगे लाकर संघ यह संदेश देना चाहता है कि हिन्दुत्व के लिए काम करने पर उसके कार्यकर्ताओं को वर्षों तक जेल में रहना पड़ता है।

भोपाल सीट पर कायस्थ बहुतायत में हैं। प्रज्ञा को टिकट मिलने से उनका वोट बैंक बट सकता है। अभी तक भाजपा उदारवादी चेहरे को मैदान में उतारती रही है, जिसकी विकासवादी छवि रही है। पढ़ा-लिखा कायस्थ मतदाता कट्टरता से परहेज करता है। अभी तक कुछ प्रतिशत में मुस्लिम मतदाता भी भाजपा को जाता रहा है, लेकिन इस बार ऐसा असंभव है।
कर्मचारियों के प्रभाव वाले भोपाल लोकसभा क्षेत्र में अब 2002-2003 जैसी स्थिति तो नहीं है, जब शत-प्रतिशत शासकीय कर्मचारी दिग्विजय सिंह से नाराज थे। फिर भी वर्तमान में कर्मचारियों का एक वर्ग है जो दिग्विजय को अभी भी अपने लिए प्रतिकूल पाता है। भले ही दिग्विजय सिंह कर्मचारियों से माफी मांग चुके हों।
प्रदेश में अन्य स्थानों की तरह भोपाल लोकसभा क्षेत्र में भी अघोषित बिजली कटौती होने लगी तो विपक्षी भाजपा ने इसके लिए दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। विपक्ष के आरोप थे कि सरकार तो दिग्विजय चला रहे हैं। दिग्विजय को यह कुप्रचार भी भारी पड़ सकता है।
मिस्टर बन्टाधार वाले भाजपा के पुराने आरोप को जड़-मूल से खत्म करने के लिए दिग्विजय खेमे को बहुत कुछ करना होगा।
भोपाल सीट पर साम्प्रदायिक तनाव न हो, इसके लिए शासन-प्रशासन को अत्यधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है। किसी पक्ष को लगता है कि इससे उसे लाभ हो सकता है।
यह भी सुनने में आरहा है कि दिग्विजय के सलाहकारों ने उन्हें सलाह दी है कि चुनाव के दौरान अपनी जुबान पर काबू रखें। अन्यथा भाजपा इसका फायदा उठा सकती है। भाजपा दिग्विजय को मुसलमानों का हितैषी और हिन्दुओं का विरोधी बताती रही है।
प्रज्ञा ठाकुर के प्रताड़ना संबंधी आरोपों पर कांग्रेस कह सकती है कि शिवराज शासन काल में ही दो बार प्रज्ञा को गिरफ्तार किया गया था और तब प्रज्ञा समर्थकों ने शिवराज को खूब कोसा था

प्रदीप मांढरे