आदरणीय मोदी जी को जीत की बहुत – बहुत बधाई

Indian Prime Minister Narendra Modi gestures as he delivers his Independence Day speech from The Red Fort in New Delhi on August 15, 2016. Prime Minister Narendra Modi said India was becoming the world's most attractive destination for foreign investors, using his annual Independence Day speech to trumpet sweeping tax reforms designed to spur growth. In an address from Delhi's 17th-century Red Fort, Modi sought to highlight his government's achievements, including the recent passage of a landmark tax reform, that have contributed to India's robust growth during a global slowdown. / AFP / MONEY SHARMA (Photo credit should read MONEY SHARMA/AFP/Getty Images)

सहसा याद आया । बस तीन साल पहले 2016 की बात है । मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला पीपुल्स रिइंसर्जेंस एंड जस्टिस अलाएंस नाम की पार्टी बनाकर मणिपुर की थउबल विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में थीं । वह सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा) के ख़िलाफ़ 16 वर्ष तक भूख हड़ताल पर रहीं । उन्हें मात्र 90 वोट ही मिले ।

समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर ने ट्वीट किया था — ‘ कम से कम 90 लोगों में कुछ नैतिकता और कुछ आशा बची थी । ‘
कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा – ‘ इरोम शर्मिला, तुम को तुम्हारे राज्य में केवल नब्बे वोट मिले हैं । तुमने स्त्रियों की सुरक्षा के लिए सोलह साल अनशन उपवास रख कर संघर्ष किया । क्या इस राज्य में नब्बे ही औरतें थीं? नहीं, वोट इसलिये नहीं मिले क्योंकि तुम्हारे ऊपर किसी आका की कृपा नहीं थी, तुमने अपने संघर्ष के दम पर यह फ़ैसला लिया था । मगर हमारे देश की स्त्रियां अपना फ़ैसला आज भी अपने पुरुषों पर छोड़ती हैं । ‘

संजीव सचदेवा ने फेसबुक पर लिखा — ‘ इरोम शर्मिला तेरी हार और तुझे मिले हुए मात्र 90 वोट साबित करते हैं कि जनता को उसके लिए भूखे रहने वाले नेता नहीं बल्कि हवाई जहाज से उड़ने वाले नोट छीनने वाले खाऊ नेता ही पसंद हैं । तेरी हार यहां के प्रजातंत्र के गिरे हुए स्तर को साबित करती है.’

फिलहाल माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को 2014 से भी शानदार और उड़ते रंगों की जीत के लिए बहुत – बहुत बधाई । मुझे यकीन है वह देश को समृद्धि और प्रगति की ओर ले जाएंगे । ‘ सबका साथ , सबका विकास ‘ अवधारणा जमीन पर दिखने भी लगेगी ।
लेकिन जनता का वह नजरिया और बदला मिजाज भी मुझे समझना होगा जो कन्हैया कुमार और आतिशी मार्लेना को किनारे कर , साक्षी महाराज या प्रज्ञा ठाकुर को माथे बिठा लेता है ।

मुझे खुद पर कोफ्त हो रही है कि मैं बस 5 – 6 साल में अपने समाज का यह बदलाव कैसे नहीं देख सका । कन्हैया कुमार जो देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का शोध छात्र , पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और प्रतिरोध की एकमात्र सशक्त युवा आवाज रहा है । जिसपर लगा देशद्रोह का आरोप साबित नहीं हुआ । आतिशी मार्लेना जो देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित , दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कालेज से ग्रेजुएट और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट है। जिसका अकादमिक करियर और सामाजिक योगदान अतुल्य है । मुझे उस समाज को समझना है जो ऐसे लोगों को किनारे कर देता है । उन्हें तवज्जो नहीं देता।

हम आखिर कैसे लोगों की संसद डिजर्व करते हैं ? देश और लोकतंत्र की दशा – दिशा समझने में अपने फेसबुक मित्रो से आग्रह है , मेरी मदद जरूर करें ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को ऐतिहासिक जीत और कुछ अविस्मरणीय , जनोन्मुखी कर गुजरने के प्रशस्त पंथ की पुनः बधाई।

राघवेंद्र दुबे (साभार फेसबुक )