आंकड़ों की बाजीगरी में उलझी मनरेगा योजना
सुल्तान अहमद – ग्राम वाणी फीचर्स
देश में इस वक्त तीन चीजें मसला बनी हुईं हैं, कोरोना, मनरेगा और चुनाव. सरकारों का फोकस पहले दो विषयों से हटकर सिर्फ चुनाव तक सिमट गया है पर चुनाव जीतने के लिए भी इन दो मसलों पर बात करना जरूरी है. इसलिए आंकड़ों का मकड़जाल तैयार हो रहा है. अब जानिए क्या कहते हैं राज्य ,राजस्थान सरकार का कहना है कि उसने कोरोना के समय 54 लाख लोगों को रोजगार दिया. उत्तर प्रेदश का आंकड़ा 70 लाख जबकि गुजरात का कहना है कि उसने 6.7 लाख लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार दिया है. हरियाणा का दावा है कि वह मजदूरों को 309 रुपए प्रति दिन मजदूरी का भुगतान कर रहा है. लेकिन कोई भी राज्य ये नहीं कहता की प्रत्येक व्यक्ति या परिवार को इस कोरोना काल में अधिकतम कितने दिन काम दिया और भुक्तान कितने दिनों में मिला . मीडिया भी इन सरकारी दावों के आगे नतमस्तक है इसलिए चारो ओर बस हरियाली नजर आती है.
कुल मिलाकर मनरेगा योजना आंकड़ों की बाजीगरी में उलझ गई है. पर सवाल ये है कि क्या मनरेगा का मकसद संख्या बल बढ़ाना था? क्या मंरेगा सही मायने में लोगों और खास कर घर लौटे प्रवासी मज्दोरों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा , क्या उनकी मांगें पूरी की गयी? क्या मनरेगा अपने उस लक्ष्य के आसपास भी नजर आती है? जिसके लिए परिकल्पना की गयी थी? सरकारी जुमलेबाजी से हटकर मोबाइलवाणी के साथ जानिए इस मनरेगा की ऊपरी चकाचौंध के नीचे कितना अंधेरा है…?
काम है, करने वाले हैं पर काम नहीं देना
हाल ही में लोकसभा सत्र के दौरान पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि लॉकडाउन के कारण मनरेगा में इस वर्ष 22.49 करोड़ लोगों ने रोजगार मांगा है जो पिछले वर्ष के मुकाबले 38.79% ज्यादा है. पिछले वर्ष काम मांगने वालों की संख्या 16.2 करोड़ थी. इतना ही नहीं इस वर्ष 8.29 करोड़ लोगों को मनरेगा से रोजगार दिया जा चुका है. केंद्र सरकार ने मनरेगा का इस वर्ष 2020- 2021 का बजट 61,500 करोड़ बनाया था. केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने Covid-19 में जारी आर्थिक पैकेज में मनरेगा को 40 हज़ार करोड़ की अतिरिक्त मदद दी है. जिससे ये आंकड़ा एक लाख करोड़ के पार जा सका है.
लेकिन इन दावों के बीच बोकारो से मोबाइलवाणी संवाददाता जेएम रंगीला कहते हैं कि झारखंड में दो बार पंचायत चुनाव हो चुके हैं. हर बार ग्रामीणों को लगता है कि अब उनकी सुनी जाएगी, शायद अब रोजगार मिलेगा, बच्चे पेट भर खाना खाएंगे पर कुछ ना हुआ. अब बारी उपचुनाव की है. नवाडीह प्रखंड के सीताराम महतो ने बताया कि मनरेगा के तहत तीन साल पहले कुआं बनाने का काम मिला था. यह काम अब तक अधूरा है पर पंचायत प्रतिनिधी और मनरेगा अधिकारी दवाब बना रहे हैं कि मैं कागजात पर साइन कर ये घोषित कर दूं कि काम पूरा हो गया है. मोबाइलवाणी पर ऐसी शिकायतें दर्ज करवाने वालों की कमी नहीं है, कई लोग सरकारी कर्मचारियों पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं. अधिकांश तो ये कहते हैं कि उन्हें काम मिला ही नहीं, जॉब कार्ड बना ही नहीं और उनके नाम से मजदूरी आवंटित हो गई.
बोकारो के नावाडीह प्रखंड के चपरी पंचायत की सुनैना देवी बताती हैं कि पिछले साल उन्हें मनरेगा योजना के तहत जानवर शेड बनाने का काम आवंटित हुआ था पर यह काम अब तक अधूरा है. ऐसा नहीं है कि गांव में मजदूरों की कमी है, बल्कि सरकारी अफसरों की अनदेखी के कारण शेड निर्माण अधूरा है. इस सबके बाद भी विभिन्न राज्य सरकारों का दावा है कि उन्होंने मनरेगा कार्यों के जरिये न केवल लोगों को रोजगार दिया बल्कि ग्रामीण जीवन का उत्थान किया है.
सब ठीक तो क्यों शुरू हुआ पलायन
मुंगेर के हवेली खड़गपुर के बहिरा पंचायत मुखिया प्रतिनिधि वरुण कुमार कहते हैं कि पहले मनरेगा के तहत काम नहीं था पर अब मजदूरों को किसी भी तरह काम देने की कोशिश कर रहे हैं पर दिक्कत ये है कि सरकार बस 194 रुपए प्रति दिन का मेहनताना दे रही है. इतनी कम मजदूरी में कौन मेहनत करना चाहेगा? इसलिए जो लोग लॉकडाउन में लौटे थे वो अब फिर से गांव से बाहर काम की तलाश के लिए जा रहे हैं. प्रखंड के अग्रहण पंचायत के सुनील कुमार सिंह कहते हैं कि लॉकडाउन में घर लौटे थे, सोचा था कुछ तो काम मिल ही जाएगा पर यहां तो महीनों से जॉब कार्ड बनवाने के लिए घूम रहे हैं. घर में बीवी बच्चे हैं, उन्हें कैसे पालें? इससे तो अच्छा शहर में ही थे, कम से कम कुछ तो काम तलाश ही लेते. गांव में तो कोई सुनने वाला तक नहीं.
इन दोनों मजदूरों की समस्या ये बताने के लिए काफी है कि सरकारी दावे पूरी तरह से सच नहीं है. सरकार ने केवल अपनी सफलता के बारे में बात की है चुनौतियों का जिक्र तक नहीं किया. सरकार की तारीफों से भरी रिपोर्ट तो जनता के सामने आ चुकी है पर जिसे दबाया जा रहा है उस रिपोर्ट में इस योजना की दिक्कतें छिपी हैं. असल में मनरेगा के खिलाफ शिकायतों का सिलसिला जारी है. अगर टॉप-5 राज्यों में ग्राम पंचायत के विरुद्ध शिकायतों का आंकड़ा देखा जाए तो उसमें उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है. आरटीआई के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्रतिमाह औसतन 5461, कर्नाटक में 2842, महाराष्ट्र में 2131, राजस्थान में 1915 और मध्यप्रदेश में 1888 शिकायतें सामने आ रही हैं.
जमुई से रंजन कुमार बताते हैं कि क्षेत्र के सिमरिया महादलित टोला में अब तक मनरेगा योजना के तहत कोई काम नहीं हुआ है. यहां बहुत से प्रवासी मजदूर काम की तलाश में है पर उनके जॉब कार्ड तक नहीं बने हैं. शेखपुरा के अरियरी प्रखंड के ईसापुर निवासी सुरेश प्रसाद बताते हैं कि बहुत मशक्कत के बाद किसी तरह जॉब कार्ड बना था पर गांव में काम ही नहीं है.
इसके साथ ही जो दूसरी दिक्कत है वो है भुगतान की. केन्द्र सरकार ने लोकसभा में बताया है कि 10 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश में करीब 782 करोड़ रुपये के मनरेगा मजदूरी का अभी तक भुगतान नहीं किया है. ये आंकड़े 11 सितंबर 2020 तक के हैं. इस सूची में पहले नंबर पर पश्चिम बंगाल है, जहां सबसे ज्यादा 397.57 करोड़ रुपये की मनरेगा मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है. यह इन दस राज्यों में कुल लंबित राशि का करीब 50 फीसदी है.
इसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर आता है, जहां 121.78 करोड़ रुपये की मनरेगा मजदूरी लंबित है और इसका भुगतान किया जाना है. इसी तरह पंजाब में मनरेगा मजदूरों के 63.86 करोड़ रुपये के वेतन का अब तक भुगतान नहीं किया गया है. भाजपा शासित मध्य प्रदेश में 59.23 करोड़ रुपये मनरेगा मजदूरी लंबित है. हिमाचल प्रदेश में मनरेगा मजदूरों को 46.73 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना अभी बाकी है. गैर-भाजपा शासित राज्यों झारखंड में 26.86 करोड़ रुपये और आंध्र प्रदेश में 22.83 करोड़ रुपये की मनरेगा मजदूरी का भुगतान अभी तक नहीं किया गया है.
जानकारी के लिए बताते चलें की मंरेगा योजना के तहत मजदूरों की हर समस्या और उसके निदान के लिए सप्ताह में एक दिन रोज़गार दिवस लगाने का प्रावधान है जिसे हर पंचायत के चयनित रोज़गार सेवक और पंचायत के मुखिया की अध्यक्षता में पंचायत कार्यालय पर लगान है लेकिन बिहार , झाक्र्हंद , मध्य प्रदेश में काम के दौरान पाया गया की कहीं भी रोज़गार दिवस धरातल पर लगता नज़र नों आता और बेचारे मजदूर कभी जॉब कार्ड बनवाने तो कभी काम की मांग के लिए इधर उधर भटकते रहते हैं नतीजा महीनों लग जाता है केवल जॉब कार्फ्द बनवाने में , जॉब कार्ड बन भी गया तो काम मिलेगी इसकी कोई गारंटी नहीं .
कहां हुआ महिला सशक्तिकरण
जहां मनरेगा का काम किया जाता है उस जगह को साइट कहते हैं. एक मनरेगा साइट पर करीब 60-70 या 80 लोग काम करते हैं. काम करने वाले यही मजदूर मनरेगा श्रमिक कहलाते हैं, जिसमें महिलाएं और पुरूष दोनों शामिल हैं. प्रत्येक 40 मनरेगा श्रमिक पर एक मनरेगा ‘मेट’ नियुक्त किया जाता है. मनरेगा मेट का काम मनरेगा साइट पर छायां ओर पीने के पानी की व्यवस्था देखना और सभी मजदूरों को दिए गए कार्य का बराबर बंटवारा करना है. अब अगर उत्तरप्रदेश सरकार कह रही है कि 95 लाख लोगों ने मनरेगा श्रमिक के रूप में कार्य किया. इस लिहाज से वहां करीब 2.37 लाख मनरेगा मेट बने. इसी तरह हरियाणा सरकार के आंकड़ों के अनुसार 4.59 लाख मनरेगा मजदूरों में करीब 11 हज़ार मेट नियुक्त हुए. सरकारों ने कहा कि मनरेगा से महिला सशक्तिकरण हुआ है पर ये कोई नहीं बताता कि मेट की नियुक्ति के दौरान कितनी महिलाओं को प्राथमिकता दी गई? उत्तर प्रदेश में नियुक्त 2.30 लाख मनरेगा मेट में कितनी महिलाओं को मेट की भूमिका दी? क्या 10 हज़ार महिलाओं को भी मेट बनाया? ऐसे में गुजरात और हरियाणा में 40 हज़ार और 11 हज़ार मेट में कितनी महिलाओं को मेट की भूमिका मिली?
सोचिए जो महिला भरी धूप में खेतों में पानी दे सकती है. फसल काट सकती है, हल चलाकर खेत जोत सकती है. क्या वो महिला गड्ढे नापकर नहीं दे सकती? जो पूरे घर को सम्हाले रखती है क्या उसके लिए मनरेगा साइट पर छावं की व्यवस्था करना इतना मुश्किल होगा? विशेषज्ञ कहते हैं कि महिला सशक्तिकरण का यह सबसे अच्छा मौका था. जमीन स्तर से महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास करते तो एक मॉडल तैयार हो सकता था पर नहीं.. ऐसा नहीं हुआ. गिद्धौर की कुन्नूर पंचायत के बेनाडी गांव में रहने वाली बिजली देवी कहती हैं कि ना तो राशन मिला ना गैस कनेक्शन. सब कहते हैं महिलाओं के लिए सुविधाएं हैं पर कहां हैं? हमें तो मनरेगा में काम तक नहीं मिलता. जॉब कार्ड कहां बनेगा ये तब नहीं पता, कैसे पालें अपना परिवार? आंकड़ों से पता चला है कि मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी 2013-2014 में 52.82 फीसदी से बढ़कर 2016 में 56.16 फीसदी हो गई लेकिन ताजा आंकड़ों में पिछले साल के मुकाबले इसमें 2.24 प्रतिशत अंकों की गिरावट दर्ज हुई है. मौजूदा समय में लगभग 13.34 करोड़ सक्रिय मनरेगा कामगार हैं, जिनमें से 6.58 करोड़ यानी 49 फीसदी महिलाएं हैं.
मनरेगा से हमें बहुत उम्मीद थी… और शायद आगे भी रहेगी पर सवाल उनके लिए है जो इन उम्मीदों पर पानी फेर रहे हैं. क्योंकि उनके दावों में भले ही मनरेगा के तहत रोजगार मिला, पैसे मिले, महिला सशक्तिकरण मिला हो पर फिर भी अंत सच बस इतना है कि मजदूरों के हाथ खाली हैं. मनरेगा में महिलाएं आज भी किनारे कहीं दिखाई देती हैं और आर्थिक संबलता का लक्ष्य पाना आसान नहीं दिखता.
एक छात्रा की पहल से मिला 40 गरीब परिवारों को मनरेगा में काम, पंचायत में लगने लगा नियमित रोज़गार दिवस:
कोरोना महामारी और लॉक डाउन से आई आर्थिक मंदी ने लाखों कामगारों को घर वापस लौटने के लिए मजबूर किया, कुछ खुश किसमत मजदूरों को घर लौट कर काम मिल गया लेकिन मजदूरों की बड़ी आबादी तालाबंदी खुलने के बाद काम की तलाश करती रही. केंद्र सर्कार और राज्य सरकारों की पहल धरातल पर उतरती नज़र नहीं आई , धरातल पर मजदूरों को काम मिलने में आरही अनेकों परेशानियों को नज़रअंदाज किया जाता रहा, ताला बंदी के दौरान अनेकों मजदूरों ने राशन और काम न मिलने की शिकात रिकॉर्ड की, मोबाइल वाणी तत्परता के साथ सभी शिकायतों को प्रसाशन, स्थानीय समाज सेवी संस्था, समाज में कार्य कर रहे पंचायत अधिकारी और स्वयं सेवकों की मदद से सभी शिकयोतों को दूर करने का प्रयास भी की, 600 से ज्यादा शिकायतों को ताला बंदी के दौरान निपटान किया और साथ ही गरीब वंचित और असहाय समुदाय को सम्मान की जिंदगी मिले के लिए रोज़ी रोटी अधिकार अभियान की शुरुआत की, इस अभियान के तहत मोबाइल वाणी और जवाहर ज्योति वाल विकास केंद्र की घनिष्टता और बढ़ी और दोनों ही संस्था एक जूट होकर गरीबों के अधिकार के लिए काम करने लगी . इसी क्रम में सरायरंजन प्रखंड में जीविकोपार्जन विकास के लिए कार्य करने वाली स्थानीय संस्था जवाहर ज्योति बाल विकास केंद्र की स्वयंसेवक अर्चना का साथ मिला. अर्चना पिछले 06 महीने से मोबाइल वाणी की नियमित श्रोता है और उन्होंने मोबाइल वाणी सुनते हुए कई बार सुना की मोबाइल वाणी पर योजनाओं से सम्बंधित जानकारी पा सकती हैं एवं अपने समस्याओं को यहाँ पर रिकॉर्ड कर सम्बंधित अधिकारी का ध्यानाकृष्ट कराने के लिए उनके फ़ोन पर सन्देश सीधा साझा कर सकती हैं बस फिर क्या था अर्चना ने एक शुरुआत की. अपने कार्य क्षेत्र में उन्होंने देखा की कई मजदूर जो प्रदेश से वापस आए हैं वह अब तक घर पर बैठे हैं उनके बच्चे अक्सर हीं भूख के कारन विलखते हैं इनकी बस्ती में जाकर मनरेगा अंतर्गत काम करने के बारे में पूछा, पूछने के दौरान अर्चना को मालूम हुआ की वह सभी महिला और परुष मजदुर मनरेगा में कार्य तो करना चाहते हैं पर पंचायत में मनरेगा के कर्मचारी उन्हें काम देने में रूचि नहीं दिखा रहे , तभी अर्चना को लगा की मोबाइल वाणी इस प्रक्रिया में अहम भूमिका निभा सकती है. इसके साथ ही उसने उन ग्रामीण मजदूरों के साथ मनरेगा आधिकार के लिए एक सामुदायिक बैठक की सभी को मोबाइल वाणी के बारे में बताया उसके बाद उन सभी को बढ़ावा दिया की उन्हें मनरेगा में काम क्यूँ नही मिल पा रहा है से सम्बंधित जानकारी रिकॉर्ड कराएं.
क्या कहते हैं मनरेगा में काम करने के इक्षुक मजदूर?
समस्तीपुर जिले के सरायरंजन प्रखंड के किशनपुर युसूफ पंचायत से शोभा देवी कहती हैं की उन्हें अब तक कोई काम नहीं मिला , काम मिलने की क्या प्रक्रिया है यह भी नहीं जानती हैं, एक बार शोभा देवी काम के बारे में जानकारी प्राप्त करने वार्ड सदस्य रामकुमार पासवान के पास गयी तो उनको बताया गया की जॉब कार्ड लॉक डाउन के बाद बनेगा, यह भी देखा गया की ऐसे मजदूरों को मनरेगा जॉब कार्ड, काम मांगने की प्रक्रिया के बारे में कुछ जानकारी नहीं है और न ही इन मजदूरों तक कभी कोई पंचायत प्रतिनिधि या रोज़गार सेवक की पहुँच बनी जिससे इन्हें काम मिलने की प्रक्रिया का पता चलता और अंततः काम मिल पाता.
वहीँ राजकुमारी देवी कहती हैं की वह भी वार्ड सदस्य के पास गयी थी लेकिन उन्हों ने कुछ भी नहीं बताया कहाँ से और कैसे मनरेगा के तहत काम मिलेगा, इन्होने ने मुखिया को भी संपर्क किया लेकिन किसी ने भी सही जानकरी नहीं दी की जॉब कार्ड कैसे बनेगा और काम कैसे मिलेगा. एक अन्य श्रोता किशन पुर युसूफ से सुशिल कुमार मोबाइल वाणी से पूछ रहे हैं की जॉब कार्ड कैसे बनता है यह बताएं ताकि जॉब कार्ड बनवा कर मनरेगा के तहत काम कर सम्मान पूर्ण जिंदगी जी सकें.
इन सभी रिकॉर्डिंग को सुनने के बाद स्वयं सेविका अर्चना ने क्या किया?
मोबाइल वाणी पर अर्चना चूँकि नियमित श्रोता रही हैं सभी रिकॉर्डिंग को ध्यान पूर्वक सुनती रही और अंततः फैसला किया की इन सभी परेशानियों को मनरेगा अधिकारी के साथ साझा किया जाना चाहिए, जमीनी सच्चाई से अधिकारीयों को अवगत करना चाहिए, मनरेगा अधिकारी जैसे रोजगार सेवक और प्रखंड कार्यक्रम अधिकारी का नंबर उपलब्ध उनके मोबाइल पर इन सभी रिकॉर्डिंग को शेयर करना शुरू की , बाद में फ़ोन कर अपने पंचायत में रोज़गार दिवस लगाने की अपील की. इसी दौरान रोजगार सेवक इन्द्रजीत कुमार मोबाइल वाणी से बात करते हुए यह बता रहे थे की किस प्रकार मनरेगा अंतर्गत जॉब कार्ड बनाया जा सकता हैं एवं काम की मांग की जा सकती है साथ ही इन्द्रजीत कुमार द्वारा यह भी बताया गया की जॉब कार्ड एवं काम मांगने सम्बंधित आवेदन के लिए पंचायत भवन पर हर सप्ताह बुधवार को पंचायत रोजगार दिवस का आयोजन किया जाना है तय हुआ है और यह अनिवार्य है. बस फिर क्या था अर्चना को मजदूरो की समस्या के समाधान के पर लग गये उसके हौसले को एक नयी उड़ान मिल गयी और उसके बाद अर्चना ने सभी इक्षुक ग्रामीण जो मनरेगा अंतर्गत कार्य करना चाहते थे उन्हें जॉब कार्ड बनाने के लिए जरूरी कागजातों के बारे में मोबाइल वाणी पर सुनाया एवं अगले बुधवार को सभी ग्रामीणों के साथ पहुँच गयी पंचायत भवन वहां पंचायत रोजगार सेवक के नहीं मिलने पर पंचायत रोजगार सेवक से मोबाइल पर फोन और मोबाइल वाणी पर रिकॉर्ड किए गए वक्तव्य को याद दिलाया जहाँ इन्होने ने खुद कहा था की सप्ताह के हर बुधवार को आप पंचायत भवन पर रोजगार दिवस का आयोजन करते हैं इसी क्रम में किशनपुर युसूफ के करीब चालीस परिवार के लोग मनरेगा अंतर्गत जॉब कार्ड बनवाने के लिए यहाँ पर एकत्रित हुए हैं आप आइये और इन सबका आवेदन लीजिए, अपनी ही बातों को सुनकर पंचायत रोजगार सेवक वेवस थे और थड़े समय में पंचायत भवन आने का वादा किया , 1 घंटे के अन्दर रोजगार सेवक इन्द्रजीत कुमार आए सभी इक्षुक परिवार के जॉब कार्ड के आवेदन को लिया. अर्चना और रोज़गार सेवक दोनों ने ने मोबाइल वाणी पर रिकॉर्ड कराया की उनके द्वारा 40 परिवारों के जॉब कार्ड बनाने हेतु आवेदन लिया गया है साथ हि अर्चना ने रिकॉर्ड कराया की उनके समक्ष 40 इक्षुक परिवारों को मनरेगा जॉब कार्ड के लिए आवेदन किया गया है जिसे 15 दिनों में जॉब कार्ड दिया जाएगा, अब सभी मजदूरों को जॉब कार्ड प्राप्त होगया है और काम भी प्राप्त हुआ है.
अर्चना जैसे स्वयं सेवकों के काम करने का मूल मंत्र क्या है?
अर्चना और इनके जैसे अनेकों स्वयं सेवकों जो मोबाइल वाणी और अन्य संस्थाओं के साथ गरीबों और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए प्रसाशनिक प्रक्रिया बेहतर हो के लिए कार्य कर रही हैं निम्न मूल मंत्र का पालन करती हैं:
1. समुदाय को उनके अधिकारों , सरकार द्वारा चलायी जारही योजनाओं की जानकरी खुद देती हैं, इनके द्वारा दी जारही जानकारी पर लोगों का विशवास हो इसके लिए मोबाइल वाणी जैसी आधुनिक संचार सेवा का प्रयोग करती हैं , उन्हें सुनने के लिए प्रेरित करती है, जिनके पास मोबाइल उपलब्ध नहीं होता उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सुनने के लिए प्रेरित करती है, खुद अपने मोबाइल से मोबाइल वाणी के नंबर पर डायल कर सुनाती हैं.
2. जानकारी बढ़ने के बाद अर्चना कहती है की सिर्फ जानकारी ऐसे समुदाय के लिए काफी नहीं होता क्योंकि इन्हें पढना लिखना भी नहीं आता इसलिए इन्हें प्रशिक्षित भी करना जरूरी है, इसके लिए उनके साथ बैठक करनी होती है जरूरी जानकारी के साथ पढना लिखना भी सिखाना होता हैं, उनके अन्दर आत्म विश्वास लाना होता है, पहल करने के लिए लामबंद करना होता है, जरूरत के समय इनके साथ खड़ा होना जरूरी है जैसे पंचायत केंद्र ले जाना, अधिकारी के साथ बात करना इत्यादि.
3. अधिकारीयों और पंचायत प्रतिनिधि के साथ लगातार संपर्क कर, समुदाय की समस्याओं से अवगत कर पहल करने के लिए प्रेरित करना, अधिकारीयों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करना और समय पर उपलब्ध रहना सुनिश्चित करती है ऐसा करने से समुदाय के अन्दर आत्म विशवास का जन्म होता है, समुदाय अपने आप को सक्षम मानती है, अधिकारीयों के सामने अपनी बात रख पाती है.
4. अपने सभी अनुभवों को वह मोबाइल वाणी पर रिकॉर्ड करती है, जनता द्वारा उठाए गए कदम को रिकॉर्ड करती है, अधिकारीयों के साक्षात्कार रिकॉर्ड करती है, अगली कार्रवाई के लिए आश्वासन सुनिश्चित करती है ,बड़े अधिकारीयों को सुनाती है, जनता को सुनाती है तब जनता अपने किए काम पर प्रफुल्लित होकर निकट भविष्य में लामबंद होती है और परेशानियों को एकजुट होकर समाधान की पहल करती है.
5. अर्चना की नज़र में ऐसा करने से समुदाय की सीख उनके पास ही रहती है और बार बार समस्या समाधान के लिए किसी और के पास नहीं जाना पड़ता और अधिकारी भी जान जाते हैं की अब अगर काम नहीं करेंगे, समय पर उपलब्ध नहीं रहेंगे तो यह लोग मोबाइल वाणी पर रिकॉर्ड कर उच्च अधिकारी को सुनाएंगे, नौकरी खतरे में पड़ सकती है इसलिए स समय उपलब्ध रहना जरूरी है और सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों को धरातल पर लागू करने के लिए तत्पर रहते हैं.
अर्चना अंत में कहती हैं की वह अभी छात्र हैं, यह अनुभव उन्हें जिंदगी में आगे बढ़ने और प्रसाशनिक कार्रवाई को सुनिश्चित करने में मदद करती है, यह काम उन्हों ने धरातल पर किया है इसके लिए समुदाय में बहूत सम्मान पाती है , मंरेगा मजदूरों कको काम दिलाने का यह प्रक्रिया एक सुझाव मात्र है इस माध्यम का उपयोग कर समाजिक संस्थाएं मंरेगा से जुडी समस्याओं का संधान ढूंढ सकते हैं और सरकारी तंत्र की जवावदेही सुनिश्चित कर सकते हैं .