अब तो बताइए, ग्लास का आधा पानी कौन चुरा ले गया?

मल के बाद जल 2024 के लिए नरेंद्र मोदी ने अभी से मास्टर स्ट्रोक मार दिया है…
“अब तो बताइए, ग्लास का आधा पानी कौन चुरा ले गया?” मोदीजी ने संसद में तमाम बातों के बीच एक बात कही. उन्होंने पानी बचाने की बात की. जलशक्ति मंत्रालय की बात की. चूंकि, जल अभी न्यूज मीडिया में सेलेबल नहीं है, सो उस पर इतनी बात नहीं हुई.
खैर, अब जो भी मेरी समझ है और सिर्फ बिहार में जो इस साल जलसमस्या देख कर आया हूं, मैं मुतमइन हूं कि अगले 5 साल के भीतर पानी को ले कर इस देश में गृह युद्ध की नौबत आ सकती है. और शायद एक राजनीतिक दल के रूप में भाजपा को ये एहसास हो चुका है कि चुनाव जल पर भी लडा जा सकता है. वैसे भी 2019 का चुनाव वे मल पर लड कर जीत चुके है. जल तो वैसे भी लाइफ लाइन कमोडिटी है.
तो तैयार रहिए, राहुल गांधी, आप राफेल-राफेल के बाद ऐसा ही कुछ ढूंढ कर लाएंगे, चिल्लाते रहेंगे और इधर नरेन्द्र मोदी मल के बाद जल को चुनावी मुद्दा बना कर 2024 में भी न कहीं आपको शिकस्त दे दे. फिर चिल्लाते रहिएगा, ईवीएम-ईवीएम. इतनी हिम्मत भी तो नहीं आप विपक्षई दलों में कि अगर आप सचमुच ईवीएम नहीं चाहते है तो ईवीएम के रहते चुनाव का बहिष्कार कर सके.
लेकिन, मल के बाद जल की इस राजनीति में भी कई झोल है. एक बार फिर जनता ही जल बर्बादी के लिए दोषी मानी जाएगी. वो जनता जो 100 में से सिर्फ 5 लीटर पानी का घरेलू इस्तेमाल करती है. नरेन्द्र मोदी, कोला कंपनियों, पानी के सौदागरों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत जुटा पाएंगे, मुझे सन्देह है.
लेकिन, जनता तो जनता है. उसे वन पिट शौचालय भी क्रांति लगा था और अब जल पर नरेन्द्र मोदी जी जो भी बोल देंगे, कर देंगे, उसे भी जनता क्रांति मान लेगी. एक्सपर्ट तो उन्हें चाहिए नहीं. वे खुद इस दुनिया के सबसे बडे एक्सपर्ट है. इतने बडे कि नोटबंदी को उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ सबसे बडा हथियार तक बता दिया था…
अंत में, फिर से नरेंद्र मोदी की वही पुरानी तस्वीर …पानी से आधा भरा ग्लास…जिसे वे आधा हवा भरा से बताते है….लेकिन, मेरा मूल सवाल अब भी यही है….ग्लास का आधा पानी कौन चुरा गया? क्या नरेंद्र मोदी उस चोर का पता लगा सकेंगे?
शशि शेखर