स्कूली पुष्तक से लोकतंत्र का पाठ गायब, फिर कैसे बच्चे बड़े होकर लोकतंत्र का महापर्व मनाएंगे

अंकित साहिर -बनारस
अलग अलग सूचनाओं को एक साथ जोड़ कर एक ही पटल पर रख कर देखने से आपको एक ऐसी विस्तृत दृष्टि प्राप्त होती है जिससे आप अलग अलग समय पर उठाए गए कदमों बनाई गई नीतियों और किए गए कार्यों को जोड़कर उसे एक संपूर्णता में समझ सकते हैं मसलन चुनाव का महीना है और संचार के सभी माध्यमों पर चुनाव आयोग द्वारा इस बात का प्रचार किया जा रहा है कि मतदान अवश्य करें चुनाव ही लोकतंत्र का महापर्व है उत्सव है और और यह प्रचार बस चुनाव आयोग का नहीं है इसके साथ साथ सत्तारूढ़ दलों और विपक्षी दलों ने भी जनता को हर माध्यम से यह समझाने में कोई कमी नहीं रखी है चुनाव ही लोकतंत्र का उत्सव है मगर इसके साथ साथ हमें घटित हो रही दूसरे घटनाओं को भी देखना होगा।

मार्च के महीने में एनसीईआरटी की कक्षा 9 की राजनीतिक विज्ञान की पुस्तक में से जातीय भेदभाव और संघर्ष से जुड़े अध्याय को हटा दिया गया था और हाल में एनसीईआरटी ने फिर से कक्षा 9 की राजनीतिक विज्ञान की पुस्तक में से समकालीन विश्व में लोकतंत्र का अध्याय हटा दिया है आखिर एनसीईआरटी की किताबों में से लोकतंत्र और विविधता, लोकतंत्र और संघर्ष आदि जैसे अध्यायों को क्यों हटाया जा रहा है। और विपक्षी राजनैतिक दलों में भी इस तरह के कदम की कोई बहुत आलोचना नहीं कि जा रही न ही कोई दबाव बनाया जा रहा है।

चुनावों को लोकतंत्र का महापर्व बताकर और किताबों में से लोक दल से जुड़े अध्ययन को हटाकर राज्य क्या चाहता है। अपने इन सारे प्रयासों से राज्य एक ऐसा जनमानस तैयार करना चाहता है जिसके लिए लोकतंत्र का अर्थ बस चुनाव उर वोट डालना ही हो और लोकतंत्र की वास्तविक विशेषताएं कहीं हाशिए पर धकेल दी जाएं।

चुनाव लोकतंत्र का एक हिस्सा है लेकिन यह एक हिस्सा भर है, संपूर्ण लोकतंत्र नहीं लोकतंत्र का पर्व तो तब है जब जनता सत्ता की आंखों में आंखें डाल कर उससे सवाल करें।
लोकतंत्र का उत्सव वह है जब जनता सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरती है, जब असहमतियां उभर का सामने आती हैं, जब विरोध के स्वर बुलन्द होते हैं।
और जब शासक वर्ग अपनी सारी शक्ति से लोकतंत्र की वास्तविक विशेषताओं को नष्ट करने पर आमादा हैं तो हमें यह समझने और समझाने की बहुत ज्यादा जरूरत है कि लोकतंत्र का उत्सव चुनाव नहीं, विविधता, असहमति, विरोध और सँघर्ष है।