सूफी संगीत: जिससे सुनने के बाद आपका दिल और रूह दोनों खुश हो जाए

लेखक: अनीस आर खान, नई दिल्ली
सूफी संगीत केवल एक कलात्मक अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है — जो प्रेम, एकता और ईश्वर से संवाद की भाषा है। यह संगीत परंपरा भारतीय उपमहाद्वीप में सदियों से विभिन्न स्वरूपों में फलती-फूलती रही है, जिसमें कबीर, मीराबाई, बुल्ले शाह, बाबा फरीद, अमीर खुसरो जैसे संत-कवियों की वाणी प्रमुख है। राग, रचना और रहस्यवाद का यह संगम आज भी जनमानस को भीतर तक छूने की शक्ति रखता है।
हालांकि समय के साथ-साथ सूफी संगीत की प्रस्तुति और संरचना में बदलाव आया है। मंचों पर इसके ग्लैमराइज्ड संस्करण अधिक देखे जाते हैं, जहां कभी-कभी इसकी आत्मा छूटती हुई भी प्रतीत होती है। पारंपरिक घरानों और गुरुकुलों में इसकी गंभीर साधना करने वालों की संख्या अब सीमित होती जा रही है। ऐसे में कुछ लोग आज भी हैं, जो इस विरासत को जीवंत रखने का अथक प्रयास कर रहे हैं।
ऐसे ही एक नाम हैं — मीर रज़ाक का।
राजस्थान के बीकानेर ज़िले के पूगल क्षेत्र से आने वाले मीर रज़ाक, सूफी संगीत की उसी परंपरा के वाहक हैं, जो आत्मा को झंकृत करने वाली साधना और सेवा दोनों का संगम है। उन्होंने अपने दादा, उस्ताद सुभान खान से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। यह शिक्षा केवल रागों की नहीं थी, बल्कि भक्ति, सब्र और समर्पण की भी थी।
मीर रज़ाक कबीर, मीराबाई, बाबा बुल्ले शाह जैसे सूफी संतों के कलामों को अपनी गायकी में जीवंत करते हैं। वे अपनी पारिवारिक विरासत को न केवल संरक्षित कर रहे हैं, बल्कि उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए भी कृतसंकल्प हैं। उनका यह प्रयास केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उनकी यह पहल इस दृष्टि से भी सराहनीय है कि वे अपने परिवार की नई पीढ़ी को भी संगीत की शिक्षा दे रहे हैं — ताकि यह शैली जीवित रह सके। वह जानते हैं कि परंपरा केवल संग्रहालयों या दस्तावेज़ों में नहीं बचाई जा सकती, बल्कि उसे जीया और गाया जाना ज़रूरी है। यही वजह है कि मीर रज़ाक न सिर्फ गा रहे हैं, बल्कि सूफी संगीत की जीवंत धारा को अपनी साधना और समर्पण से आगे बहा रहे हैं।
बीकानेर ज़िले की प्रसिद्ध गैर संस्कारी संस्था उरमूल सीमांत समिति जिसको मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्गीय संजय घोष जी ने स्थापित किया था वहां आज भी यदि कोई प्रोग्राम होता है तो मीर रज़्ज़ाक और वहां के लोकल लोगों को सूफी संगीत गाने के लिए आमंत्रित किया जाता है। यहां पर काम करने वाले युवा किसान और कम्युनिस्ट विचारधारा पर विश्वास रखने वाले ओमप्रकाश मेघवाल ने बताया कि इस क्षेत्र में जहां कहीं भी सूफी संगीत का कोई भी प्रोग्राम होता है तो मैं जरूर जाता हूं और यदि गायक मीर रज़्ज़ाक हो तो मैं किसी भी हाल में वहां पहुंचकर इनको सुनना पसंद करता हूं यह बहुत बड़ी बात है कि आज, जब संगीत के कई पारंपरिक रूप या तो बाजारवाद की भेंट चढ़ चुके हैं या सीमित मंचों पर सिमट चुके हैं, मीर रज़ाक जैसे कलाकारों का काम और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। यह प्रयास न केवल सूफी संगीत को नया जीवन देता है, बल्कि सांस्कृतिक संरक्षण के क्षेत्र में भी एक मिसाल कायम करता है।
मीर रज़्ज़ाक न केवल बीकानेर जिले में अपने प्रशासक रखते हैं बल्कि वह राजस्थान के अन्य जिलों में भी अपने मद्दहों की एक फौज रखते हैं इन्हीं में से फलोदी जिला के एक अन्य प्रशंसक श्री हेमाराम मेघवाल घंटियाली ब्लॉक (फलोदी) के हैं वह कहते हैं कि मीर रज़्ज़ाक जी की गायकी वाकई लाजवाब है। उनकी आवाज़ में एक अनोखी मिठास और अद्भुत पढ़ने का अंदाज़ है, जो हर कलाम को जादुई बना देता है। जब वो गाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे समय थम जाए — बस वो गाते रहें और हम सुनते रहें। उनकी आवाज़ में ऐसी कशिश होती है कि दिल सीधे सूफी संतों की दुनिया से जुड़ जाता है। मीर रज़्ज़ाक न सिर्फ कलाम गाते हैं, बल्कि हमें उन रूहानी बातों से भी जोड़ते हैं जिन्हें हम अक्सर महसूस तो करते हैं, पर शब्द नहीं दे पाते। यही कारण है कि उनके प्रोग्राम आजकल न केवल राजस्थान बल्कि दिल्ली, मुंबई समेत पूरे हिंदुस्तान में हो रहे हैं। यह बात हम राजस्थानियों के लिए गर्व की है।
दिल्ली से आई एक मेहमान जिनका नाम ज्योति सिंह है उन्होंने एक प्रोग्राम के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बताया कि मीर रज़्ज़ाक की आवाज में जादू है जब वह गाते हैं तो दिल करता है सुनते रहे उनकी आवाज को सुनकर सूफी संगीत से और ज्यादा लगाओ बढ़ जाता है।
उनके कार्यों को निश्चित रूप से संगीतप्रेमियों और सांस्कृतिक इतिहास के संरक्षकों द्वारा सराहा जाएगा। यह एक जीवंत उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी जड़ों से जुड़कर, परंपरा को नये समय में रोप सकता है।
सूफी संगीत केवल अतीत की बात नहीं है — यह वर्तमान की भी आवाज़ है, और मीर रज़ाक जैसे साधकों की बदौलत यह भविष्य की भी उम्मीद है।