बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ एक नारे से ज्यादा कुछ नहीं?
लेखक तान्या राणा- बहनबॉक्स के लिए
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ; 9 साल पहले बाल-लिंग अनुपात में सुधार लाने और बालिकाओं की उत्तरजीविता, सुरक्षा, शिक्षा और भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई योजना आज खराब वित्तीय प्रबंधन और लक्ष्यों की निगरानी को दर्शा रही है. 100 जिलों में शुरू की गई यह योजना अब देश के हर जिले को कवर करती है. इस योजना का उद्देश्य एडवोकसी और मीडिया अभियानों के माध्यम से लड़कियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए “मानसिकता में बदलाव आम जन के विचारों में बदलाव ” को बढ़ावा देना है. हाल ही में, योजना का ध्यान “शून्य बजट विज्ञापन” पर स्थानांतरित हो गया क्योंकि ये योजना सरकार के हिसाब से इस उद्देश्य के लिए जागरूकता पैदा करने में सक्षम है.” इस योजना में खेल को बढ़ावा देने, लड़कियों के बीच सेल्फ-डिफेन्स और स्कूलों में सैनिटरी नैपकिन बाँटने की परिकल्पना की गई है. योजना के तहत सफलता के मुख्य संकेतकों में से एक जन्म के समय लिंग अनुपात में सुधार है, जो 2014-15 में प्रति 1,000 लड़कों पर 918 लड़कियों से बढ़कर 2021-22 में प्रति 1,000 लड़कों पर 934 लड़कियों तक पहुंच गया है.
बहनबॉक्स की तान्या राणा तर्क संगत विचार व्यक्त करते हुए कहती हैं कि जन्म के समय लिंगानुपात में सुधार का श्रेय केवल इस योजना के कार्यान्वयन को नहीं दिया जा सकता है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट तैयार करते समय कल्याण और बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट्स का शोध करते हुए ये पाया कि पिछले कुछ वर्षों में इसके खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा मीडिया और जन अभियान या अडवोकसी पर रहा है. लेकिन, 2019-20 की शुरुआत से, मीडिया और मुद्दे की वकालत सहित लागत में गिरावट शुरू हो गई. और तो ओर 2020-21 में मीडिया और मुद्दे की वकालत पर केवल 12% धनराशि खर्च की गई यहाँ तक कि 2021-22 में कोई भी खर्च नहीं किया गया. महिला सशक्तिकरण पर लोकसभा समिति ने भी योजना के वित्त में विसंगतियों पर ध्यान दिया और पाया कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पास योजना के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य परस्पर संबंधित हस्तक्षेपों के तहत लागत पर अलग-अलग जानकारी नहीं थी, जिसके बावजूद, आवंटन में वृद्धि जारी रही.
“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के नारे से रंगी हुई लॉरी, टेम्पो या ऑटो रिक्शा आज एक आम दृश्य है. पर नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा 2020 में 14 राज्यों में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि योजना ने अपने लक्ष्यों की “प्रभावी और समय पर” निगरानी नहीं की. 2017 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट ने हरियाणा में योजना के लिए “धन के हेरफेर” के प्रमाण प्रस्तुत किए थे. योजना के तहत बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ स्लोगन छपे लैपटॉप बैग और मग खरीदे गए, जिनके लिए कोई प्रावधान नहीं था. और 2016 में एक अन्य रिपोर्ट में पाया गया कि केंद्रीय बजट रिलीज़ में देरी और पंजाब में धन का खराब उपयोग, राज्य में योजना के संभावित प्रभावी कार्यान्वयन से समझौता है.
कार्यान्वयन के प्रारंभिक चरण में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय – को योजना कार्यान्वयन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. फिर 2022 में उच्च शिक्षा, खेलों में लड़कियों की भागीदारी और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को भी शामिल किया गया था. ये लक्ष्य तब बदल गए जब 2021 में योजना दिशानिर्देशों को संशोधित किया गया और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ को “सेफ्टी और सिक्योरिटी” के लिए मिशन शक्ति की संबल सुब-स्कीम के तहत जोड़ा गया. कुछ टारगेट, जैसे कि ‘जन्म के समय लिंगानुपात में हर साल 2 अंक का सुधार,’ ‘संस्थागत प्रसव के प्रतिशत में 95% या उससे अधिक की दर से निरंतर सुधार,’ ‘प्रति वर्ष प्रथम तिमाही प्रसवपूर्व देखभाल जांच पंजीकरण में 1% की वृद्धि,’ और ‘माध्यमिक शिक्षा स्तर पर नामांकन और लड़कियों/महिलाओं के कौशल विकास में प्रति वर्ष 1% की वृद्धि’ अपरिवर्तित ही रहे. इसके साथ-साथ संशोधित योजना में 6 टार्गेट्स को हटाया गया और 2 नए उदेश्य जोड़े गए.
हालाँकि इनमें से कुछ लक्ष्य वास्तव में पूरे कर लिये गये हैं. उदाहरण के तौर पर, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, 2019-21 में गर्भावस्था की पहली तिमाही में 70% माताओं ने प्रसवपूर्व देखभाल जांच के लिए पंजीकरण कराया, जबकि 2015-16 में यह आंकड़ा 58.6% ही था. परन्तु उसी दौरान मंत्रालय की वेबसाइट पर योजना का डैशबोर्ड, केवल राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर जन्म के समय लिंग अनुपात पर “निगरानी डेटा” दिखाता है. लेकिन, क्या इन सुधारों का श्रेय केवल योजना के कार्यान्वयन को दिया जा सकता है? कानूनों, योजनाओं और कार्यक्रमों सहित कई पहलें हैं, जिनका उद्देश्य लड़कियों के लिए स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और स्वच्छता के परिणामों में सुधार करना है. ऊपर बताए गए लक्ष्यों के लिए, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के विशिष्ट हस्तक्षेप हैं जो महिलाओं और लड़कियों के लिए सकारात्मक स्वास्थ्य और पोषण परिणाम प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसलिए, यह अस्पष्ट है कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तहत इन “निगरानी योग्य लक्ष्यों” और उद्देश्यों को कैसे और क्यों परिभाषित किया गया, जो मीडिया और अडवोकसी को कार्यान्वयन के प्राथमिक तरीके के रूप में उपयोग करता है.
लोकसभा समिति ने इस सूचना प्रसार की “पद्धति” और योजना के तहत की जाने वाली गतिविधियों पर भी एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया और 2022 की रिपोर्ट में कहा गया है, “…सरकार को योजना के तहत विज्ञापनों पर खर्च पर पुनर्विचार करना चाहिए और शिक्षा और साथ ही साथ, स्वास्थ्य में क्षेत्रीय हस्तक्षेप के लिए नियोजित खर्च आवंटन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए”. नागालैंड, गोवा और आंध्र प्रदेश में योजना के उद्देश्यों के बारे में सबसे कम जागरूकता थी. साथ ही, चूंकि जन्म के समय लिंगानुपात में गिरावट लड़कियों के सशक्तिकरण को मापने के लिए केवल एक परिणाम है, हरियाणा, पंजाब और गुजरात जैसे राज्य जहां पहले से ही खराब अनुपात है, वे केवल योजना-संबंधी मीडिया और अडवोकसी अभियानों पर भरोसा नहीं कर सकते हैं. लोकसभा समिति द्वारा उठाए गए मुद्दों पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के स्वयं के उत्तर से पता चलता है कि शिक्षा मंत्रालय की समग्र शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय की प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की कार्यान्वयन जैसी कई पहल गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (PC&PNDT) अधिनियम सहित अन्य अधिनियम, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के प्रभावी अमल के लिए काफी है .
पाठकों इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? अपनी जरूर भेजें. यह लघु आलेख नारीवाद के नज़रिये से बहनबॉक्स के आम चुनाव 2024 कवरेज का एक हिस्सा है जो कि तान्या राणा द्वारा शोध करने के बाद लिखा गया है. इसका अनुवाद प्रांजली शर्मा ने किया है. अधिक जानकारी के लिए हमसे इसी तरह जुड़े रहें, ओर हमारे इस आलेख को पढ़ने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.