कोरोना बचाव टीकाकरण: क्या एक डोज काफी है?

ग्राम वाणी फीचर्स 

जिस तेजी से देश में कोरोना ने पांव पसारे थे, सरकार ने उतनी ही तेजी से कोरोना बचाव टीका अभियान शुरू कर दिया. इस वक्त देश में हर तरफ बस टीकों की बात की जा रही है. जिले से लेकर गांव तक में होड़ है कि कौन सबसे पहले 100 फीसदी टीकाकरण का लक्ष्य पूरा करता है. बहरहाल सरकारी आंकड़ों की मानें तो 24 जुलाई तक देश के 42.3 करोड़ नागरिक टीके की कम से कम पहली खुराक तो ले ही चुके हैं. टीके की दोनों खुराक अब तक करीब 8.95 करोड़ भारतीयों को ही लगी है. अगर इसे देश की एक अरब से ज्यादा वाली आबादी की तुलना से देखें तो, ये आंकड़ा बहुत छोटा दिखाई देता है. सवाल है कि अगर टीकाकरण को लेकर अभियान इतने ही जोरशोर से जारी है तो फिर क्यों टीका लेने की रफ़्तार इतनी धीमी है? सरकार दावा कर रही है कि जहां टीकों की खुराक कम है वहां पूर्ति में देरी नहीं हो रही है. लोगों को मैसेज, सोशल मीडिया, कैंप, बैनर, विज्ञापनों के जरिए टीका लगवाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है… फिर भी नम्बरों का खेल कुछ और ही कह रहा है. 

मोबाइलवाणी ने इस पूरे मामले को समझने के लिए उन लोगों के बीच एक सर्वे किया जो सरकारी भाषा में मतदाता कहलाते हैं. यानि 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के बीच.. बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और तमिलनाडु राज्य में हुए इस सर्वे में 33 फीसदी लोगों ने कहा है कि वे कोविड का टीका नहीं लेना चाहते, क्योंकि टीका लेने के बाद भी संक्रमण तो फैल ही रहा है. इस तर्क से एक बात तो साफ है कि सरकार के लिए टीके की डोज की खेप बढ़ाने से ज्यादा जरूरी है कि टीके की उपयोगिता और उसके बारे में फैल रहे भ्रम को दूर किया जाए..

मौत के सवाल पर चुप्पी क्यों?

त​मिलनाडु के तिरूपुर से सरस्वती कहते हैं कि वैक्सीन लेने के बाद भी लोगों की मौत हो रही है. कई ऐसे लोगों को मरते देखा है, जिन्हें कोरोना नहीं हुआ पर वैक्सीन लेने के बाद उनकी तबियत खराब हुई और कुछ ही दिनों में मौत हो गई. डॉक्टर इस बात का ठीक से जवाब ही नहीं देते है कि आखिर टीके में ऐसा क्या है कि व्यक्ति की मौत हो जा रही है? इसी डर से ​तिरुपुर के शिवा भी कोविड बचाव वैक्सीन नहीं लगवा रहे हैं. वो कहते हैं कि मैं और मेरी पत्नी नेत्रहीन हैं, हमारा एक बच्चा भी है. मुझे डर है कि वैक्सीन लगवाने के बाद अगर मुझे या मेरी पत्नी को कुछ हो जाता है तो हमारे बच्चे का क्या होगा? मैंने देखा है कि कुछ लोगों ने कोरोना बचाव का टीका लगवाया और एक सप्ताह में ही उनकी मौत हो गई. अब मौत चाहे किसी भी कारण से हुई हो लेकिन हमें तो टीका ही एक वजह समझ में आ रहा है. कुछ लोगों ने समझया कि टीका सुरक्षित है पर नेत्रहीन या मेरे जैसे दूसरे दिव्यांग अस्पताल जाकर कैसे पंजीयन करें और टीका लगवाएं? ना तो सरकार हमारी दिक्कतें समझ रही है ना ही डॉक्टर्स बता रहे हैं कि टीका सुरक्षित है या नहीं?

झारखण्ड राज्य के गार्हह्वा जिला से शंकर कहते हैं कि गांव के लोग तो टीका लगवाने के लिए तैयार ही नहीं है. क्योंकि वैक्सीन लगने के बाद कई लोगों को तेज बुखार आया और उन्हें अस्पातल जाना पड़ा. ये ऐसे लोग हैं, जिनकी कोई खास आय नहीं है. अब अगर उन्हें इलाज के लिए शहर जाना पड़े और खर्च करना पड़े तो वे क्यों वैक्सीन लगवाएंगे. शंकर की बात लाजमी है. सरकार जोरो शोरों से टीकाकरण अभियान चला रही है पर टीका लगने के बाद हुई मौतों पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया गया है. नतीजतन ग्रामीण इलाकों में यह बात फैल रही है कि टीका उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है. 

मोबाइलवाणी के सर्वे में भी यह बात साफ हुई है कि 39 प्रतिशत लोग इसलिए टीका नहीं ले रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि वे इससे या तो बीमार हो जाएंगे या फिर मौत हो सकती है. दुख की बात ये है कि इस संबंध में जिला प्रशासन की ओर से कोई समझाइश या जागरूकता नहीं ​फैलाई जा रही है. प्रशासन सोशल मीडिया और बैनर लगा रहा है ताकि लोग टीका लगवाएं पर जो टीका नहीं लगवा रहे हैं उनके सवालों के जवाब देने वाली कोई हेल्प डेक्स काम करती नजर नहीं आ रही है. 

बुनियादी दिक्कतों को दूर करने की जरूरत

कोविड बचाव टीकाकरण अभियान को सफल बनाने की राह में जो दूसरी चुनौती है वो बुनियादी सुविधाओं की कमी. यानि लोगों के लिए सरकारी अस्पताल जाना या फिर टीकाकरण केन्द्र तक पहुंच पाना मुश्किल हो रहा है. 58 प्रतिशत लोगों ने कोविड बचाव का टीका इ​सलिए ही नहीं लगवाया है क्योंकि केन्द्र उनकी प​हुंच से दूर हैं. सोचिए दिहाडी करने वाले किसी मजदूर को दिन भर में मुश्किल से 250 से 400 रुपए मिलते हैं और अगर उसमें से भी वह 100 रुपए से ज्यादा सेंटर जाने में खर्च कर दे तो उसके हाथ में क्या बचेगा? हमारे जैसे लोगों के लिए यह मामूली रकम हो सकती है पर गरीब तबके के लिए एक—एक रुपए की कीमत है. बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में टीकाकरण केन्द्र 5 से 20 किमी की दूरी पर हैं. गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर बनी कोरोना टीकाकरण की डेक्स अक्सर टीके की कमी से जूझती है इसलिए ग्रामीणों को मजबूर होकर शहर के जिला अस्पताल का रूख करना पड़ रहा है. 

उत्तरप्रदेश के कुशीनगर से संगम कुमार कहते हैं कि गांव के लोग टीका लगवाना चाहते हैं पर अधिकांश लोगों के पास स्मार्ट फोन नहीं है तो पंजीयन करने का तरीका नहीं पता, दूसरी दिक्कत है कि टीकाकरण केन्द्र गांव से 15 किमी दूर है, जहां बहुत ज्यादा भीड़ रहती है. दूसरा केन्द्र 45 किमी दूूर है, वहां भी यही हाल है. गांव के लोग किसी तरह केन्द्र तक पहुंचते हैं और बिना टीका लगवाएं वापिस आ जाते हैं. जो लोग इस प्रक्रिया से परेशान हो गए हैं, वो कहते हैं कि अब जब गांव के भीतर टीका लगना शुरू होगा तब लगवाएंगे. उत्तरप्रदेश के डालीगंज से लक्ष्मी कहती हैं कि घर में छोटा वाला फोन है, तो कैसे पंजीयन करें? लक्ष्मी के बाकी और भी साथी हैं जिन्होंने मोबाइल और इंटरनेट की दिक्कतों के चलते टीका नहीं लगवाया है. वे सभी कहते हैं कि जब सरकार पोलियो अभियान की तरह कोविड बचाव टीका अभियान चलाएगी तभी टीका लगवाएंगे. पटना के समस्तीपुर से पप्पू पासवान कहते हैं कि टीकाकरण केन्द्र पर इतनी लंबी लाइन है कि लोगों को वेटिंग में 6—6 घंटे गुजर जा रहे हैं. टीकाकरण केन्द्र घर के पास है पर हम टीका इसलिए नहीं लगवा पा रहे हैं क्योंकि स्मार्ट फोन नहीं है तो पंजीयन नहीं हुआ. टीवी पर सुना कि बिना पंजीयन भी टीका लगवाया जा सकता है पर केन्द्र पर डॉक्टर कह रहे हैं कि उनके पास ऐसा कोई आदेश नहीं है. 

मोबाइलवाणी के सर्वे में 72 फीसदी लोगों ने ये कहा है कि उनके पास स्मार्ट फोन नहीं है इसलिए टीका नहीं लगवा पा रहे हैं. जिन कुछ लोगों के पास फोन है उनके सामने इंटरनेट की दिक्कत है. गांव में सही नेटवर्क ही नहीं है कि स्लॉट बुक करें. ग्रामीण कहते हैं कि कोरोना से बचना भी जरूरी है, टीका लगवाना भी जरूरी है पर जब सरकार ने टीका लगवाने के प्रक्रिया को इतना चुनौती भरा बना दिया है तो फिर आम आदमी कैसे टीका लगवाएगा? बिहार, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जो टीकाकरण अभियान में रोज नए आयाम तय कर रहे हैं, असल में ये सारा गणित शहरी क्षेत्र या फिर शहरों के आसपास बसे गांवों का है. सुदूर ग्रामीण अंचलों तक अभी भी टीकाकरण की राह मुश्किल बनी हुई है. 

वैक्सीन की कमी कैसे होगी पूरी?

विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना की तीसरी लहर आए इसके पहले देश की 70 फीसदी आबादी को टीका लग जाना चाहिए. लेकिन सरकार जिस गति से टीकाकरण कर रही है उससे यह उम्मीद धुंधली होती नजर आ रही है कि तीसरी लहर को काबू किया जा सकता है. असल में टीकाकरण अभियान में स्मार्ट फोन, इंटरनेट, पंजीयन और दूसरी अन्य प्रक्रियों के शामिल होने से लोग काफी परेशान है. शहरी आबादी तो फिर भी टीके के प्रति जागरूक दिखाई दे रही है पर ग्रामीण इलाकों में दिक्कतें बनी हुईं हैं. 

सर्वे में शामिल 58 फीसदी लोगों ने कहा है कि उनके परिवार या जान पहचान के लोगों ने अब तक वैक्सीन नहीं लगवाई है इसलिए उन्होंने भी नहीं लगवाई. हालांकि यह तर्क बेतुका लग सकता है पर इसके पीछे का कारण ये है कि कोरोना बचाव का टीका लेना मुश्किल बना हुआ है. चुनिंदा टीकाकरण केन्द्रों में लंबी वेटिंग है, ऐसे में काम छोड़कर टीके के लिए चक्कर लगाने के लिए लोग तैयार नहीं है. कई लोगों को स्लॉट बुक करने में भी परेशानी आ रही है. तिरूपुर से सारथी कहते हैं कि मैंने अपने परिवार और बाकी कुछ और लोगों को कोविड का टीका लगवाने के लिए राजी कर लिया है लेकिन हमारा स्लॉट बुक नहीं हो रहा है. बिना स्लॉट बुकिंग के टीका नहीं लग सकता इसलिए लोग हताश हैं और अब वे बार—बार कोशिश नहीं करना चाहते. 

शिवपुरी से श्यामलाल लोधी कहते हैं कि गांव में अभी भी वैक्सीन के लिए कैंप नहीं लग रहे हैं. रेडीहिम्मतपुर क्षेत्र के सरपंच और दूसरे अधिकारियों ने तब वैक्सीन नहीं लगवाई है. ऐसे में ग्रामीणों से क्या उम्मीद की जाए? सरकार को पहले नि:शुल्क कैंप लगाने की व्यवस्था करनी होगी , क्योंकि गांव वाले शहर जाकर टीका लगवाने के लिए तैयार नहीं हैं. यह बहुत खर्चीला काम है और हर तबका यह खर्च वहन नहीं कर सकता.

इन सबके बीच टीकों की कमी भी मुश्किलें पैदा कर रही है. अगर कोई ग्रामीण किसी तरह स्मार्ट फोन का जुगाड कर, बार—बार की कोशिश के बाद स्लॉट बुक कर भी ले और कई किलोमीटर दूर टीकाकरण केन्द्र पर पहुंचकर घंटों अपनी बारी का इंतजार करें और जब उसका नम्बर आए और पता चले कि टीके खत्म हो गए हैं… तो सोचिए क्या वह दोबारा ये सारी प्रक्रिया करने के लिए राजी होगा? बिहार चेनारी से यशवंत कुमार बताते हैं कि चेनारी के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में आए दिन वैक्सीन खत्म हो जा रही है. लोगों को किसी तरह जागरूक करके टीकाकरण केन्द्र तक पहुंचाया जा रहा है पर यहां जब टीके नहीं लगते हैं तो उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है. क्योंकि टीका लगवाने के चक्कर में लोगों को एक दिन के काम का नुकसान होता है.

सिवान जिले के आंदर प्रखंड में भी आए दिन लोगों को वैक्सीन सेंटर से मायूस लौटना पड रहा है. असल में यहां दूर—दराज के गांव के लोग भी टीका लेने के लिए पहुंच रहे हैं, जबकि उनकी तुलना में टीके कम उपलब्ध हो रहे हैं. स्वास्थ्य प्रबंधक मधुरेन्द्र कुमार कहते हैं कि टीके ज्यादा नहीं बुलवा सकते हैं क्योंकि उनके खराब होने का डर है और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में टीकों को सुरक्षित रहने का प्रबंध नहीं है. ऐसे में ग्रामीणों को परेशानी तो होगी ही. ये दिक्कतें मुंगेर, मधुबनी, समस्तीपुर, शिवपुरी, जखनियां, हजारीबाग, बोकारो जैसे दर्जनों​ जिलों और उनके प्रखंडों से आ रही है.

सरकार को चाहिए कि वह सोशल मीडिया पर अपनी सूरत चमकाने से ज्यादा ध्यान गांव में हो रहे टीकाकरण पर दे. क्योंकि इन राज्यों में दूसरी बड़ी दिक्कत आने को है. मानसून आ चुका है और बाढ़ का खतरा बना हुआ है. अगर समय रहते ग्रामीण इलाकों में टीकाकरण का काम पूरा नहीं हुआ तो बाढ़ की चपेट में आने के बाद यह काम पूरी तरह से रूक सकता है. इस बीच बाढ़ से पैदा होने वाली बीमारियां और फिर कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर का अंदेशा… इसलिए अच्छा होगा कि सरकार कोविड बचाव का टीका लगाने के साथ साथ, संदेह को दूर करने वाला, व्यवस्थाओं को दुरूस्त करने वाला एक बेहतर प्रशासनिक टीके का प्रबंध करे!