लोकसभा चुनाव से महिलाओं की मांग पत्र का अपना ही महत्व !

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इस चुनावी मौसम में हाशिए पर रहने वाले ग्रामीणों, किसानों और योजना कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले कई महिला समूहों ने गांव, जिला और राज्य स्तर पर प्रतियोगियों और पार्टियों के साथ साझा करने के लिए घोषणापत्र का मसौदा तैयार किया है. घुमंतू जनजातियों की महिलाओं से लेकर गन्ना काटने वालों तक, छोटे सामाजिक और श्रमिक समूह मौजूदा चुनाव लड़ रहे राजनेताओं और पार्टियों के सामने अपनी मांगों का चार्टर पेश कर रहे हैं. शैला यादव, सातारा स्थित एक सामाजिक कार्यकर्ता जो कि घुमंतू जनजातियों व विमुक्त जनजातियों से सम्बन्ध रखती हैं, वे बहनबॉक्स को बताती हैं कि कैसे इन जनजातियों की औरतों को सालों से एक वोट-बैंक के तौर पर देखा गया है; और वह चाहती हैं कि वह इस रिवायत को नेतृत्व और राजनीतिक भागीदारी की ओर मोड़ सकें. वे कहती हैं कि आज़ादी के बाद से राजनीतिक दल अपने बुनियादी मुद्दों से अनजान रहे हैं, इसलिए अपने मुद्दों को उठाना और अपना घोषणापत्र बनाना उनके लिए ज़रूरी था.

शैला यादव भटके विमुक्त संयोजन समिति का हिस्सा हैं, जो महाराष्ट्र स्थित ज़मीनी स्तर के संगठनों का एक समूह है जो एनटी डीएनटी समुदाय पर केंद्रित है. उन्होंने समूह के घोषणापत्र के लेखन में योगदान दिया है जिसे राज्य में चल रहे आम चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के साथ साझा किया जाएगा. महाराष्ट्र में चुनाव 5 चरणों में हो रहे हैं- 19 अप्रैल, 26 अप्रैल, 7 मई, 13 मई और 20 मई. स्वास्थ्य, रोज़गार, शिक्षा, कल्याणकारी योजनाओं और नागरिकता दस्तावेज़ों तक आसान पहुंच, समुदाय के लिए अलग बजट आवंटन और जाति-आधारित जनगणना इनमें से कुछ उन महत्वपूर्ण मांगों में से हैं जो कि इस घोषणापत्र में लिखी गयी हैं. समुदाय की महिलाएं – जिनमें से अधिकांश अभी भी घुमन्तु हैं – उन्हें खुद को मतदाता के रूप में पंजीकृत करने में हमेशा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनके पास पते और पहचान दस्तावेज़ों, जन्म प्रमाण पत्र और आधार कार्ड की कमी होती है. इस प्रकार, घोषणापत्र में यह एक प्रमुख मांग है. इसके अलावा, सूची में एनटी डीएनटी महिलाओं के खिलाफ सामाजिक और संस्थागत पक्षपात को मिटाने के लिए एक सरकारी पहल की मांग भी शामिल है. उओस्तोड मजूर संगठन जो कि गन्ना काटने वाली महिलाओं का समूह है और महिला किसान अधिकार मंच (MAKAAM) से जुड़ा हुआ है, उन्होंने भी एक योजना तैयार की है. यह निष्क्रिय मतदाता से सक्रिय चुनावी प्रचारक बनने की ओर के बदलाव को दर्शाता है.

बहनबॉक्स की वरिष्ठ संवाददाता प्रियंका तुपे रिपोर्ट करती हैं कि गन्ना काटने वाली महिलाओं को स्वास्थय, सुरक्षा, और वेतन जैसी कई विशाल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. बीड जिले के काथोड गाँव में ज्योत्सना थोराट एक गन्ना काटने वाली महिला हैं जो कि तेरह साल से यही काम कर रही हैं. ज्योत्सना ने दीपा वाघमारे,  क्रांति खळगे और रुपाली डोंगर के साथ मिलके गन्ना काटने वालों की तरफ़ से स्थानीय NCP लीडर अरुण डाके के सामने अपना घोषणापत्र पेश किया. बीड में सैकड़ों गन्ना काटने वालों का साक्षात्कार लेने के बाद, बहनबॉक्स टीम ने मार्च में एक हफ्ते के लिए मनीषा टोकले, जो कि एक वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं, उनके आवास पर मुलाकात की और घोषणापत्र के मसौदे पर काम करना शुरू किया. समूह का कहना है कि यह हर दिन 8-10 घंटे का गहन काम था. गन्ना काटने वाले लोग गोपीनाथ मुंडे उओस्तोद कामगार महामंडल की कार्यप्रणाली से भी असंतुष्ट हैं, जिसकी स्थापना महाराष्ट्र सरकार ने उनके कल्याण के लिए की थी. एक कार्यकर्ता का कहना है कि यह संस्था अपने गठन के बाद से ही निष्क्रिय है और समाधान में मददगार नहीं रही है.

तो अब बात करते हैं कि आख़िरकार इस घोषणापत्र की प्रमुख मांगें क्या हैं. पहली, चीनी मिलों और महाराष्ट्र सरकार द्वारा गन्ना काटने वाली महिलाओं को पंजीकृत किया जाना चाहिए और पहचान पत्र दिए जाने चाहिए. दूसरी,उन्हें अपने कार्यस्थल पर पानी, बिजली कनेक्शन और शौचालय के साथ रहने की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए. तीसरी, महिलाओं को उनका वेतन सीधे दिया जाना चाहिए. उन्हें सरकारी नियमों के अनुसार साप्ताहिक अवकाश, मातृत्व अवकाश और कार्यस्थल पर क्रेश उपलब्ध कराया जाना चाहिए. इसके अलावा, गोपीनाथ मुंडे उउस्तोड कामगार महामंडल का क्रियाशील होना, और किसी भी दुर्घटना में उनका मुकादम से लिया गया क़र्ज़ माफ़ किया जाना चाहिए. महिला किसान अधिकार मंच की भी समान मांगें हैं जैसे कि पंजीकृत होना, संपत्ति, वन और भूमि अधिकार मिलना, मछुआरे और पशुपालन करने वाली महिलाओं का पंजीकरण, और जैविक खेती में महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिसके साथ-साथ उन्हें सरकारी सब्सिडी, सिंचाई सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए. मुंबई के राइट टू पी समूह ने दो साल पहले एक नागरिक घोषणापत्र बनाया था, विशेष रूप से बीएमसी (बृहन्मुंबई नगर निगम) चुनाव के लिए, लेकिन चूंकि ये अभी तक आयोजित नहीं हुए हैं, समूह के कार्यकर्ताओं का लक्ष्य राजनीतिक नेताओं से मिलना और मुंबई में सार्वजनिक शौचालय प्रदान करने के अपने मुद्दे को उठाना है.

इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? अपनी राय और प्रतिक्रिया जरूर दें . यह आर्टिकल नारीवाद के नज़रिये से बहनबॉक्स के आम चुनाव 2024 कवरेज का एक हिस्सा है जो कि प्रियंका तुपे द्वारा शोध करने के बाद लिखा गया है और संपादन मालिनी नायर द्वारा किया गया है. इसका अनुवाद प्रांजली शर्मा ने किया है. अधिक जानकारी के लिए हमसे इसी तरह जुड़े रहें, और हमारा आलेख पढ़ने के लिए बहोत बहोत शुक्रिया ।