पानी पहुंचाने का वादा भी अधूरा?

लेखक – प्रियंका तुपे – बहनबॉक्स फीचर्स

जल जीवन मिशन (JJM). एक ऐसी योजना जिससे कि हर घर में पानी की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए थी, वह ‘हर घर जल’ मुहैया करने में असफल रही है. 2019 में लॉन्च की गयी, इस योजना का लक्ष्य इस वर्ष तक सभी ग्रामीण घरों को घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है. महाराष्ट्र के पाळघर जिले के एक छोटे से पहाड़ी गाँव हरिपाड़ा में अप्रैल की चिलचिलाती धूप में हर दिन कई महिलाएं 4 से 5 बार आने-जाने का लम्बा सफर तय करती हैं ताकि वे अपने परिवारों के लिए पानी ला सकें. मुंबई से सिर्फ 100 किलोमीटर दूर पालघर जिले के जव्हार तालुका में स्थित इस गांव में पीने योग्य पानी का केवल एक ही स्रोत है – सार्वजनिक कुआं, जिसका जल स्तर दिन पर दिन गिरता जा रहा है. जल संकट इतना गंभीर है कि कई महिलाएं अपनी जान जोखिम में डालने को भी तैयार हैं, जिनमें से एक 20 साल की उर्मिला है जो कि 8 महीने की गर्भवती हैं. 

बहनबॉक्स की रिपोर्टर प्रियंका तुपे इस ज़मीनी कवरेज के दौरान उर्मिला से पूछतीं भी हैं, कि कहीं उर्मिला का पाँव फिसला और वह गिर गयी तो? इस सवाल पर उर्मिला जवाब देती है कि उसे इन सबकी आदत है, और आखिरकार वह इसके अलावा और कर भी क्या सकती है? रिपोर्टिंग करते-करते दोपहर के 3 बज गए और बहनबॉक्स की टीम ने देखा कि करीबन 6 साल की एक बच्ची नंगे पाँव अपने सर पर पानी से भरा घड़ा ले जा रही है. उन्हें और भी छोटे-छोटे बच्चे कुएं से पानी लाते हुए मिले. उन्होंने पाळघर के वाढा और जव्हार तालुका जैसे कम से कम आधा दर्जन अन्य गांवों में ये दृश्य देखे. उनमें से कुछ गाँव कटी, बंधरपाड़ा, बुधवाली , विनवल , बोथापाडा, हिरडपाडा भी हैं.  

कातकारी, जो कि विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूहों (PVTG) में गिने जाते हैं और अत्यधिक गरीबी व अभावपूर्ण जिंदगी बसर करते हैं, उनके लिए बुधवाली के सरपंच अनंत पाटिल को कातकारी बस्ती के लिए पानी के टैंकर की व्यवस्था करनी पड़ती है. कातकारी पहाड़ियों पर रहते हैं जहां पानी का कोई स्रोत नहीं होता है. बहनबॉक्स की टीम ने जब हिरडपाडा की आदिवासी महिलाओं से बात-चीत करि तो पाया की उन्हें जल जीवन मिशन और उसके ‘हर घर जल’ के उद्देश्य के बारे में कोई जानकारी नहीं है. बोथापाडा की महिलाओं ने शिकायत की कि उनके गाँव को बांध परियोजना के लिए अधिग्रहित किए जाने के बाद से 10 साल तक उनकी पानी की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ किया गया है. जब इस बारे में सवाल करो तो उन्हें सरपंच और बाकी सरकारी अफसरों से यही सुनने को मिलता है कि वे वैसे भी विस्थापित हो जाएंगी तो उन्हें पानी का कनेक्शन क्यों दिया जाये?

बहनबॉक्स की टीम जितनी भी वाढा और जव्हार तालुका की औरतों से मिलीं तो उन्होंने यह पाया कि उन महिलाओं के पास कपड़े धोने के लिए दूषित पानी इस्तेमाल करने के अलावा और कोई चारा नहीं था. यह पानी पत्थरों और रेत के लिए विस्फोटित की जा रही खदानों से भरा हुआ था. और यह सिर्फ पालघर की दिक्कतें नहीं हैं; हाल ही में की गयी चुनावी कवरेज में बहनबॉक्स की टीम ने पाया कि अकोल , अमरावती, और यवतमाल जैसे कम से कम 8 गाँव में औरतों को कुओं और सार्वजनिक नलों से पानी लाना पड़ता है.  आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 14 अप्रैल, 2024 तक भारत में 19.3 करोड़ ग्रामीण घर हैं और उनमें से 14.6 करोड़ यानी कि 75.97% के पास नल के पानी का कनेक्शन है. जल जीवन मिशन डैशबोर्ड के जिलेवार आंकड़ों से पता चलता है कि पालघर में,  4.44 लाख घरों में से 2.96 लाख घरों में पानी के नल हैं — जिसका मतलब है कि 1.47 लाख घर ऐसे हैं जिन्हें अभी भी कार्यात्मक नल जल कनेक्शन प्राप्त नहीं हुआ है. जेजेएम पोर्टल यह भी कहता है कि स्वास्थ्य पर इसके परिणाम पर पांच प्राभाविक अध्ययन हैं, लेकिन पांचों में ‘संभावित यानी कि अनुमानित’ प्रभाव का उल्लेख है.

कमरतोड़ काम की बात कही जाए तो यवतमाल तो धनगरवाडी गाँव की दिहाड़ी वेतनभोगी 30 वर्षीया सकराबाई केंगड अपने घर से 500 मीटर दूर एक सार्वजनिक नल से दिन में कम से कम 6-7 बार पानी लाती हैं, और एक समय में कम से कम तीन बर्तन ले जाती हैं. इसकी वजह से वह पहले से ही जोड़ों के दर्द से जूझ रहीं हैं. वह बताती हैं कि अगर उनके दरवाज़े पर ही नल और पानी की सुविधा होती, तो उन्हें अपनी शाम की वयस्क साक्षरता कक्षाओं लिए समय मिल जाता. नासिक स्थित शोधकर्ता मयूरी धूमल, जो पानी, स्वच्छता और जेंडर पर काम करती हैं बताती हैं कि नासिक के त्र्यंबकेश्वर और इगतपुरी तालुका में स्थिति सबसे खराब है. वह बयान करतीं हैं कि गांवों की महिलाओं को हर साल पानी के लिए औसतन 1800 किमी दूर जाना पड़ता है और उनके सिर पर प्रति वर्ष औसतन 22 टन वज़न होता है.

नासिक के तीन गांवों – हिरडी, धुमोडी और त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र के ब्राह्मणवाडा के लिए जल जीवन मिशन के आंकड़े बताते हैं कि इन गांवों में 100% घरेलू नल कनेक्शन और नियमित, कार्यात्मक जल आपूर्ति है, जबकि यह सच नहीं है और महिलाएं सामान्य कुओं से पानी ला कर ढो रही हैं. धुमोड़ी गांव में नल तो लगा दिए गए हैं लेकिन अभी तक पानी की उपलब्धता नहीं हुई है. ये गुमराह करने की बात है कि कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा योजना के तहत निजी और व्यक्तिगत जल स्रोत जैसे कुएं, बोरवेल, चेक डैम, नदी नालों जैसे सामान्य जल स्रोतों को भी नल जल कनेक्शन के रूप में दिया जा रहा है. पाळघर के गांवों में, जल मिशन के आसपास लोगों की भागीदारी, जागरूकता और वकालत के मुद्दों पर काम करने वाले श्रमजीवी संगठन ने पाइपों की घटिया स्थापना के विरोध में 1 हफ्ते तक आंदोलन किया. अप्रैल के पहले सप्ताह में पाळघर जिले के जव्हार, मोखाडा, वाडा ब्लॉकों की महिलाओं ने एक हाथ में बर्तन और दूसरे हाथ में लकड़ी की छड़ी/बांस लेकर इस आंदोलन में बड़ी संख्या में भाग लिया. अकोल जिले के तिवसा गाँव के पंचायत सदस्य भारत भारडे ने बहनबॉक्स को बताया कि लोकसभा चुनाव से पहले के महीनों में उनके घरों में पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है और पाइपलाइनें अब डाली जा रही हैं.

पालघर जैसे जिलों में, सार्वजनिक कुओं में पानी की दैनिक शुद्धि सुनिश्चित करने के लिए ग्राम पंचायतों की मदद से जिला परिषदों द्वारा पाड़ा (हैमलेट) सेवकों को नियुक्त किया जाता है और आंगनबाड़ियों और आदिवासी आश्रमशालाओं सहित ग्रामीण क्षेत्रों में सभी सार्वजनिक संस्थानों में नलों के माध्यम से पानी की दैनिक शुद्धि सुनिश्चित की जाती है. हालाँकि, जैसा कि बहनबॉक्स द्वारा जांच की गई है, 14 गांवों में कोई घरेलू जल आपूर्ति या केंद्रीकृत जल शुद्धिकरण तंत्र नहीं है. जव्हार ब्लॉक के कसाटवाड़ी गांव के गराडवाड़ी पाड़ा की सीता खिरडी 25 सालों से पद सेविका का काम कर रही हैं. वे बताती हैं कि वे इस बड़ी ज़िम्मेदारी के कारण एक दिन से ज़्यादा गाँव नहीं छोड़ सकतीं. साल की शुरुआत में उन्हें 25 किलो बोरा ब्लीचिंग पाउडर उपलब्ध कराया जाता है और उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होता है कि इसे बच्चों की पहुंच से दूर रखा जाए. सीता को इस काम के लिए मासिक मानदेय के रूप में 300 रुपये मिलते हैं और यह राशि 25 सालों में नहीं बदली है.

हिरडपाडा गाँव में जब बहनबॉक्स की टीम ने पीएचसी रिपोर्टों को देखा तो पाया कि 2019 और 2021 के बीच लगभग आधा दर्जन बार पानी दूषित हुआ था लेकिन बाकी  वर्षों का कोई रिकॉर्ड नहीं था. पालघर के विनवल और बुधवाली में दो सरकारी आदिवासी आश्रमशालाओं यानी कि  आवासीय विद्यालयों में जल जीवन मिशन के तहत नल पर पानी उपलब्ध नहीं है. गर्मी कोई अपवाद नहीं है. स्कूल प्रबंधन साल भर पानी के टैंकर खरीदता है और प्रतिदिन 15,000 से 20,000 लीटर पानी खरीदने पर हर महीने 70-80,000 रुपये का खर्च आता है, जिसकी भरपाई आदिवासी विभाग करता है, परंतु पानी की आपूर्ति फिर भी नहीं होती है. दोनों संस्थानों के शौचालयों में पानी की भी सुविधा नहीं है, जिससे स्वच्छता संबंधी समस्याएं पैदा हो रही हैं. स्वच्छ पानी की कमी के कारण, महिलाओं कम पानी पीने के लिए मजबूर होती हैं और उनकी माहवारी की साइकिल पर भी असर पड़ता है. 

तानसा, भटासा, ऊपरी वैतरणा, मध्य वैतरणा, निचला वैतरणा बांध और ठाणे और पालघर जिलों में बनी तुलसी, विहार झीलें मुंबई और उपनगरों को पानी उपलब्ध कराती हैं पर पालघर में बांधों के पास रहने वाले लोगों को इसके बावजूद पानी की कमी का सामना करना पड़ता है. अब परिणामों की बात की जाए तो व्यक्तिगत उपभोग और सिंचाई योजनाओं के लिए पानी की कमी के परिणामस्वरूप गरीबी बढ़ती है; और तो और कृषि उपज में विविधता की कमी व उच्च मातृ एवं शिशु मृत्यु दर के कारण होने वाले कुपोषण में भी इसका योगदान होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि सभी के लिए न्यायसंगत और समान जल की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए महाराष्ट्र भूजल विनियमन अधिनियम 1993 का प्रभावी कार्यान्वयन आवश्यक है. इसके बिना जल जीवन मिशन सफल हो ही नहीं सकता. यह अधिनियम जिला कलेक्टरों जैसे अधिकारियों को जिले में जल संसाधनों में पानी की उपलब्धता पर नियंत्रण करके भूजल के प्रबंधन को विनियमित करने का अधिकार देता है.

इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? अपनी राय जरूर कमेन्ट कर बताएं , यह आलेख नारीवाद के नज़रिये से बहनबॉक्स के आम चुनाव 2024 कवरेज का एक हिस्सा है जो कि प्रियंका तुपे द्वारा शोध करने के बाद लिखा गया है और संपादन मालिनी नायर और लहर डेस्क द्वारा किया गया है. इस आलेख का अनुवाद प्रांजली शर्मा ने किया है. अधिक जानकारी के लिए हमसे इसी तरह जुड़े रहें, जन मुद्दों पर हमारी आलेख पढ़ते रहें.