केंद्र सरकार ने राकेश अस्थाना को दिया दिल्ली कमिश्नर का पद

लेखिका: असमा खान 

र्वनाश ही श्रेयस्कर होगा पिछले दिनों हुई तबाही को व्याख्यायित करने के लिए। मीडिया की दिखाई उस तस्वीर को जिसे व्यवस्था दुरुस्त करने की गुहार लगा रही जनता के लिए बेहद मुश्किल होगा, उस दर्द‌नाक कल‌ के काल‌ को‌ भुलाया जाना अभी समझ भी नहीं आया और दुनिया भर में मचे कोहराम के साथ दिल्ली जो आज के लिए लड़ रही थी जनता की क्या चाहत थी सभी को पता है, शांति व्यवस्था कायम रखने के साथ प्रशासनिक व्यवस्था बहाल रहे इसके सवालों में सभी सत्ता पक्ष और विरोधी उलझ रहे हैं। जिस तरह‌ बर्बादी का तूफान गुज़रा अरविंद केजरीवाल इस बार सतर्क हो गए, सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि यह नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार ही होनी चाहिए। दिल्ली जो एस एन श्रीवास्तव के रिटायरमेंट के बाद नए पुलिस आयुक्त की राह देख रही थी शायद सभी विकल्पों में सबसे बेहतर विकल्प सत्ता पर आसीन पार्टी प्रमुख को गुजरात कैडर के अधिकारी राकेश अस्थाना का ही मिला, क्योंकि भाई भतिजावाद की परंपरा का द्योतक हमारा शासन तंत्र सीबीआई में निदेशक के पद पर उनका अनुभव देखते हुए दिल्ली की कमान उन्हें थमा बैठा, और बाकी अन्य पक्ष एक तरफ लपेट कर रख दिए गए….. अभी जश्न भी नही मना पाए थे दिल्ली के लोग की एक के बाद एक आसमानी आफत की तरह कहर बनकर विरोधियों के दबे स्वर विधानसभा के मानसून सत्र में दागे जाने लगे। आम जनता के हितों का बिगुल बजा रही आप पार्टी के दावे छलांगें और‌ कुदालें‌ मारती राजनीति किसी और ही दिशा में कहीं भटक गई। बीजेपी के हौंसले दिनों-दिन आसमान पर निशाना साधते हुए मोदी-पार्ट 2 में अपने ही फैसलों के प्रभाव से रेत में सिर घुसाने पर विवश हो गए। शायद पार्टी प्रमुख गफलत में गिनती गिन रहे होंगे, और इसी कारण‌ इस दफा सीबीआई के पूर्व निदेशक के रिटायरमेंट के झटके का विरोध का हमला इन्हें झेलना पड रहा है। देश में सत्ता पर काबिज़ पार्टी के लिए फैसलों पर पल-पल नज़र बनाए विपक्ष का हल्लाबोल यह कहते हुए कि गुजरात कैडर 1984 बैच के अधिकारी की यूटी कमिस्नर के पद पर नियुक्ति असंवैधानिक है, कमिशनर की ज़िम्मेदारी किसी रेस्टोरेंट के संचालन की नहीं होती, इलाक़े भर की ज़िम्मेदारी की जवाबदेही के साथ शांति व्यवस्था कायम कर राज्य व्यवस्था को सुचारू रखना भी प्रशासनिक नीतियों का ही हिस्सा है। राकेश अस्थाना को आयुक्त के रुप में नियुक्त करने के अलावा भी और विकल्प गृहमंत्रालय के समक्ष थे फिर कांग्रेस के सवालों के साथ साथ अन्यों सवालों के आभास को दरकिनार कर सरकार अपनी शक्तियों के इस्तेमाल के साथ विपक्ष के इस तरह के हमले पर भी संक्षय रखकर आखिर क्या सिद्ध कर सकती है। राकेश अस्थाना जो मात्र तीन दिन में ही रिटायर होने जा रहे थे। फिर चलते-चलते विदाई स्वरूप दिल्ली ही थमा दी इस फैसले पर सवाल और बवाल पूर्व निश्चित था। इस तरह के मनमाने ढंग से बीजेपी किस भविष्य का निर्माण करेगी और इस काल की किस तस्वीर को फ्रेम में जड़ेगी,‌ यह सभी उत्पाती कड़ियां हैं, मोदी पार्टी 1-2 में जनता के भविष्य और विपक्ष की विकास नीतियों के ख़ाके को फाडचीर कर अच्छे दिन के वायदों का सुहाना सपना मंगल गृह की सैर करा देगा शायद कम अक्ली वाले सांसदों और नेताओं को यह समझने के लिए ट्यूशन की ज़रूरत है।

फिर दोनों पक्षों की तनातनी में विपक्ष पर वार करते हुए बुरे वक्त में ईश्वर की राह पकड़ने के सिवा बीजेपी के विधायक रामवीर बिधूड़ी का यूं सदन में कसीदे पड़ना भोपू को हाथ में पकड़कर उपदेश देने के समान ही प्रतीत हो रहा है, सुन‌लेते है इनका पक्ष भी, बचाव में स्क्रीप्ट में जल्दी जल्दी में ऐड कर कहने लगे कि विरोध कर रहे विधायकों के पास राकेश अस्थाना के बारे में जानकारी का अभाव है, और सभी को दुरूस्त करते हुए पक्ष लेते समय यह भी बताने लगे कि पुलिस विभाग को दी अपनी सेवाओं में उन्हें शानदार सेवाओं के लिए 2001 में राकेश अस्थाना को पुलिस मेडल से सम्मानित किया जा चुका है। बिहार में बहार बीजेपी लाई या जनता दल या फिर यह‌ कहेगे कि आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव जिसमें जेल गए उस चारा-घोटाले के पर्दाफाश करने पर जनता को जागरूक करने पर दी गई सेवाएं गुजरात में एनकाउंटर का फैसला लेते समय कैसे बदल‌ गई और एक आईपीएस अधिकारी के जीवन का मौल ही नहीं बचा। 2009 में जब देश में कांग्रेस की सरकार थी, उस समय भी एक‌बार फिर पुनरावृति कर दी गई राकेश अस्थाना को प्रेजिडेंट पुलिस मेडल दिया गया। 1984 के बैच में गुजरात के अलावा और भी अधिकारी रहे फिर आईपिएस क्या किसी एक की घरेलू रीति है, यहां रीति और नीति कब करवट बदलती है कुछ पता ही नहीं चलता,किसी अधिकारी को जब देश का राष्ट्रपति सम्मानित करता हैं तो सभी की तरफ से सम्मान मिलना‌ चाहिए यह कैसे हो‌ सकता‌ है‌ कि समर्थकों की‌ फौज इकट्ठा कर‌ ली‌ जाए और घर और दफ्तर के कौनो को चमकीली प्लेटों और लकड़ी के गुटको से कोनों को सजा‌ कर बिना किसी आडिट के हाई प्रोफाइल उच्च नियुक्तिया मनमानी से करा ली जाएं, राकेश अस्थाना की नियुक्ति का स्वागत करना चाहिए या‌ नही यह सभी की अपनी पर्सनल राय है संविधान ने सभी को सही ग़लत समझने का मौका एक समान दिया है और इसकी लौ सभी के लिए एक रुप से रोशनी दे रही है । दिल्ली के कमिश्नर पद की नियुक्ति पर दिली ख्वाहिशें तो राकेश अस्थाना की पूरी हुई लेकिन।
दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने का चाव‌ रिटायरमेंट से पहले पूरा कर लिया जाए ऐसी इच्छा किसी की भी हो सकती है जो शायद नियमों के नीचे कहीं दफन हो कर कण और खंड में तब्दील हो जाए। खैर संविधान में देश‌ को व्याख्यायित कर रहा यूनिट राज्यों और यूटी की सीमाओं में प्रशासन की भूमिका को जैसे दिखा रहा है वैसा न समझा गया है और नाहीं पिछले दिनों छूट मिल सकी है जनता को….


डिब्बे या लिफाफों में पैकिंग की जाती है सामान और चीज़ों की कैसे उन तस्वीरों को नज़रंदाज़ कर सकेंगें, जिन्हें देखकर देखने वालों के दुःख और‌ जिन पर गुजरी उन हालातों के पिछे की कहानी कैसे सुना पाएंगे एसएन श्रीवास्तव की गद्दी का भार या यूं कहिए भाव दिल्ली पुलिस कमिश्नर का पदभार संभालते ही स्थिति ने सैकड़ों आईपीएस और नीति निर्माताओं की बोलती बंद कर दी, बवाल आक्सीजन दवा की कमी का ही नहीं था बवाल और सवाल अव्यवस्था का भी था। नीति बनाने और लागू करने का समय‌ तो छोड़िए कागज़ी कार्यवाही कर कार्यकाल पूरा हो जाए तो खैर होगी जनता के मन में उठ रहे सवालों का जवाब स्वयं ही मिल रहा था. आईपीएस अधिकारी बालाजी श्रीवास्तव लुक आफ्टर चार्ज संभालते हुए दिल्ली को दिशा दें रही दिल्ली सरकार के आदेशों का पालन कर रहे थे लेकिन समय समाप्त हो गया। अब पर्दा गिरा और उठा।


नोटिफिकेशन से पता तो चला लेकिन सवाल एक बार फिर सामने आया क्या दिल्ली इस बार सुरक्षित होगी, और खुशहाली फिर सड़कों पर नाचेंगी, ज़िम्मेदारी पक्के तौर पर राकेश अस्थाना को दी तो गई लेकिन सदन में इसे असंवैधानिक घोषित किया गया दावे आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के इतने कड़े थे कि प्रस्ताव पारित हो‌ गया। दिल्ली पुलिस के कमिश्नर पद की नियुक्ति पर‌ विवाद जारी है और बीजेपी के सांसद हवाले पर हवाला दे रहे हैं। शायद आप सभी की याददाश्त दुरूस्त होगी वर्ष 2018 में सीबीआई निदेशक पद की नियुक्ति पर उत्पन्न हुआ विवाद जिसमें अस्थाना के खिलाफ करोड़ों की रिश्वत लेने के आरोप लगे थे, अपराधी भ्रष्टाचारी और सरकारी शक्तियों के ग़लत इस्तेमाल पर सीबीआई के पद पर कार्यरत राकेश को सवाल जवाब के साथ साथ जांच प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ा, तत्कालीन सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा ने उनके खिलाफ जांच कर मामले को अदालत तक भी पहुचाया. जिसके बाद मोदी काल में सरकार ने आलोक वर्मा को हटाकर नागेश्वर राव को सीबाआई डायरेक्टर नियुक्ति किया था। इसके बाद भी सरकारी महकमों में हेराफेरी और गलत नियुक्तियों का दौर जारी है इसी की एक कड़ी संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए तीन दिन पूर्व राकेश अस्थाना की राजधानी दिल्ली के पुलिस आयुक्त के पद पर नियुक्ती प्रशासनिक प्रक्रिया में धांधलियों के साथ सरकार का एक और ग़लत फैसला है जिससे भविष्य में एक बार फिर भ्रष्टाचार हेराफेरी अपराध को बढ़ावा मिलेगा। सत्ता का पक्ष रख रही पार्टी दायित्व के उस भार को समझ लें जिस पर सवार होने के बाद नियम और नीतियों का निर्धारण भविष्य में सतत विकास की व्यवस्था को जन्म दे।


देश में अलग-अलग तंत्र जहां लोकतंत्र की असल सूरत अपनी तरह से खंडित कर रहा है जिस अधूरेपन की लड़ाई 75वर्षों से जारी है, जनता को समय पर सही सुविधाएं जुटाने की प्रशासन की पहली ज़िम्मेदारी किस तरह पूरी होगी जब भाई-भतीजावाद और बंधुत्व ऐसी बातें उत्पन्न करेगा। आशा कि विदा हो रही किरण बांध को बिखरने से पहले सहेजने की आवश्यकता को समझना जरूरी है। केंद्र सरकार के आदेश उसके अपने सीमा के भीतर भविष्य की गणना के आधार पर लिए जाने ज़रुरी हैं। राज्य में विकास और‌ शांति बहाल रहे इसलिए विधानसभा में पेश किए जा रहे प्रस्ताव भी सही आंकड़ों के साथ समय पर रखे जाएं सदन की कार्यवाही चलती रहे तभी प्रबंधन दुरुस्त किए जाने की आशा की जा सकती है।