सेंट्रल विस्टा पुराने भारत का मकबरा होगा

सौमित्र रॉय
26 मई को मोदी सरकार दूसरे कार्यकाल के 2 साल पूरे कर लेगी। पहले कार्यकाल में सरकार ने देश की इकॉनमी को तबाह कर दिया, लेकिन कुछेक को छोड़कर बाकी जनता खामोशी से देखती, झेलती रही। इस पारी में सरकार इस देश की तमाम बौद्धिकता, इतिहास, देश की अमूल्य ऐतिहासिक धरोहरों को खत्म करने जा रही है। उम्मीद है, अगले 3 साल में यह काम पूरा हो जाएगा।
मेरे विचार में यह हो ही जाना चाहिए। भारत इसी मूर्खता का हकदार है। सिर्फ़ नई पीढ़ी ही नहीं, पुरानी पीढ़ी के कई दिग्गज सोशल मीडिया पर वक़्त ग़ुज़ार रहे हैं। बाकी लोग अपना चेहरा चमकाकर खुश हैं। लेकिन उनकी मूर्खता और सरकार से सीधे सवाल न पूछने की सनातनी प्रवृत्ति ने आरएसएस और बीजेपी सरकार को दीमक की तरह भारत की बौद्धिक संपदा और इतिहास को खत्म करने या बदलने के काम में लगा दिया है। दिल्ली में सबकी आंखों के सामने इंडिया गेट के पास पुराने भारत का कब्रिस्तान बन रहा है।

इसे बनाने में जिस शानदार ऐतिहासिक भवनों को गिराया जाएगा, उनमें जनपथ रोड पर शास्त्री भवन के पास का राष्ट्रीय संग्रहालय भी शामिल है।
राष्ट्रीय संग्रहालय में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज़, मुगल व ब्रिटिश काल के दस्तावेज़, 45 लाख फाइलें, 25 हजार दुर्लभ पांडुलिपियाँ, एक लाख से ज्यादा नक्शे व लाखों निजी पत्र और 2,80,000 दूसरे दस्तावेज़ भी हैं।
मोदी सरकार ने सिर्फ यह कहा है कि इसके म्यूजियम को बरकरार रखा जाएगा। बाकी दस्तावेजों का क्या होगा, कोई नहीं जानता। भारत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य भारत माता की मूक-बधिर, ग़ुलाम बहुसंख्यक संतानें हैं, जिन्हें झूठ और अपनी धार्मिक श्रेष्ठता पर ग़ुरूर है। ये सब-कुछ जानते, समझते हुए भी देश को चाट रहे दीमक का इलाज़ नहीं करतीं, क्योंकि उन्हें दीमक के बारे में भ्रम है कि वह उनके धर्म की रक्षा कर रहा है। वे बड़े से बड़ा झूठ और दुष्प्रचार इसीलिए बरदाश्त कर लेते हैं।

सेंट्रल विस्टा पुराने भारत का मकबरा होगा। उसमें संघी, नफरती साहित्य, देश के इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किए गए झूठे तथ्य इफ़रात में मिलेंगे।
वही बच्चों को भी पढ़ाये जाएंगे और संसद की बहस का भी हिस्सा होंगे और व्हाट्सएप पर भी ये परोसे जाएंगे। बाजार में नई किताबें भी उसी पर केंद्रित होंगी। तब ज़रूर आपको अपनी खोखली धार्मिक और नस्ली श्रेष्ठता पर घमंड होगा। फिर भी आप नहीं समझ पाएंगे कि आप गाय और गोबर के युग में पहुंच चुके हैं।
तब आप गाय के गोबर का लेप लगाकर और गौमूत्र पीकर पूरी तरह से सनातनी हो चुके होंगे और कोरोना से भी अपना बचाव कर रहे होंगे। दुनियाभर की बौद्धिक जमात आप पर जानवरों की तरह हुकूमत करेंगी और आप ग़ुलामों की तरह पीठ पर डंडे खाकर कोल्हू के बैल बने होंगे। क्योंकि हम सब इसी लायक हैं। बात सिर्फ ये नहीं कि हमारे अपने जन सरोकार वाले असल मुद्दे जिससे मुख्यधारा के मीडिया और सोशल मीडिया द्वारा सरकारी मशीनरी के सहयोग से गौड़ किया जा रहा है फिर लोकतंत्र में लोक होने का मतलब क्या है?

मैं जानता हूं कि मेरी इस रिपोर्ट को पढ़ने-समझने के बाद भी कोई एक भी बेचैन होकर सरकार से सवाल नहीं पूछेगा। सोशल मीडिया के इस दौर में लाइक, कमेंट और शेयर- इन तीन आदतों ने एक नागरिक के 11 संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह घर बैठे बहुत आसान कर दिया है। ये बाजार का दिया एक और सुविधा है जो सरकार की उंगली पर नाचता है। जब तक यह मौजूदा स्वरूप में है, तब तक तो सच जानकर सरकार से जवाबदेही मांगना बतौर नागरिक हमारी ज़िम्मदारी भी है।