2 DG भी निकला पतंजलि का प्रोडक्ट

सौमित्र रॉय
कोविड काल में गिनी पिग बनी भारत की अवाम पर एक और दवा थोपी गयी है- 2डीजी। इसके बारे में कहा जा रहा है कि इसे डिफेन्स रिसर्च डेवलपमेंट आर्गेनाईजेशन (डीआरडीओ) ने खोज की है। सरकारी ढोल पर थिरकने वाली गोदी मीडिया इसे कोविड निवारक दवा और संजीवनी जैसे न जाने कितने नाम से प्रचारित कर रही है। ये बिल्कुल झूठ है।
सूत्रों की माने तो इस दवा का रामदेव की पतंजलि से सीधा कनेक्शन है. जी हाँ आप ने सही सुना दवा की स्क्रिप्ट पतंजलि के शोधकर्ताओं ने लिखी और फ़िल्म बनाई डीआरडीओ ने। 2डीजी असल में कीमो करवाने वाले कैंसर रोगियों में कोशिकाओं की बढ़त के लिए दी जाती रही है। ये कोई नई खोज नहीं है। डीआरडीओ ने बीते साल अप्रैल में 2DG पर काम शुरू किया। मजे की बात यह है कि पतंजलि इससे पहले मार्च में ही कंप्यूटर पर शोध कर चुकी थी। यानी डीआरडीओ ने पतंजलि के कंप्यूटर शोध का क्लीनिकल ट्रायल किया और दवा बना दी।

पतंजलि के शोध में दवा का कोई दुष्परिणाम नहीं पाया गया। मिलता भी कैसे? मानव परीक्षण हुआ ही नहीं था। इसका मतलब यह हुआ कि डीआरडीओ को कहीं से दवा के परीक्षण का ठेका मिला और उसने डॉक्टर रेड्डी लेबोरेटरी के साथ मिलकर यह काम किया। रेड्डी लेबोरेटरी का डिस्ट्रीब्यूशन गांव तक है और गांव में ऑक्सीजन पहुंचना टेढ़ी खीर है। ऐसे में दवा को संजीवनी बताकर कहा जा रहा है कि इससे कोविड मरीजों की ऑक्सीजन पर निर्भरता कम की जा सकेगी।
भारत असल में स्वास्थ्य साक्षरता (हेल्थ लिटरेसी) के मामले में ढपोर शंख है। 80% डॉक्टरों का ज्ञान किताबी है। आरक्षण, नकलबाजी और लाखों की घूस देकर डॉक्टरी पढ़कर निकले सफेद कोट वालों को रिसर्च और डायग्नोसिस से परहेज़ रहता है। इसमें खास तौर से निजी मेडिकल कॉलेजों ने काफी योगदान दिया है क्योंकि उनका मात्र मक़सद मुनाफा कमाना होता है। उसी तरह की ट्रेनिंग वो अपने यहां बन रहे डॉक्टरों को देते हैं। वे तो वही दवा लिखते हैं, जिनके एवज में दवा कंपनियां उन्हें रिश्वत देती हैं। फिर मरीज़ जिये या मरे, उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
तो 2डीजी के इस नए ड्रामे में आपका स्वागत है। पूरी श्रद्धा के साथ कोरोनिल मानकर इस दवा का जो सेवन करे, वह मुक्त हो या न हो, भुक्त तो हो ही जायेगा। करोनिल के बारे में भी राम देव और उनकी पतंजलि कंपनी ने देश को भ्रमित किया है। यहां तक दुष्प्रचार किया गया कि करोनिल को विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंजूरी मिल गयी है। ये भ्रम मीडिया में बड़े संस्थानों के साथ मिलके चलाया गया ताकि लोगों को भ्रम में दाल के मुनाफा कमाया जा सके।
ध्यान रहे चोरों की बारात में एक बिस्कुट भी आपको नुकसान दे सकता है।