आज का इजराइल नाजी जर्मनी से क्या कम है?

मनीष सिंह
“जब पीड़ित को ताकत मिल जाती है- शोषक बन जाता है।”
फिलिस्तीन का ताजा विवाद, इतिहास या इस्लाम-यहूदी धर्म या मस्जिद पर कब्जे की वजह से नही, सम्पत्ति के एक कानून की वजह से भड़का है। कानून है कि अगर कोई यहूदी 1948 के पहले की किसी प्रोपर्टी पर अपना अधिकार साबित कर देता है, तो उसे वह प्रोपर्टी मिल जाएगी। मगर यही अधिकार गैर यहूदी के लिए नही है। एक तरफ 70 साल से किसी जगह रह रहा कोई, बस बेदखल कर दिया जाएगा। दूसरी ओर उसकी जगह पर किसी यहूदी ने कब्जा किया हो, तो कोई इलाज नही।
अदालत में ऐसे एक मामले में, किसी यहूदी पक्षकार का वीडियो वायरल हो गया, जिसमे वह बड़ी बड़ी घमंडी बाते कर रहा है। आखिर इजराइल को यहूदी लैंड घोषित किया जा चुका है। बाकी सेकेंड क्लास सिटीजन हैं। इसके बाद असंतोष , फिर प्रदर्शन, दमन और हिंसा और हिंसा में गोली बारी, रॉकेट, टैंक आदि का इस्तेमाल।

धर्म आधारित कानून हम भारत मे भी देख रहे हैं। नागरिकता संसोधन अधिनियम (सीएए) एक प्रयोग है है। अगर भारतीय जनमानस इस तरह के कानून के हक में दिखे, वोट मिलें, तो और भी कानून आएंगे। भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने का जोश खरोश तो आपके ही घर के कई सदस्यों को होगा बल्कि कई सारे घरों में सभी का होगा।
देश की सुख समृद्धि का रास्ता सहिष्णुता और बराबरी के कानूनों से बनता है। मिश्रित धर्म वाले देशों के पास तो औऱ कोई चारा ही नही। जिस दिन आप किसी एक धर्म को उच्चता, या किसी अन्य मतावलंबी को सेकेंड क्लास का दर्जा देंगे मामला असंतोष फिर प्रदर्शन, दमन और हिंसा और हिंसा में गोली बारी, रॉकेट, टैंक आदि का इस्तेमाल तक ही पहुँचेगा।

यहूदी कभी मजबूर थे। लेकिन फिलिस्तीन की जमीन पर यहूदी देश, किसी दान दक्षिणा से नही बना।तब दुनिया में एक अदद धरती उन्हें चाहिए थी, यहूदियों ने अपनी कूटनीति से उस भूमि को हासिल किया है। फिर अपनी मिलट्री से उसकी रक्षा की है। फिलिस्तीन के गरीबों को जबरिया जोश दिलाने वाले बाज आएं। न इस्लाम की सुपिरियरटी गिनाने से कुछ होगा, न आपकी युद्ध घोषणा , न हथियार, न कूटनीतिक सपोर्ट। इजरायल आपकी सोच से ज्यादा सक्षम है।
लेकिन आज सत्ता में यहूदी हैं। इस अंतहीन टकराव को खत्म करने का जिम्मा उनका है, वे उस इलाके के मुस्लिम्स को गौरव के साथ जीने दें। उन्हें बराबरी दें, आत्मसात करें। क्योकि ताकत और हिंसा किसी कौम को नही तोड़ती। दस में से पांच मर जाते हैं, पांच मौत का डर खोकर, खेल बदल देते हैं। वह कौम चाहे यहूदी हो, मुसलमान हो, हिन्दू हो, कश्मीरी हो, अफगानी हो, या वियतनामी।
विजेता को चाहिए कि वो अपने शोषण का दर्द याद रखे, और ताकत पाने पर शोषण से बचे। इजराइल और अरब, चाहे जितनी हिंसा कर लें, आज अथवा पचास साल बाद, समानता और सहअस्तित्व को स्वीकार करके ही विषय समाप्त होगा। वरना न करें, और दोनों पक्ष सौ साल इसी बम रॉकेट और आतंकवाद के बीच मरें जियें।

इतिहास के नजरिये से यह देखना काफी दिलचस्प है कि कैसे उत्पीड़ित, दमनकारी बन जाता है। हमारे यहां अंबेडकरवादियों को देखिये। जहां सौ हो जाएं, सिर्फ गाली और गंदगी मिलेगी। जब जहां सत्ता में रहे, वहां भेदभाव उल्टा रहा यानि उन्होंने बड़ी जातियों के साथ भेद भाव किया।
संघियों को देखिये, एक तरह से जनता से मायूस, ये लोग सत्तर साल राजनीतिक रूप से उत्पीड़ित रहे हैं। आज भरपूर बदला ले रहे हैं, जनता से और नेहरू से, उसके खानदान से। यहूदी और इजराइल बस इसका बड़ा और ज्यादा निर्लज्ज रूप हैं। आज का इजराइल नाजी जर्मनी से क्या कम है?? नेतन्याहू उसी रेसियल सुपीरियरटी की थ्योरी पर चल रहे हैं। सत्ता मिलने पर हिटलर न बनना मामूली लोगो के लिए कठिन है।
सत्ता मिले, और आदमी नेहरू बना रहे, यह गांधी के भारत मे ही सम्भव हो सकता है। पर आज हम वो खासियत खो रहे हैं। तो अरब इजराइल छोड़िये, अभी गांधी के भारत के पक्ष में खड़ा होइए। अपने घर को चिंगारियों से बचाइये, अगर ये दृष्य आप भारत में नहीं देखना चाहते।
“देन स्टैंड विद इण्डिया”