बनना था इंजिनियर कर रहे हैं देहारी मजदूरी

काम की इंतज़ार में मजदूर - फ़ाइल फोटो

लहर डेस्क -दिनांक -23 मार्च 2019 , आज हमारी बात कुछ प्रवासी मज़दूर साथियों से हुई दिल्ली जामिया नगर के ओखला हेड पर ,यहां सुबह से असंगठिक छेत्र में काम करने वाले मज़दूर जमा होने लगते हैं ,मुख्यतः व्हाइट वाश, फर्नीचर मेंटेनेन्स, कारपेन्टरी, राजमिस्ट्री,प्लम्बर का का काम करते हैं . यहां मुख्यतः मज़दूर बिहार और पश्चिम बंगाल के मलदाह जिले से काम कि तलाश में आते हैं। इनका कहना है की इस चौराहे पर आने पर लगभग महीने भर में 15 दिन काम मिलता तो है लेकिन कई बार ऐसा होता है जब कई दिनों तक काम नहीं मिलता -ऐसा कहना है बिहार के किशन गंज जिले से आए श्रमिक शाहिल का। बिहार से दिल्ली पढ़ाई करने आये थेे लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी थी की बेबसी में रोज़ाना काम की तलाश करने लगे, सपना तो था डॉक्टर या इंजीनियर बनने का लेकिन कर अब रहे हैं देहारी मज़दूरी। शाहिल किशन गंज से आये अकेले मज़दूर नहीं, इनके अनुसार करीब 50 ऐसे साथी हैं जो इसी तरह रोज़गार की तलाश में प्रत्येक दिन ओखला हेड पर आकर काम के आने का इंतेज़ार करते हैं।

आप को बता दें कि किशन गंज बिहार का सीमा वर्ती जिला है जहां आमदनी का मुख्य स्रोत कृषि है। किशन गंज से कई मुस्लिम राजनेता चुनाव जीत कर अपनी कामयाबी की मिसाल तो पेश की लेकिन यहां से आने वाले मुस्लिम श्रमिको की हालात में कोई बदलाव शायद ही देखने को मिलेगा। किशन गंज बिहार का मुस्लिम बहुल जिला है इसलिए मुस्लिम श्रमिक शब्द का प्रयोग करना बेहतर समझा।

अब आप खुद समझ सकते हैं कि शाहिल का सपना जो इंजीनियर बनने का था वह कैसे उस रेत के उस टीले की तरह अपना वजूद खो दिया जैसे किसी तेज़ आंधी ने एक जगह से रेत उड़ा दूसरी जगह कहीं दूर दोबारा रेत का बेनाम टीला तैयार कर दिया हो।

आप ने भी ऐसा कुछ अनुभव किया होगा तो जरूर कमेंट करें अपनी राय और अवगत कराएं अपनी सोच से दुनिया को।