कोरोना की विपदा में विजय का अट्टहास करते प्रधानमंत्री-गृहमंत्री

सिद्धार्थ रामु
पूरे देश में एक हाहाकार से मचा है, लोग अपने परिजन-आत्मीयजन खो रहें हैं, रोते-बिलखते लोगों की तस्वीरें मर्माहत कर रही हैं, लोग अपने परिजनों-आत्मीजनों को अस्पतालों में भर्ती कराने के लिए मिन्नते कर रहे हैं, हाथ जोड़ रहें-पांव पड़ रहे हैं। अस्पतालों में जगहें नहीं हैं। फिर भी इस कोरोना की विपदा में अपने आत्मीयजनों को खोते परिजन के बीच भी विजय का अट्टहास करते नजर आ रहे हैं देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री।
वीआईपी और अमीर लोगों को एयर लिफ्ट करके बड़े-बड़े अस्पतालों में पहुंचाया जा रहा है, मध्यवर्ग और गरीब लोग अस्पताल पहुंचने से पहले या सरकारी अस्पतालों में जरूरी संसाधनों की कमी या डाक्टरों-नर्सों पर जरूरत से ज्यादा काम के दबाव के चलते दम तोड़ रहे हैं। श्मशान घाटों पर लाशें जलाने की जगह नहीं हैं। लंबी कतारें लगी हैं। उधर हमारे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के चेहरों पर किसी तरह की शिकन भी नहीं दिखाई दे रही है, उनका व्यवहार और देह भाषा ऐसी जैसे देश में सब कुछ सामान्य हैं, वे अपनी सफलता पर आत्ममुग्ध हैं।
ये दोनों लोग आरएसएस के हिंदू राष्ट्र ( उच्च जाती के हिंदू मर्दों का राष्ट्र) की परियोजना को पूरा करने और कार्पोरेट की तिजोरियां भरने ( सब कुछ को कार्पोरेट के हवाले करने-निजीकरण) में पूरी तर लीन हैं। ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री-गृहमंत्री को अपनी पहली प्राथमिकता लोगों के आंसू पोछना बनाना चाहिए था, तब वे तड़क-भड़क और गरज रहे हैं और आरएसएस और कार्पोरेट के वफादार सिपाही की भूमिका निभा रहे हैं। पता नहीं, ये लोग ऐसा कैसे कर पा रहे हैं।
बहुत ही अमानवीय असंवेदनशील व्यवहार वाले लोग देश के शीर्ष पदों पर आसीन हैं,इनका दोष तो कुछ भी नहीं है,इनके कुचक्रों और लालच में फंसने वाली देश की जनता भी उतनी ही दोषी है,जो रामराज्य का घंटा बजाने में मशगूल हैं, रामराज्य की अमानवीयता देशवासियों तथा दुनिया के सामने है।
रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था” शायद ये पुराना हो गया, आज के बाद सब बोलेंगे, “लोग मर रहे थे और साहब उत्सव मनवा रहे थे”
(फेसबुक वाल से साभार )