!! इन्द्रियातीत !!

अनुराग अनंत
आंखों से देह दिखती है
मन नहीं
कानों से बात सुनाई देती है
मौन नहीं
हाँथ शरीर छू सकते हैं
आत्मा नहीं
नाक गंध सूंघ सकती है
गंध का कारण नहीं
चीभ स्वाद चख सकती
स्वाद की अनुपस्थिति नहीं
जो महत्वपूर्ण है
वो इंद्रियों से बाहर है
जीवित रहने के लिए इंद्रियों की ज़रूरत है
जिंदा रहने के लिए इंद्रियों के पार जाना होगा
जिस दिन मेरी पाँचों इन्द्रियाँ जल कर भस्म हो जाएँगी
मैं अपने घर के पास वाले शमशान में उसी दिन पैदा हूँगा
नदी पर एक अदृश्य पुल उभरेगा
और मैं तैर कर नदी पार कर जाऊँगा
उपलब्ध की अशक्ति से परे
आत्मा से युक्त
शरीर से मुक्त
उस पार मैं तुमसे मिलूँगा
उसी शाम
तुम तब तक मेरी प्रतीक्षा करना
प्रतीक्षा का फल इंद्रियों से नहीं चखा जा सकता