ममता बनर्जी कितनी सेक्युलर?

डॉ. मुमताज़ नैयर , कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी
12 अक्टूबर 2011 की बात है। अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी किशनगंज के लिए संघर्ष चल रहा था। तब बिहार सरकार ने ज़मीन आवंटित नहीं किया था, सीमांचल की अवाम, बूढ़े बच्चे सब एक जूट होकर किशनगंज में एक दिवसीय धरना प्रदर्शन और रेल रोको अभियान चला रहे थे। तब हम भी इस मुहीम से जुड़े हुए थे और घटनाक्रम को काफी करीब से सोशल मीडिया पर फॉलो और अपडेट कर रहे थे।
तब तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी यू पी ए -II में रेल मंत्री थे जो इसी सप्ताह भाजपा में शामिल हुए हैं। ममता बनर्जी तब नयी नयी मुख्यमंत्री बनी थी। पश्चिम बंगाल की कटिहार-जलपाईगुड़ी सेक्शन में रेल ट्रैक और रोड सभी बंद हो चूका था। छात्रों और कार्यकताओं से रेल की पटरियों भरी पड़ी थी। चूँकि किशनगंज को चिकन नेक कहा जाता है, जिसे अगर बंद कर दिया जाए तो नार्थ ईस्ट के सभी सातों राज्य का शेष भारत से संपर्क कट जाता हैं। 12 अक्टूबर 2011 का धरना प्रदर्शन इतना असरदार रहा कि उसके कुछ ही दिनों बाद नितीश कुमार की सरकार 226 एकर ज़मीन अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी किशनगंज सेंटर के लिए दे दिया और आधिकारिक रूप से 30 जनुअरी 2012 को ज़मीन अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को सौंप दी गयी।
पर उसी दिन 12 अक्टूबर 2011 को बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी दोनों किसी काम से जलपाईगुड़ी गए थे और वो दोनों रेल से यात्रा कर रहे थे। चूँकि रेल सेवाएं देर रात तक ठप थी , ममता बनर्जी बिलबिला गयीं थी। यहाँ तक कि टीएम्सी के विधायक और मंत्री करीम चौधरी जो कि किशनगंज में धरना प्रदर्शन में शामिल थे उनको खरी खोटी सुनाई और जल्द ही वहां से निकलने को कहा। दिनेश त्रिवेदी ने इस धरना प्रदर्शन को आतंकी गतिविधि तक कह दिया था जो 15 अक्टूबर 2011 को आज़ाद हिन्द पत्रिका कोलकाता में प्रकशित भी हुआ था! इसके लिए न ही ममता बनर्जी ने कभी माफ़ी मांगी और ना ही इतने सालों में दिनेश त्रिवेदी जो टीएम्सी के सांसद और मंत्री रहे उन्होंने माफ़ी माँगा। मुझे ममता बनर्जी और मोदी एक ही सिक्के के दो पहलु लगते हैं, यह वही ममता बनर्जी है जो सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री के रूप में इसलिए क़ुबूल नहीं करना चाहती थी कि वो विदेशी मूल के हैं, कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बना लेती हैं , पर वाजपेयी जैसे ज़मीन समतल करने वाले नेता को प्रधानमत्रीं क़ुबूल कर लेती है और भाजपा की सरकार बनाने में अहम् भूमिका अदा करती है, और साथ में मंत्री भी बन जाती है!
आप यह कहेंगे कि अभी तो वो मोदी से लड़ रही है और सेक्युलरिज़्म बचा रही है। ऐसा कुछ नहीं है कि यह सेकुलरिज्म बचा रही है, आज बंगाल भाजपा में आधे से ज़्यादा इन्ही के पार्टी के नेता हैं, इन सपोलों को यह खुद ही पाली है। दिनेश त्रिवेदी को ही देख लीजिये! और टीएम्सी की कोई अपनी विचारधारा नहीं है। सत्ता और पैसे के लिए पार्टी बनी थी, अब पैसा जिधर मिलेगा और सत्ता जिधर मिलेगा नेता उधर चले जायेंगे! आपको अपने अस्तित्व की लड़ाई खुद लड़नी होगी! यह सब पार्टियां जैसे तैसे धीरे धीरे भाजपा में शामिल हो जाएगी। यह वहम कतई न पालें कि यह आपको किसी तरह का रक्षा देने वाली है। बंगाल में मुसलमान करीब 28 प्रतिसत है, 291 सीटों में से टिकट सिर्फ 42 मुसलमानों को दिया है, उस हिसाब से प्रतिनिधित्व सिर्फ 14 प्रतिशत होता है, हालाँकि 2016 के चुनाव में 53 मुसलमानों को पार्टी ने टिकट दिया था जिसमें 35 विधायक जीते थे, अनुसूचित जाती कि आबादी 23 प्रतिशत है बंगाल में और 68 सीटें आरक्षित है। ममता बनर्जी ने 79 को टिकट दिया है, मतलब उनको 27 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिया है! यह बताते चलें कि मुसलामनों का एक मुस्त वोट ममता बनर्जी को मिलता रहा है!
आप ज़िंदाबाद मुर्दाबाद करते रहिये, खुद अपना जंग लड़ना नहीं सीखेंगे तो चाहे वो अखिलेश हो, मायावती हो, तेजस्वी हो, या ममता बनर्जी हो आपको आपके वफादारी का यही सिला देंगे!