सोशल मीडिया पर पाबन्दी क्या आपातकाल की याद दिलाता है ?

खबर है हरियाणा से : हरियाणा के छह जिलों के उपायुक्तों ने सोशल मीडिया पर रोक लगा दी है उनका मन्ना है की कि ऐसे माध्यमों द्वारा असत्यापित और भ्रामक समाचारों से समाज में शांति भंग हो सकती है और यह कोरोना वायरस महामारी के दौरान आम आदमी के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, राज्य के कार्यकर्ताओं ने इस कदम को अघोषित आपातकाल करार दिया और कहा कि यह सोशल मीडिया की आवाजों को चुप कराने की कोशिश है.
सोनीपत, कैथल, चरखी दादरी, करनाल, नारनौल और भिवानी जिलों के उपायुक्तों द्वारा वॉट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक, टेलीग्राम, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, पब्लिक ऐप और लिंक्डइन पर आधारित सभी सोशल मीडिया समाचार प्लेटफॉर्म को प्रतिबंधित करने के आदेश जारी किये गए हैं. आपको यह जानना चाहिए की करनाल के उपायुक्त ने जहां 15 दिन का प्रतिबंध लगाया है, वहीं बाकी के पांच उपायुक्तों ने अगले आदेश तक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है. ज्ञात हो की पहला ऐसा आदेश चरखी दादरी के उपायुक्त ने इस साल 12 मई को जिलाधिकारी के रूप में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जारी किया था. इसके बाद करनाल जिले के उपायुक्त ने 10 जुलाई को ऐसा आदेश जारी किया था.
सोनीपत के उपायुक्त श्याम लाल पूनिया द्वारा 16 जून को जारी आदेश में कहा गया, ‘सोनीपत के किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने न्यूज चैनल के रूप में काम करने की अनुमति नहीं ली है. उन्हें न तो हरियाणा सरकार के सूचना और जनसंपर्क निदेशालय से पंजीकरण मिला और न ही केंद्र सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के आयुक्त से.’
आदेश में आगे कहा गया, ‘सोशल मीडिया के समाचार चैनलों से जानबूझकर या अनजाने में फर्जी समाचार या गलत रिपोर्टिंग के कारण कोरोना वायरस महामारी की इस असामान्य परिस्थिति में समाज के एक बड़े वर्ग के बीच भय (फैलने) की संभावना है. इसलिए समाचार चैनल के रूप में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के कामकाज के लिए किसी भी नियामक संस्था से पंजीकरण कराना आवश्यक होजाता है’
महतवपूर्ण बात यह है की प्रतिबंध आईपीसी की धारा 188, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और महामारी रोग अधिनियम, 1957 के तहत लगाए गए हैं. यह भी उल्लिखित किया गया है कि इन कानूनों का उल्लंघन करने पर जेल की सजा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
हालांकि, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इन प्रतिबंधों को मनमाना और असंवैधानिक करार दिया है.
मानव अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है की ‘संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ए) बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है जिसमें मीडिया की स्वतंत्रता शामिल है. अधिकारियों की कार्रवाई इस संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन है. संबंधित उपायुक्त ने प्रतिबंध लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश का हवाला दिया है लेकिन आपको यह जानना चाहिए की शीर्ष अदालत ने सोशल मीडिया समाचार प्लेटफार्मों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया था .उन्होंने आगे कहा, ‘यदि कोई भी सोशल मीडिया समाचार चैनल किसी भी मुद्दे पर फेक न्यूज प्रकाशित कर रहा है, तो अधिकारी संबंधित समाचार चैनलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए सक्षम हैं, लेकिन उनके पास सोशल मीडिया समाचार प्लेटफार्मों के संचालन पर प्रतिबंध लगाने का कोई अधिकार नहीं है.’
हालांकि, प्रतिबंध के आदेश को सही ठहराते हुए श्याम लाल पूनिया ने कहा, ‘ऐसे प्लेटफॉर्म के लिए भी नियंत्रण और संतुलन जरूरी है. इस तरह के प्लेटफार्मों के लिए कुछ प्रकार का पंजीकरण होना चाहिए ताकि उनकी ओर से भी जवाबदेही की भावना आए.’
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए पूनिया ने कहा, ‘ये प्लेटफॉर्म कोरोना मरीजों की जानकारी उनके नाम के साथ सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं. मरीजों की सूची गलत थी. यहां तक की हम भी मरीजों के नाम सार्वजनिक नहीं करते हैं.’
वहीं, हरियाणा पत्रकार संघ के अध्यक्ष केबी पंडित ने कहा कि कई अधिकारी ही कोरोना वायरस मरीजों की पहचान उजागर कर देते हैं इसलिए सोशल मीडिया को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए.
जैसा की आप जानते हैं की सोशल मीडिया पेज के पंजीयन की अब तक भारत में कोई ऐसा कोई अध्यादेश या प्रयाप्त रूप से कोई भी निवंधन का तरीका सरकार द्वारा जरी नहीं किया गया है इसलिए सरकारी प्रतिनिधियों द्वारा उठाया गया यह कदम उचित नहीं ठहराया जा सकता है.
इस बीच, पंडित के नेतृत्व में वेबपोर्टल पत्रकारों के एक समूह ने शनिवार को करनाल में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात की और इस मामले में उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की.
पंडित ने कहा, ‘मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है कि 48 घंटे के भीतर सोशल मीडिया के लिए एक नीति को अंतिम रूप दिया जाएगा, जिसमें सरकार वेब-पोर्टल को भी सहायता देने का प्रयास करेगी. मेरा मानना है कि ऐसे प्लेटफॉर्मों के सोशल मीडिया पत्रकारों और विज्ञापनों को मान्यता देने के लिए जल्द ही मानदंड को अंतिम रूप दिया जाएगा.’
बता दें कि बीते 6 जुलाई को हरियाणा कैबिनेट ने भारत में उभरते नए डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म को देखते हुए डिजिटल मीडिया पॉलिसी, 2020 पेश करने का फैसला किया था.
तब सरकार ने कहा था, ‘वेबसाइटों, नए ऐप्लिकेशनों की पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ उनके कंटेंट की प्रामाणिकता को सुनिश्चित करने के लिए नीति में कई सहायक नियंत्रण और संतुलन को शामिल करने के दिशा निर्देश दे सकती है.’
यह सब देख कर ऐसा लगता है सरकार खुद एक तरफ जहाँ अपने सूचना और जानकारी जनता तक पहुँचाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल जमकर करती है जिसका उदाहरण है की राधन मंत्री का अपना ट्वीटर हैंडल, फेसबुक अकाउंट ,सारे मंत्रियों का अकाउंट , सबसे पहले तो प्रधान मंत्री खुद ट्वीटर पर जानकारी साझा करते हैं हैं बाद में वह खबर किसी भी राष्ट्रीय , क्षेत्रीय मीडिया चैनल पर आती है ऐसी परिश्थिति में जनता को कैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से रोक्लगा सकती है वेह भी भारत जैसे दुनिए के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राज्य में? जिलों के उपयुक्त हो या कलक्टर द्वारा लगायी गयी रोक अघोषित आपातकाल की चेतावनी डेट है , जनता को अपनी अधिकारों के मुखर होना होगा .
यह खबर द वायर , इडियन एक्सप्रेस और अन्य समाचर पत्रों के खबर को आधार मानकर लिखा गया है .